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शहीद दिवस विशेष : 19 दिसंबर, अशफाक उल्ला खां की पुण्यतिथि

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Ashfaq Ulla Khan : भारत के प्रसिद्ध अमर शहीद क्रांतिकारियों में अशफाक उल्ला खां नाम भी खास तौर पर लिया जाता है। वे भारत के उन वीरों में से एक थे, जिन्होंने देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों का बलिदान दे दिया।

आज उनकी पुण्यतिथि पर जानें उनके बारे में-
 
1. महान स्वतंत्रता सेनानी अशफाक उल्ला खां का जन्म 22 अक्टूबर 1900 ई. में उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर स्थित शहीदगढ़ में हुआ था। 
 
2. उनके पिता का नाम मोहम्मद शफीक उल्ला खान और उनकी मां का नाम मजहूरुन्निशां बेगम था। वे पठान परिवार से ताल्लुक रखते थे और उनके परिवार में लगभग सभी सरकारी नौकरी में थे।
 
3. अशफाक का मन बाल्याकाल में पढ़ाई में बिलकुल नहीं लगता था, बल्कि उनको तो तैराकी, घुड़सवारी, निशानेबाजी में अधिक रुचि थी। अपने छह भाई-बहनों में वे सबसे छोटे थे। 
 
4. उन्हें कविताएं लिखने का काफी शौक था, जिसमें वे अपना उपनाम हसरत लिखा करते थे। अपने पूरे जीवन काल में अशफाक, हमेशा हिन्दू-मुस्लिम एकता के पक्षधर रहे। 
 
5. उन पर महात्मा गांधी का काफी प्रभाव था, लेकिन जब गांधी जी ने चौरीचौरा की घटना के बाद असहयोग आंदोलन वापस ले लिया। उन दिनों देश में चल रहे आंदोलनों और क्रांतिकारी घटनाओं से प्रभावित अशफाक के मन में क्रांतिकारी भावना जागी और उस समय उनकी मुलाकात मैनपुरी षड्यंत्र के मामले में शामिल रामप्रसाद बिस्मिल से हुई और वे भी क्रांति की दुनिया में शामिल हो गए। 
 
6. इसके बाद वे ऐतिहासिक काकोरी कांड में सहभागी रहे और पुलिस के हाथ भी नहीं आए। इस घटना के बाद उन्होंने बनारस आकर एक इंजीनियरिंग कंपनी में काम शुरू किया और वहां से कमाए गए पैसों से अपने क्रांतिकारी साथियों की मदद भी की। 
 
7. एक बार काम के संबंध में विदेश जाने के लिए वे अपने एक पठान मित्र के संपर्क में आए, जिसने उनके साथ छल किया और पैसों के लालच में अंग्रेज पुलिस को सूचना देकर अशफाक उल्ला खां को पकड़वा दिया। उनके पकड़े जाने के बाद जेल में उन्हें कई तरह की यातनाएं दी गई और सरकारी गवाह बनाने की भी कोशिश की गई। परंतु अशफाक ने इस प्रस्ताव को कभी मंजूर नहीं किया। 
 
8. अशफाक को फैजाबाद जेल में रखा गया और उन पर मुकदमा चलाया गया। स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में यह मुकदमा काकोरी डकैती कांड के रूप में दर्ज हुआ। अशफाक उल्ला खां को 19 दिसंबर 1927 को फैजाबाद जेल में फांसी दे दी गई। 
 
9. अशफाक ने हंसते हुए फांसी का फंदा चूमा और अपने अंतिम संदेश में कहा 'देश के लिए फांसी पर चढ़ने में मुझे बेहद गर्व है। अंग्रेजों का सूरज जरूर डूबेगा और हिन्दुस्तान आजाद होकर रहेगा'। 
 
10. साथ ही काकोरी कांड मामले में 19 दिसंबर 1927 को रामप्रसाद बिस्मिल को भी फांसी दे दी गई। इस घटना ने आजादी की लड़ाई में हिन्दू-मुस्लिम एकता को और भी अधिक मजबूत कर दिया।


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