Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

आनुवांशिक इंजीनियरिंग के अग्रणी वैज्ञानिक डॉ. हरगोविंद खुराना

Advertiesment
हमें फॉलो करें Dr. Har Govind Khorana
* जब खुलने लगे आनुवांशिक कोड में छिपे जीवन के रहस्य
 
-  नवनीत कुमार गुप्ता
 
नई दिल्ली। जीवों के रंग-रूप और संरचना को निर्धारित करने में आनुवांशिक कोड की भूमिका अहम होती है। इसकी जानकारी मिल जाए तो बीमारियों से लड़ना आसान हो जाता है। आनुवांशिक कोड की भाषा समझने और उसकी प्रोटीन संश्लेषण में भूमिका का प्रतिपादन भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक डॉ. हरगोविंद खुराना खुराना ने किया था। 
 
डॉ. खुराना को एक ऐसे वैज्ञानिक के तौर पर जाना जाता है, जिन्होंने डीएनए रसायन में अपने उम्दा काम से जीव रसायन के क्षेत्र में क्रांति ला दी। वर्ष 1968 में प्रोटीन संश्लेषण में न्यूक्लिटाइड की भूमिका का प्रदर्शन करने के लिए उन्हें चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार दिया गया। उन्हें यह पुरस्कार दो अन्य अमेरिकी वैज्ञानिकों डॉ. राबर्ट होले और डॉ. मार्शल निरेनबर्ग के साथ साझा तौर पर दिया गया था। 
 
इन तीनों वैज्ञानिकों ने डीएनए अणु की संरचना को स्पष्ट किया और बताया कि डीएनए प्रोटीन्स का संश्लेषण किस प्रकार करता है। डॉ. हरगोविंद खुराना नोबेल पुरस्कार पाने वाले भारतीय मूल के तीसरे व्यक्ति थे। नोबेल पुरस्कार के बाद अमेरिका ने डॉ. खुराना को ‘नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस’ की सदस्यता प्रदान की। यह सम्मान केवल विशिष्ट अमेरिकी वैज्ञानिकों को ही दिया जाता है।
 
डॉ. खुराना को आनुवांशिक इंजीनियरिंग (बायो टेक्नोलॉजी) विषय की बुनियाद रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए भी याद किया जाता है। आनुवांशिक इंजीनियरिंग में डॉ. खुराना के महत्वपूर्ण योगदान को उनके जन्मदिन के मौके पर याद करते गूगल ने भी डूडल तैयार किया है। 
 
डॉ. हरगोविंद खुराना का जन्म 9 जनवरी, 1922 में अविभाजित भारत के रायपुर (जिला मुल्तान, पंजाब) नामक कस्बे में हुआ था। प्रतिभावान विद्यार्थी होने के कारण विद्यालय तथा कॉलेज में डॉ. खुराना को छात्रवृत्तियां मिलीं। पंजाब विश्वविद्यालय से एमएससी की पढ़ाई पूरी करके वह भारत सरकार से छात्रवृत्ति पाकर उच्च अध्ययन के लिए इंग्लैंड गए। वहां लिवरपूल विश्वविद्यालय में प्रोफेसर एम. रॉबर्टसन के मार्गदर्शन में उन्होंने अपना शोध कार्य पूरा किया और डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। 
 
कुछ समय बाद एक बार फिर भारत सरकार ने उन्हें शोधवृत्ति प्रदान की और उन्हें जूरिख (स्विट्जरलैंड) के फेडरल इंस्टिटयूट ऑफ टेक्नोलॉजी में प्रोफेसर वी. प्रेलॉग के साथ शोध कार्य करने का अवसर मिल गया। हालांकि, यह विडंबना ही थी कि भारत में वापस आने पर डॉ. खुराना को मन मुताबिक कोई काम नहीं मिल सका और वह इंग्लैंड चले गए। 
 
इंग्लैंड में कैंब्रिज विश्वविद्यालय में नोबेल पुरस्कार विजेता प्रो. अलेक्जेंडर टॉड के साथ उन्हें कार्य करने का अवसर मिला। वर्ष 1952 में खुराना वैकवर (कनाडा) के ब्रिटिश कोलंबिया अनुसंधान परिषद के जैव-रसायन विभाग के अध्यक्ष नियुक्त हुए। वर्ष 1960 में डॉ. खुराना को अमेरिका के विस्कान्सिन विश्वविद्यालय में प्रोफेसर का पद प्रदान किया गया और 1966 में उन्होंने अमेरिकी नागरिकता ग्रहण कर ली।
 
वहां रहकर डॉ. खुराना जीव-कोशिकाओं के नाभिकों की रासायनिक संरचना के अध्ययन में लगे रहे। वैसे तो नाभिकों के नाभिकीय अम्लों के संबंध में खोज काफी वर्षों से चल रही थी, पर डॉक्टर खुराना की विशेष पद्धतियों से उसमें नया मोड़ आया। 
 
1960 के दशक में खुराना ने निरेनबर्ग की इस खोज की पुष्टि की कि डीएनए अणु के घुमावदार ‘सोपान’ पर चार विभिन्न प्रकार के न्यूक्लियोटाइड के विन्यास का तरीका नई कोशिका की रासायनिक संरचना और कार्य को निर्धारित करता है। डीएनए के एक तंतु पर इच्छित अमीनो-अम्ल उत्पादित करने के लिए न्यूक्लियोटाइड के 64 संभावित संयोजन पढ़े गए हैं, जो प्रोटीन के निर्माण के खंड हैं। 
 
खुराना ने इस बारे में आगे जानकारी दी कि न्यूक्लियोटाइड्स का कौन-सा क्रमिक संयोजन किस विशेष अमीनो अम्ल को बनाता है। उन्होंने इस बात की भी पुष्टि की कि न्यूक्लियोटाइड कूट कोशिका को हमेशा तीन के समूह में प्रेषित किया जाता है, जिन्हें प्रकूट (कोडोन) कहा जाता है। उन्होंने यह भी पता लगाया कि कुछ प्रकूट कोशिका को प्रोटीन का निर्माण शुरू या बंद करने के लिए प्रेरित करते हैं।  
 
डॉ. खुराना के अध्ययन का विषय न्यूक्लियोटाइड नामक उपसमुच्चयों की अत्यंत जटिल मूल रासायनिक संरचनाएं थीं। डॉ. खुराना इन समुच्चयों का योग कर दो महत्वपूर्ण वर्गों के न्यूक्लिप्रोटिड इन्जाइम नामक यौगिकों को बनाने में सफल हुए। नाभिकीय अम्ल सहस्रों एकल न्यूक्लियोटाइडों से बनते हैं। जैव कोशिकओं के आनुवांशिकीय गुण इन्हीं जटिल बहु-न्यूक्लियोटाइडों की संरचना पर निर्भर रहते हैं। डॉ. खुराना ग्यारह न्यूक्लियोटाइडों का योग करने में सफल हो गए थे और फिर वे ज्ञात श्रृंखलाबद्ध न्यूक्लियोटाइडों वाले न्यूक्लीक अम्ल का संश्लेषण करने में सफल हुए। उनके कार्यों से बाद में ऐमिनो अम्लों की संरचना तथा आनुवांशिकीय गुणों का संबंध समझना संभव हो गया है। 
 
डॉ. खुराना ने 1970 में आनुवंशिकी में एक और योगदान दिया, जब वह और उनका अनुसंधान दल एक खमीर जीन की पहली कृत्रिम प्रतिलिपि संश्लेषित करने में सफल रहे। वह अंतिम समय तक अध्ययन, अध्यापन और अनुसंधान कार्य से जुड़े रहे। इस प्रख्यात वैज्ञानिक का देहांत 9 नवंबर, 2011 को अमेरिका के मैसाचुसेट्स में हुआ।
 
भारत सरकार ने वर्ष 1969 में डॉ. खुराना को पद्यभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया था। चिकित्सा के क्षेत्र डॉ. खुराना के कार्यों को सम्मान देने के लिए विस्कोसिंन मेडिसन यूनिवर्सिटी, भारत सरकार और इंडो-यूएस सांइस एंड टेक्नोलॉजी फोरम ने संयुक्त रूप से 2007 में खुराना प्रोग्राम प्रारंभ किया है। (इंडिया साइंस वायर)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

क्या आप जानते हैं मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व