- हर्षवर्धन प्रकाश
इंदौर। परमाणु ऊर्जा विभाग के इंदौर स्थित एक प्रमुख वैज्ञानिक संस्थान ने पानी में यूरेनियम के अंशों का स्तर पता लगाने के लिए 15 वर्ष के सतत् अनुसंधान के बाद विशेष उपकरण विकसित किया है। 'लेजर फ्लोरीमीटर' नाम का यह उपकरण पंजाब समेत देश के उन सभी राज्यों के बाशिंदों को कैंसर और अन्य गंभीर बीमारियों के खतरे से बचा सकता है, जहां जलस्रोतों में यूरेनियम के अंश घातक स्तर पर पाए जाते हैं।
इंदौर के राजा रमन्ना प्रगत प्रौद्योगिकी केंद्र (आरआरसीएटी) के निदेशक पीए नाइक ने गुरुवार को बताया कि मूल रूप से इस उपकरण के आविष्कार की परिकल्पना देश में यूरेनियम के नए भूमिगत भंडारों की खोज के लिए रची गई थी, लेकिन पंजाब के जलस्रोतों में यूरेनियम के अंश मिलने के मामले सामने आने के बाद हमने आम लोगों के स्वास्थ्य की हिफाजत के मद्देनजर इसे नए सिरे से विकसित कर इसका उन्नत संस्करण तैयार किया है।
उन्होंने बताया कि इस छोटे-से उपकरण को आसानी से कहीं भी ले जाया जा सकता है। किसी भी स्रोत से पानी का नमूना लेकर उपकरण में डाला जा सकता है। यह उपकरण फटाफट बता देता है कि पानी में यूरेनियम के अंशों का स्तर कितना है।
नाइक ने यह भी बताया कि लेजर फ्लोरीमीटर के बड़े पैमाने पर विनिर्माण के लिए इसकी तकनीक परमाणु ऊर्जा विभाग की ही इकाई इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल) को सौंपी गई है। लेजर फ्लोरीमीटर विकसित करने में अहम भूमिका निभाने वाले आरआरसीएटी के वैज्ञानिक सेंधिलराजा एस. ने बताया कि वर्ष 1996 में लेजर फ्लोरीमीटर सरीखा उपकरण 19 लाख रुपए प्रति इकाई की दर पर कनाडा से आयात किया जाता था।
सेंधिलराजा ने बताया कि हमने सतत् अनुसंधान के जरिए सुधार करते हुए स्वदेशी तकनीक वाला उन्नत लेजर फ्लोरीमीटर तैयार किया है। इसे बनाने में हमें महज 1 लाख रुपए का खर्च आया है। बड़े पैमाने पर उत्पादन की स्थिति में इसकी कीमत और घट सकती है। सेंधिलराजा ने बताया कि यह उपकरण जल के नमूने में 0.1 पीपीबी (पार्ट्स-पर-बिलियन) की बेहद बारीक इकाई से लेकर 100 पीपीबी तक यूरेनियम के अंशों की जांच कर सकता है।
गौरतलब है कि परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (एईआरबी) ने पेयजल में यूरेनियम के अंशों की अधिकतम स्वीकृत सीमा 60 पीपीबी तय कर रखी है। विशेषज्ञों ने चेताया है कि लोगों को अपनी सेहत की हिफाजत के मद्देनजर ऐसे स्रोतों के पानी का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए जिनमें यूरेनियम के अंश एईआरबी की तय सीमा से ज्यादा मात्रा में पाए जाते हैं।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ हेड एंड नेक ऑन्कोलॉजी के सचिव और देश के वरिष्ठ कैंसर सर्जन दिग्पाल धारकर ने कहा कि यूरेनियम एक रेडियोएक्टिव तत्व है। अगर किसी जलस्रोत में यूरेनियम के अंश तय सीमा से ज्यादा हैं, तो इसके पानी के इस्तेमाल से थायरॉइड कैंसर, रक्त कैंसर, बोन मैरो डिप्रेशन और अन्य गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। इससे बच्चों को भी कैंसर होने का खतरा होता है।