अमेरिका के ह्यूस्टन में माइकल नाम के एक लड़के का जन्म हुआ। स्कूल की पढ़ाई के बाद बॉयलॉजी पढ़ने के लिए उसका टेक्सास विश्वविद्यालय में दाखिल हो गया। माता-पिता चाहते थे कि उनका होनहार बेटा डॉक्टर बने।
माता-पिता ने उसे १५ साल की उम्र में कम्प्यूटर भी लाकर दिया। माइकल की कम्प्यूटर में खासी रुचि थी। और फिर एक ही साल बाद माइकल का बॉयलॉजी से मन उचट गया। माइकल को कम्प्यूटर ज्यादा रोमांचक लगने लगा। माइकल का दिमाग इसमें दौड़ने लगा कि आखिर कम्प्यूटर काम कैसे करता है। माइकल ने अपने कम्प्यूटर के सारे पुर्जे खोलकर देखे कि आखिर यह बना कैसे है। माता-पिता को माइकल का ऐसा करना अजीब भी लगा।
एक कंपनी के कम्प्यूटर को खोल देने के बाद माइकल दूसरी कंपनी का कम्प्यूटर खरीदकर लाया और उसे भी खोलकर देखा और समझा। दौड़-भाग रंग लाई।
माइकल की समझ में आ गया कि कम्प्यूटर कैसे काम करता है। और फिर माइकल ने स्टूडेंट रहते हुए डाक टिकट और अखबार बेचकर जो थोड़े बहुत पैसे कमाए थे, उनसे १९८४ में यूनिवर्सिटी के अपने कमरे में खुद कम्प्यूटर बनाना शुरू किया। उसने कम्प्यूटर बना भी लिया। माइकल का सोचना था कि ग्राहकों की जरूरत के हिसाब से कम्प्यूटर बनाना चाहिए। माइकल ने कंपनी शुरू कर दी और नाम रखा पीसी"ज लिमिटेड।
माइकल ग्राहकों को सीधे कम्प्यूटर बेचने में विश्वास करता था इसलिए उसके कम्प्यूटर सस्ते थे। फिर वह ग्राहकों की सुविधा का भी ध्यान रखता था। तो उसकी तरकीब और कारोबार दोनों चल निकले। १९८३ में माइकल ने कंपनी का नाम बदला और नया दिया- डेल कम्प्यूटर कॉर्पोरेशन। धीरे-धीरे कारोबार बढ़ता गया, क्योंकि माइकल डेल के काम करने का तरीका लोगों को बहुत पसंद आया। जब माइकल की उम्र २७ साल थी, तभी उसकी कंपनी की दुनियाभर में धूम मच गई।
माइकल डेल दुनिया के सफलतम सीईओ की फोर्ब्स सूची में शामिल हो गए। आज माइकल डेल की कंपनी कम्प्यूटर के साथ अन्य बहुत-सी चीजों का कारोबार भी करती है। यह सब कुछ माइकल डेल के तेज बुद्धि के कारण संभव हुआ और महत्वपूर्ण बात तो यह है कि माइकल ने जब काम शुरू किया था, तब वह किशोरावस्था में ही थे।