Dharma Sangrah

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

एक अद्वितीय शासक और लोकमाता: रानी अहिल्याबाई होल्कर की प्रेरणादायक गाथा

Advertiesment
हमें फॉलो करें who was Ahilyabai Holkar

WD Feature Desk

, गुरुवार, 29 मई 2025 (15:47 IST)
ahilya bai holkar biography in hindi: भारतीय इतिहास के पन्नों में कुछ ऐसे नाम दर्ज हैं, जिन्होंने अपने असाधारण साहस, कुशल नेतृत्व और दूरदर्शिता से न केवल अपने राज्य की सीमाओं को सुरक्षित रखा, बल्कि जन कल्याण के ऐसे कार्य किए कि उन्हें आज भी 'लोकमाता' के रूप में पूजा जाता है। इन्हीं में से एक हैं रानी अहिल्याबाई होल्कर, जो 18वीं शताब्दी की एक महान योद्धा, कुशल प्रशासक और दूरदर्शी शासिका थीं। उनका जीवन संघर्ष, त्याग और सेवा का अद्भुत संगम है।

प्रारंभिक जीवन और चुनौतियाँ
रानी अहिल्याबाई होल्कर का जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र राज्य के चौंढी नामक गाँव में एक साधारण परिवार में हुआ था। इतिहासकार ई. मार्सडेन के अनुसार, एक सामान्य रूप से शिक्षित बालिका अहिल्याबाई का विवाह मात्र 10 वर्ष की अल्पायु में होल्कर राजवंश के संस्थापक मल्हारराव होल्कर के पुत्र खंडेराव से हो गया था। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था, क्योंकि वे बहुत कम उम्र में ही वे विधवा हो गईं। यह उनके जीवन की पहली बड़ी त्रासदी थी।

होल्कर वंश के संस्थापक मल्हारराव होल्कर के बाद, अप्रत्याशित परिस्थितियों में अहिल्याबाई ने मालवा राज्य की बागडोर संभाली। शादी के बाद उन्हें एक पुत्र (मालेराव) और एक पुत्री (मुक्ताबाई) का सुख प्राप्त हुआ, लेकिन यह खुशी भी अल्पकालिक साबित हुई। पति के निधन के कुछ सालों बाद ही उनके ससुर मल्हारराव होल्कर का भी देहांत हो गया। इसके बाद, अहिल्याबाई पर राज-काज संभालने का भारी भार आ गया। शासन संभालने के कुछ ही दिनों बाद, साल 1767 में उनके जवान पुत्र मालेराव की भी मृत्यु हो गई। पति, जवान पुत्र और पिता समान ससुर को खोने के बाद भी उन्होंने जिस धैर्य और साहस से काम लिया, वह वास्तव में सराहनीय है और एक साधारण स्त्री के असाधारण बन जाने का परिचायक है।

कुशल शासन और जन कल्याण के अतुलनीय कार्य
अपने पति की मृत्यु के बाद, युवा अहिल्याबाई ने राज्य की बागडोर संभाली और एक कुशल शासक के रूप में अपनी पहचान बनाई। उन्होंने यह साबित कर दिया कि राज-काज चलाने के लिए केवल शक्ति नहीं, बल्कि बुद्धिमत्ता, न्याय और प्रजा-प्रेम की भी आवश्यकता होती है। उनके शासनकाल की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
राज्य का विस्तार और सुरक्षा: उन्होंने अपने राज्य की सीमाओं को सुरक्षित रखा और कई आक्रमणों का वीरतापूर्वक सामना किया। वे व्यक्तिगत रूप से युद्धों में शामिल होती थीं और अपनी सेना का नेतृत्व करती थीं।
सामाजिक सुधार: उन्होंने तत्कालीन समाज में व्याप्त सामाजिक बुराइयों को मिटाने का प्रयास किया। वे न्यायप्रिय थीं और प्रजा के हित को सर्वोपरि मानती थीं।
मंदिरों और धार्मिक स्थलों का जीर्णोद्धार: रानी अहिल्याबाई का सबसे महत्वपूर्ण योगदान देश भर में धार्मिक और सार्वजनिक संरचनाओं का निर्माण और जीर्णोद्धार था। उन्होंने अपने राज्य की सीमाओं के बाहर भारत-भर के प्रसिद्ध तीर्थों और स्थानों में मंदिर बनवाए, घाट बँधवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण किया, मार्ग बनवाए-सुधरवाए, भूखों के लिए अन्नसत्र (अन्यक्षेत्र) खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बिठलाईं, और मंदिरों में विद्वानों की नियुक्ति शास्त्रों के मनन-चिंतन और प्रवचन हेतु की। उनके मुख्य योगदानों में 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार और वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
महिला सशक्तिकरण: उन्होंने महिलाओं की शिक्षा और उन्नति के लिए जीवनपर्यंत प्रयत्न किया। उन्होंने महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए विशेष योगदान दिए और उन्हें समाज में सम्मानजनक स्थान दिलाने के लिए कार्य किया।

एक अमर विरासत
महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने अपने इन सभी कार्यों से न केवल अपनी वीरता और साहस का परिचय दिया, बल्कि एक ऐसी विरासत भी छोड़ी जो आज भी प्रासंगिक है। 13 अगस्त 1795 को इंदौर राज्य में अहिल्याबाई होल्कर की मृत्यु हुई। उनकी मृत्यु की तिथि भाद्रपद कृष्णा चतुर्दशी थी, जिस दिन उन्होंने इस नश्वर संसार को अलविदा कहा।

अहिल्याबाई होल्कर का जीवन एक प्रेरणा है कि कैसे व्यक्तिगत दुखों और चुनौतियों के बावजूद कोई व्यक्ति अपने कर्तव्य पथ पर अडिग रहकर जन-कल्याण के लिए कार्य कर सकता है। उन्हें आज भी राजमाता के रूप में सम्मान दिया जाता है, क्योंकि उन्होंने शासक के रूप में नहीं, बल्कि एक माँ के रूप में अपनी प्रजा की सेवा की। उनकी दूरदर्शिता, न्यायप्रियता और धार्मिक निष्ठा ने उन्हें भारतीय इतिहास की महानतम शासिकाओं में से एक बना दिया है। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि सच्चा नेतृत्व केवल शक्ति में नहीं, बल्कि सेवा, त्याग और समर्पण में निहित होता है।
अस्वीकरण (Disclaimer) : सेहत, ब्यूटी केयर, आयुर्वेद, योग, धर्म, ज्योतिष, वास्तु, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार जनरुचि को ध्यान में रखते हुए सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। इससे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

31 मई को लोकमाता अहिल्या बाई की जयंती: अपने परिजनों, मित्रों को भेजें ये 10 सुंदर मैसेज