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महान स्वतंत्रता सेनानी गोपाल कृष्ण गोखले

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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी रहे गोपाल कृष्ण गोखले महान स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ ही एक मंझे हुए राजनीतिज्ञ भी थे। महात्मा गांधी ने राजनीति के बारे में उनसे बहुत कुछ सीखा और इसीलिए वह राष्ट्रपिता के राजनीतिक गुरु कहलाए।

महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में 9 मई 1866 को जन्मे गोखले अपनी शिक्षा दीक्षा के दौरान अत्यंत मेधावी छात्र थे। गोखले का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था और उनके पिता कृष्ण राव पेशे से क्लर्क थे। पढ़ाई में सराहनीय प्रदर्शन के लिए जब उन्हें सरकार की ओर से 20 रुपए की छात्रवृत्ति मिलनी शुरू हुई तो उन्हें शिक्षकों और सहपाठियों की काफी सराहना मिली।
 
इतिहासकार एच.एन. कुमार का कहना है कि अधिकतर लोग गोखले को सिर्फ महात्मा गांधी के राजनीतिक गुरु के रूप में ही जानते हैं लेकिन वह सिर्फ राष्ट्रपिता ही नहीं बल्कि मोहम्मद अली जिन्ना के भी राजनीतिक गुरु थे। उनका मानना है कि यदि आजादी के समय गोखले जीवित होते तो शायद जिन्ना देश के बंटवारे की बात रखने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। 
 
इतिहास के प्रोफेसर के.के. सिंह का कहना है कि गांधी जी को अहिंसा के जरिए स्वतंत्रता आंदोलन की प्रेरणा गोखले से ही मिली थी। उन्हीं की प्रेरणा से गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ आंदोलन चलाया। उन्होंने कहा कि गांधी जी के आमंत्रण पर 1912 में गोखले खुद भी दक्षिण अफ्रीका गए और रंगभेद की निन्दा की तथा इसके खिलाफ आंदोलन के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया।
 
जन नेता कहे जाने वाले गोखले एक नरमपंथी सुधारवादी थे। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान देने के साथ ही देश में व्याप्त जातिवाद और छुआछूत के खिलाफ भी संघर्ष किया।
 
वह जीवनभर हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए काम करते रहे और मोहम्मद अली जिन्ना ने भी उन्हें अपना राजनीतिक गुरु माना। यह बात अलग है कि बाद में जिन्ना देश के बंटवारे का कारण बने और गोखले द्वारा दी गई शिक्षा का पालन नहीं किया।
 
गोखले पुणे के फर्ग्युसन कॉलेज के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। उन्होंने इस कॉलेज में अध्यापन का कार्य करने के साथ ही राजनीतिक गतिविधियां भी जारी रखीं।
 
गोखले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और सर्वेंट्स सोसायटी ऑफ इंडिया के सम्मानित सदस्य भी थे। ऐसे महान स्वतंत्रता सेनानी गोखले की देशभक्ति आध्‍यात्मिकता पूर्ण थी। भारत भूमि को गुलामी से आजाद कराने के लिए जन्मे इस वीर सपूत का 19 फरवरी 1915 को निधन हो गया। 
 

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