कैप्टन आर. हर्षन सबसे कम उम्र के भारतीय सेना के अधिकारी हैं, जिन्हें उनकी वीरता के लिए इस साल अशोक चक्र से सम्मानित किया जाएगा। भारत के 59वें गणतंत्र दिवस के मौके पर भारतीय सेना के विशेष कमाडों दस्ते 2 पैरा बटालियन के कैप्टन हर्षन को मरणोपरांत राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल शांति काल के सबसे बड़े सम्मान अशोक चक्र से सम्मानित करेंगी। इसके साथ ही कैप्टन हर्षन का नाम भी देहरादून के भारतीय सेना अकादमी के ‘बलिदान मंदिर’ में अंकित हो जाएगा। कैप्टन हर्षन को दिए जाने वाले इस पुरस्कार को ग्रहण करने के लिए केरल से उनके पिता राधाकृष्णन् नायर और माँ चित्रांबिका नई दिल्ली पधारे हैं। 26 वर्षीय हर्षल बचपन से ही अपने हमउम्र साथियों से अलग थे। वे उन 6 युवा सैनिकों में से एक थे जिन्हें इसराइल में हथियारों के विशेष प्रशिक्षण के लिए भेजा गया था। भारतीय सेना के इस होनहार अधिकारी में जोश, जज्बा और अप्रतिम नेतृत्व क्षमता थी। वह हर मोर्चे पर डटकर खड़े रहते थे। कैप्टन हर्षन की माँ चित्रांबिका उस दिन को याद करके विह्वल हो जाती हैं, जब उन्होंने भारतीय सेना अकादमी में ‘बलिदान मंदिर’ देखा था। हर्षन ने अपनी माँ से कहा “कि जो भी मातृभूमि की रक्षा करते हुए शहीद हो जाता है, उसका नाम यहाँ अंकित हो जाता है। हर माँ इस बात पर फख्र महसूस करती है। एक दिन जब मेरा नाम इसमें शामिल होगा तो आप भी मुझ पर गर्व करेंगी”।आँखों में आँसू भरे श्रीमती चित्रांबिका ने बताया - ‘मार्च में जब वह घर आने वाला था, तब उसने कहा कि मेरे वहाँ आ जाने से किसी दूसरे को अतिरिक्त काम करना पड़ेगा। यही वह अंतिम बात थी, जो मैंने उसके मुँह से सुनी।’ त्रिवेंद्रम के रहने वाले कैप्टन हर्षन अपने माता-पिता की दूसरी संतान थे। उनके बड़े भाई लोकसेवा अधिकारी और छोटा भाई इंजीनियर है। कैप्टन हर्षन के पिता राधाकृष्णन् बताते हैं कि हर्षन के भीतर जन्म से ही सैनिकों जैसा जोश और जज्बा था। जब वह चौथी कक्षा में था, तो उसने सैनिक स्कूल में पढ़ने की जिद की। जिससे उसका प्रवेश वहाँ करवाना पड़ा। 12वीं में उसे सर्वश्रेष्ठ कैडेट का खिताब मिला था। साथ हि वह खेल-कूद में भी अव्वल था।हर्षन ने अपनी स्कूली पढा़ई के बाद इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश भी लिया, लेकिन सेना में जाने की तमन्ना के कारण उन्होंने भोपाल में एनडीए की परीक्षा माता-पिता को बताए बिना दे दी और उन्हें प्रवेश मिल भी गया।एनडीए की पढा़ई पूरी करने के बाद हर्षन ने भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून में प्रवेश किया। वर्ष 2002 में दूसरी पैरा बटालियन मे पदस्थ लेफ्टिनेंट हर्षन ने कश्मीर में अपना प्रशिक्षण पूरा किया। 7
मार्च, 2007 को घटना के दिन कैप्टन हर्षन और उनकी ‘रेड डेविल्स’ टुकडी ने एक आतंकवादी को हथियारों के जखीरे के साथ गिरफ्तार किया। इस आतंकवादी से पूछताछ के दौरान उन्हें कुपवाड़ा में भारत-पाक सीमा पर आतंकवादियों की घुसपैठ की खबर मिली। कैप्टन हर्षन और उनकी टीम ने पूरे दो सप्ताह कुपवाड़ा में बिताए, लेकिन आतंकवादियों का पता नहीं चला।
इसी दौरान अभियान के असफल होने और अपने घर से फोन आने पर उन्होंने अपने घर तिरुवन्नतपुरम, केरल जाने के लिए आवेदन कर दिया। इसी बीच उन्हें कुपवाडा़ में आतंकवादियों की घुसपैठ की खबर मिली। अपनी टुकडी ‘रेड डेविल्स’ के साथ कुपवाड़ा पहुँचे और जबरदस्त मुठभेड़ के बाद इस अभियान को सफल बनाया और कई आतंकवादियों को मार गिराया गया मगर इस अभियान के दौरान गोलीबारी में कैप्टन हर्षन की जाँघ में गोली लगी, घायल होने पर भी उन्होने अदम्य साहस का परिचय देकर आगे बढ़ते हुए तीन आतंकवादियों को मार गिराया और साथ ही अपने साथियों का मनोबल भी बढ़ाते रहे।
गंभीर रूप से घायल होने पर भी उन्होने मोर्चे से हटने से इंकार कर दिया और अपनी टुकडी का कुशल नेतृत्व करते रहे, मगर होनी को कुछ और ही मंजूर था, ऊँचाई पर छुपे एक आतंकवादी ने इस रण-बाँकुरे पर गोलियों की बौछार कर दी जिसमें एक गोली उनकी गर्दन में लगी और भारत माता का यह सपूत सेना की सर्वोच्च परंपरा का पालन करते हुए शहीद हो गया।
भारतवर्ष की एकता, अखंडता पर न्योछावर इस वीर को हमारी श्रद्धांजलि और शत-शत नमन...
वेबदुनिया मलयालम,त्रिवेन्द्रम