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प्रेरक प्रसंग : तिलक का साहस

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बाल गंगाधर तिलक के स्‍कूली जीवन की एक और यादगार घटना है। एक बार उनकी कक्षा के सारे बच्‍चे बैठे मूंगफली खा रहे थे। उन लोगों ने मूंगफली के छिल्के कक्षा में ही फेंक दिए और चारों ओर गंदगी फैला दी।

कुछ देर बाद जब उनके शिक्षक कक्षा में आए तो कक्षा को गंदा देखकर बहुत नाराज हो गए। उन्‍होंने अपनी छड़ी निकाली और लाइन से सारे बच्‍चों की हथेली पर छड़ी से 2-2 बार मारने लगे।
 
जब तिलक की बारी आई तो उन्‍होंने मार खाने के लिए अपना हाथ आगे नहीं बढ़ाया। जब शिक्षक ने कहा कि अपना हाथ आगे बढ़ाओ, तब उन्‍होंने कहा कि मैंने कक्षा को गंदा नहीं किया है इसलिए मैं मार नहीं खाऊंगा।
 
उनकी बात सुनकर टीचर का गुस्‍सा और बढ़ गया। टीचर ने उनकी शिकायत प्राचार्य से कर दी। इसके बाद तिलक के घर पर उनकी शिकायत पहुंची और उनके पिताजी को स्‍कूल आना पड़ा।
 
स्‍कूल आकर तिलक के पिता ने बताया कि उनके बेटे के पास पैसे ही नहीं थे। वो मूंगफली नहीं खरीद सकता था। बाल गंगाधर तिलक अपने जीवन में कभी भी अन्‍याय के सामने नहीं झुके।
 
उस दिन अगर शिक्षक के डर से तिलक ने स्‍कूल में मार खा ली होती तो शायद उनके अंदर का साहस बचपन में ही समाप्‍त हो जाता।
 
इस घटना से हम सभी को एक सबक मिलता है। यदि गलती न होने पर भी हम सजा स्‍वीकार कर लें तो यह माना जाएगा कि गलती में हम भी शामिल थे।
 
'स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और वो मैं लेकर ही रहूंगा' इस नारे को देने वाले बाल गंगाधर तिलक का नाम भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। 

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