वृक्षों, पौधों, लताओं आदि वनस्पतियों से हमें फल, फूल, सब्जी, कंद-मूल, औषधियां, जड़ी-बूटी, मसाले, अनाज आदि सभी तो प्राप्त होते ही हैं साथ ही उक्त सभी वनस्पतियां हमारे जलवायु और पर्यावरण का संतुलन बनाए रखकर वर्षा, नदी, पहाड़ और समुद्र का संरक्षण भी करती हैं।
भारत में स्थानीय विश्वासों के आधार पर कई ऐसे वृक्ष हैं जिन्हें भूतों का बसेरा माना जाता है तो कई ऐसे भी वृक्ष हैं जिनमें देवताओं का निवास होता है। भारत के लोगों में यह धारणा भी प्रचलित है कि चलने और उड़ने वाले पेड़ भी होते हैं। कल्पवृक्ष के संबंध में ऐसी धारणा है कि वह हमारी सभी तरह की मनोकामना की पूर्ति कर देता है।
कुछ वृक्षों या पौधों से सोना बनाया जा सकता है, तो कुछ ऐसे भी वृक्ष हैं जिनको घर में लगाने से सुख और समृद्धि आती है। तंत्र-मंत्र में विश्वास रखने वाले लोग अक्सर ऐसे वृक्षों की खोज में लगे रहते हैं जिसकी छाल या अन्य किसी हिस्से से वशीकरण का इत्र, गायब होने की बुटिका या आज्ञाचक्र को खोलकर त्रिकालज्ञ बनने की औषधि बनाना चाहते हैं। वेद, पुराण, गीता आदि सभी ग्रंथों में वृक्षों के औषधीय, धार्मिक, पर्यावरण, व्यापारिक, सामाजिक आदि सभी गुणों का महत्व विस्तार से वर्णित किया गया है।
हम आपको बताएंगे कि वृक्ष किस तरह हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं और किस तरह हम वृक्षों के माध्यम से अपने जीवन को परिवर्तित कर सकते हैं। कर्ज, संतानहीनता, गृहकलह, धनाभाव, रोग और शोक आदि आपके जीवन में किसी भी प्रकार की समस्या हो, तो वृक्षों के माध्यम से उसका समाधान हो सकता है।
ईश्वर दूत वृक्ष : हिन्दू धर्म में प्रकृति के सभी तत्वों की पूजा और प्रार्थना का प्रचलन और महत्व है, क्योंकि हिन्दू धर्म मानता है कि प्रकृति ही ईश्वर की पहली प्रतिनिधि है। प्रकृति के सारे तत्व ईश्वर के होने की सूचना देते हैं इसीलिए प्रकृति को भगवती, दैवीय और पितृ सत्ता माना गया है।
हिन्दू धर्म का वृक्ष से गहरा नाता है। हिन्दू धर्म को वृक्षों का धर्म कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। ब्रह्मांड को उल्टे वृक्ष की संज्ञा दी गई है। पहले यह ब्रह्मांड बीज रूप में था और अब यह वृक्ष रूप में दिखाई देता है। प्रलयकाल में यह पुन: बीज रूप में हो जाएगा।
नरक से बचने का उपाय : शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति एक पीपल, एक नीम, दस इमली, तीन कैथ, तीन बेल, तीन आंवला और पांच आम के वृक्ष लगाता है, वह पुण्यात्मा होता है और कभी नरक के दर्शन नहीं करता।
इसके अलावा एक बरगद, एक अनार, एक कड़ीपत्ता, एक जामफल, एक तुलसी, एक नींबू, एक अशोक, एक चमेली, एक चम्पा का वृक्ष लगाने से निरोगी काया रहकर घर में धन, समृद्धि और शांति बनी रहती है।
परिक्रमा से मिटे रोग और शोक : अक्सर आपने देखा होगा कि पीपल और वटवृक्ष की परिक्रमा का विधान है। स्कंद पुराण में वर्णित पीपल के वृक्ष में सभी देवताओं का वास है। पीपल की छाया में ऑक्सीजन से भरपूर आरोग्यवर्धक वातावरण निर्मित होता है। इस वातावरण से वात, पित्त और कफ का शमन-नियमन होता है तथा तीनों स्थितियों का संतुलन भी बना रहता है। इससे मानसिक शांति भी प्राप्त होती है।
अश्वत्थोपनयन व्रत के संदर्भ में महर्षि शौनक कहते हैं कि मंगल मुहूर्त में पीपल वृक्ष की नित्य तीन बार परिक्रमा करने और जल चढ़ाने पर दरिद्रता, दु:ख और दुर्भाग्य का विनाश होता है। पीपल के दर्शन-पूजन से दीर्घायु तथा समृद्धि प्राप्त होती है। अश्वत्थ व्रत अनुष्ठान से कन्या अखंड सौभाग्य पाती है।
पीपल के प्रत्येक तत्व जैसे छाल, पत्ते, फल, बीज, दूध, जटा एवं कोंपल तथा लाख सभी प्रकार की आधि-व्याधियों के निदान में काम आते हैं। हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में पीपल को अमृततुल्य माना गया है। सर्वाधिक ऑक्सीजन नि:सृत करने के कारण इसे प्राणवायु का भंडार कहा जाता है। सबसे अधिक ऑक्सीजन का सृजन और विषैली गैसों को आत्मसात करने की इसमें अकूत क्षमता है।
शनि पीड़ा से मुक्ति : शनिवार की अमावस्या को पीपल वृक्ष की पूजा और 7 परिक्रमा करके काले तिल से युक्त सरसों के तेल के दीपक को जलाकर छायादान करने से शनि की पीड़ा से मुक्ति मिलती है।
अनुराधा नक्षत्र से युक्त शनिवार की अमावस्या के दिन पीपल वृक्ष के पूजन से शनि पीड़ा से व्यक्ति मुक्त हो जाता है। श्रावण मास में अमावस्या की समाप्ति पर पीपल वृक्ष के नीचे शनिवार के दिन हनुमान की पूजा करने से सभी तरह के संकट से मुक्ति मिल जाती है।
कर्ज से मुक्ति :
* बरगद के एक पत्ते पर आटे का दीया जलाकर उसे मंगलवार को किसी भी हनुमान मंदिर या पीपल के वृक्ष के नीचे रख आएं। इस उपाय से कर्ज से छुटकारा मिलेगा।
* एक नारियल पर चमेली का तेल मिले सिन्दूर से स्वस्तिक का चिह्न बनाएं। कुछ भोग (लड्डू अथवा गुड़-चना) के साथ हनुमानजी के मंदिर में जाकर उनके चरणों में अर्पित करके ऋणमोचक मंगल स्तोत्र का पाठ करें। तत्काल लाभ प्राप्त होगा।
* श्मशान के कुएं का जल लाकर किसी पीपल के वृक्ष पर चढ़ाना चाहिए। यह कार्य नियमित रूप से 7 शनिवार को किया जाना चाहिए।
व्यापार लाभ : कारोबार में लगातार घाटा हो रहा हो तो गुरुवार के दिन एक नारियल सवा मीटर पीले वस्त्र में लपेटकर एक जोड़ा जनेऊ, सवा पाव मिष्ठान्न के साथ आस-पास के किसी भी विष्णु मंदिर में अपने संकल्प के साथ चढ़ा दें। तत्काल ही व्यापार चल निकलेगा।
बिगड़े या रुके काम बनाएं : कोई काम न बन रहा हो तो 19 शनिवार तक आप पीपल के पेड़ में धागा लपेटें और तिल के तेल का ही दीया जलाएं। इस दीये में 11 दाने काली उड़द के जरूर रखें।
रविवार को छोड़कर हर दिन तुलसी के पौधे में जल चढ़ाएं और सूर्य भगवान को अर्घ्य देकर ही काम के लिए बाहर निकलें, सारे काम बनेंगे।
पितृदोष से मुक्ति : पीपल के वृक्ष पर प्रतिदिन जल अर्पित करने और हनुमान चालीसा पढ़ने से पितृदोष का शमन होता है। पवित्र पीपल तथा बरगद के पेड़ लगाने से भी पित्तरों को शांति मिलती है और दोष में कमी आती है।
पीपल के वृक्ष पर दोपहर में जल, पुष्प, अक्षत, दूध, गंगाजल, काले तिल चढ़ाएं और स्वर्गीय परिजनों का स्मरण कर उनसे आशीर्वाद मांगें।
सोमवार प्रात:काल में स्नान कर नंगे पैर शिव मंदिर में जाकर आक के 21 पुष्प, कच्ची लस्सी, बिल्वपत्र के साथ शिवजी की पूजा करें। 21 सोमवार करने से पितृदोष का प्रभाव कम होता है।
बनी रहे बरकत : अश्लेषा नक्षत्र में बरगद का पत्ता लाकर अन्न भंडार में रखें, भंडार भरा रहेगा। हल्दी की गांठें, पान पत्ता और सुपारी तिजोरी में रखने से धन का भंडार बना रहेगा। तुलसी और केल का पौधा घर में रखने से हमेशा बरकत बनी रहेगी।
वास्तुदोष से मुक्ति : घर के वास्तुदोष से मुक्ति का सबसे सरल उपाय है घर के आसपास वृक्षों को लगाना। किसी ज्योतिष और वास्तु के जानकार से पूछकर घर के आसपास ऐसे वृक्ष लगाएं, जो आपके घर की ऊर्जा को बदलकर वास्तुदोष का निवारण कर दे।
केले का पेड़ : केले का पेड़ काफी पवित्र माना जाता है और कई धार्मिक कार्यों में इसका प्रयोग किया जाता है। भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को केले का भोग लगाया जाता है। केले के पत्तों में प्रसाद बांटा जाता है। माना जाता है कि समृद्धि के लिए केले के पेड़ की पूजा अच्छी होती है।
केला हर मौसम में सरलता से उपलब्ध होने वाला अत्यंत पौष्टिक एवं स्वादिष्ट फल है। केला रोचक, मधुर, शक्तिशाली, वीर्य व मांस बढ़ाने वाला, नेत्रदोष में हितकारी है। पके केले के नियमित सेवन से शरीर पुष्ट होता है। यह कफ, रक्तपित, वात और प्रदर के उपद्रवों को नष्ट करता है।
आम-अशोक है खास : हिन्दू धर्म में जब भी कोई मांगलिक कार्य होते हैं तो घर या पूजा स्थल के द्वार व दीवारों पर आम या अशोक के पत्तों की लड़ लगाकर मांगलिक उत्सव के माहौल को धार्मिक और वातावरण को शुद्ध किया जाता है। अक्सर धार्मिक पंडाल और मंडपों में सजावट के लिए आम के पत्तों का इस्तेमाल किया जाता है। आम या अशोक के पत्ते से सकारात्मक ऊर्जा का प्रसार होकर वातावरण शुद्ध होता है। आम के वृक्ष की हजारों किस्में हैं और इसमें जो फल लगता है वह दुनियाभर में प्रसिद्ध है। आम के रस से कई प्रकार के रोग दूर होते हैं।
भविष्यवक्ता शमी : विक्रमादित्य के समय में सुप्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर ने अपने 'बृहत्संहिता'नामक ग्रंथ के 'कुसुमलता' नाम के अध्याय में वनस्पति शास्त्र और कृषि उपज के संदर्भ में जो जानकारी प्रदान की है उसमें शमी वृक्ष अर्थात खिजड़े का उल्लेख मिलता है।
वराहमिहिर के अनुसार जिस साल शमी वृक्ष ज्यादा फूलता-फलता है उस साल सूखे की स्थिति का निर्माण होता है। विजयादशमी के दिन इसकी पूजा करने का एक तात्पर्य यह भी है कि यह वृक्ष आने वाली कृषि विपत्ति का पहले से संकेत दे देता है जिससे किसान पहले से भी ज्यादा पुरुषार्थ करके आने वाली विपत्ति से निजात पा सकता है।
बिल्व वृक्ष : बिल्व अथवा बेल (बिल्ला) विश्व के कई हिस्सों में पाया जाने वाला वृक्ष है। हिन्दू धर्म में बिल्व वृक्ष भगवान शिव की आराधना का मुख्य अंग है। शिवलिंग पर बिल्व पत्र चढ़ाए जाते हैं। औषधीय गुणों से परिपूर्ण बिल्व की पत्तियों में टैनिन, लौह, कैल्शियम, पोटेशियम और मैग्नेशियम जैसे रसायन पाए जाते हैं। बिल्व पत्र आंखों की रोशनी बढ़ाने, पेट के कीड़े मारने और कैंसर की रोकथाम में बहुत काम आता है।
यह माना जाता है कि देवी महालक्ष्मी का भी बेल वृक्ष में वास है। जो व्यक्ति शिव-पार्वती की पूजा बेलपत्र अर्पित कर करते हैं, उन्हें महादेव और देवी पार्वती दोनों का आशीर्वाद मिलता है। 'शिवपुराण' में इसकी महिमा विस्तृत रूप में बताई गई है।
संतान सुख : माना जाता है कि अश्विनी नक्षत्र वाले दिन एक रंग वाली गाय के दूध में बेल के पत्ते डालकर वह दूध निःसंतान स्त्री को पिलाने से उसे संतान की प्राप्ति होती है।
अशोक से मिटे शोक : अशोक का वृक्ष घर में उत्तर दिशा में लगाना चाहिए जिससे गृह में सकारात्मक ऊर्जा का संचरण बना रहता है। घर में अशोक के वृक्ष होने से सुख, शांति एवं समृद्धि बनी रहती है एवं अकाल मृत्यु नहीं होती।
माना जाता है कि अशोक वृक्ष घर में लगाने से या इसकी जड़ को शुभ मुहूर्त में धारण करने से मनुष्य को सभी शोकों से मुक्ति मिल जाती है। अशोक का वृक्ष वात-पित्त आदि दोष, अपच, तृषा, दाह, कृमि, शोथ, विष तथा रक्त विकार नष्ट करने वाला है। यह रसायन और उत्तेजक है। इसके उपयोग से चर्म रोग भी दूर होता है।
दांपत्य सुख हेतु उपाय : यदि पति-पत्नी के बीच झगड़ा होता है तो ज्योतिषानुसार शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार को पत्नी अशोक वृक्ष की जड़ में घी का दीपक और चंदन की अगरबत्ती जलाकर नैवेद्य चढ़ाएं। पेड़ को जल अर्पित करते समय उससे अपनी कामना करनी चाहिए। फिर वृक्ष से 7 पत्ते तोड़कर घर लाएं, श्रद्धाभाव से उनकी पूजा करें व घर के मंदिर में रख दें। अगले सोमवार फिर से यह उपासना करें तथा बाद में सूखे पत्तों को बहते जल में प्रवाहित कर दें।
नारियल का वृक्ष : हिन्दू धर्म में नारियल के बगैर तो कोई मंगल कार्य संपन्न होता ही नहीं। पूजा के दौरान कलश में पानी भरकर उसके ऊपर नारियल रखा जाता है। यह मंगल प्रतीक है। नारियल का प्रसाद भगवान को चढ़ाया जाता है। नारियल के पानी में पोटैशियम अधिक मात्रा में होता है। इसे पीने से शरीर में किसी भी प्रकार की सुन्नता नहीं रहती।
अनजाना भय : शनि, राहु या केतुजनित कोई समस्या हो, कोई ऊपरी बाधा हो, बनता काम बिगड़ रहा हो, कोई अनजाना भय आपको भयभीत कर रहा हो अथवा ऐसा लग रहा हो कि किसी ने आपके परिवार पर कुछ कर दिया है, तो इसके निवारण के लिए शनिवार के दिन एक जलदार जटावाला नारियल लेकर उसे काले कपड़े में लपेटें। 100 ग्राम काले तिल, 100 ग्राम उड़द की दाल तथा 1 कील के साथ उसे बहते जल में प्रवाहित करें। ऐसा करना बहुत ही लाभकारी होता है।
अनार से बढ़ती सेक्स पावर : अनार के वृक्ष से जहां सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण होता है वहीं इस वृक्ष के कई औषधीय गुण भी हैं। पूजा के दौरान पंच फलों में अनार की गिनती की जाती है। अनार का प्रयोग करने से खून की मात्रा बढ़ती है। इससे त्वचा सुंदर व चिकनी होती है। रोज अनार का रस पीने से या अनार खाने से त्वचा का रंग निखरता है। अनार के छिल्कों के 1 चम्मच चूर्ण को कच्चे दूध और गुलाब जल में मिलाकर चेहरे पर लगाने से चेहरा दमक उठता है। यौन दुर्बलता, अपच, दस्त, पेचिश, दमा, खांसी, मुंह में दुर्गंध आदि रोगों में अनार लाभदायक है। इसके सेवन से शरीर में झुर्रियां या मांस का ढीलापन समाप्त हो जाता है।
रोग और प्रेम से मुक्ति दिलाए नीम : नीम एक चमत्कारी वृक्ष माना जाता है। मां दुर्गा का रूप माने जाने वाले इस पेड़ को कहीं-कहीं 'नीमारी देवी' भी कहते हैं। इस पेड़ की पूजा की जाती है। कहते हैं कि नीम की पत्तियों के धुएं से बुरी और प्रेत आत्माओं से रक्षा होती है।
निम्ब शीतों लघुग्राही कतुर कोअग्नी वातनुत।
अध्यः श्रमतुटकास ज्वरारुचिक्रिमी प्रणतु।।
अर्थात नीम शीतल, हल्का, ग्राही पाक में चरपरा, हृदय को प्रिय, अग्नि, वाट, परिश्रम, तृषा, अरुचि, क्रीमी, व्रण, कफ, वामन, कोढ़ और विभिन्न प्रमेह को नष्ट करता है।
घर के पूर्व में बरगद, पश्चिम में पीपल, उत्तर में पाकड़ और दक्षिण में गूलर का वृक्ष शुभ होता है किंतु ये घर की सीमा में नहीं होना चाहिए। घर के उत्तर एवं पूर्व क्षेत्र में कम ऊंचाई के पौधे लगाने चाहिए। पौधारोपण उत्तरा, स्वाति, हस्त, रोहिणी एवं मूल नक्षत्रों में करना चाहिए। ऐसा करने पर रोपण निष्फल नहीं होता।
घर के दक्षिण एवं पश्चिम क्षेत्र में ऊंचे वृक्ष (नारियल अशोकादि) लगाने चाहिए। इससे शुभता बढ़ती है। जिस घर की सीमा में निगुंडी का पौधा होता है वहां गृह कलह नहीं होती। जिस घर में एक बिल्व का वृक्ष लगा होता है उस घर में लक्ष्मी का वास बतलाया गया है। जिस व्यक्ति को उत्तम संतान एवं सुख देने वाले पुत्र की कामना हो, उसे पलाश का पेड़ लगाना चाहिए। तुलसी का पौधा घर की सीमा में शुभ होता है।
यह सावधानी रखें : घर के द्वार और चौखट में भूलकर भी आम और बबूल की लकड़ी का उपयोग न करें। कोई भी पौधा घर के मुख्य द्वार के सामने न रोपें। इससे जहां द्वार भेद होता है वहीं बच्चों के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर पड़ता।
बांस का पौधा रोपना अशुभ होता है। जामुन और अमरूद को छोड़कर फलदार वृक्ष भवन की सीमा में नहीं होने चाहिए। इससे बच्चों का स्वास्थ्य खराब होता है। आवासीय परिसर में दूध वाले वृक्ष लगाने से धनहानि होती है। महुआ, पीपल, बरगद घर के बाहर होना चाहिए। केवड़ा और चंपा को लगा सकते हैं।
बैर, पाकड़, बबूल, गूलर आदि कांटेदार पेड़ घर में दुश्मनी पैदा करते हैं। इनमें जति और गुलाब अपवाद हैं। घर में कैक्टस के पौधे नहीं लगाएं।