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ज्योतिबा फुले जयंती, जानिए महात्मा के बारे में 5 खास बातें

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1. 11 अप्रैल 1827 को महात्मा ज्योतिबा फुले (Jyotiba Phule) का जन्म पुणे में हुआ था। उन्होंने अपने जीवन काल में देश से छुआछूत खत्म करने और समाज को सशक्त बनाने के लिए अहम किरदार निभाया। ज्योतिबा फुले के पिता का नाम गोविंदराव तथा माता का नाम चिमणाबाई था। तथा उनका विवाह 1840 में सावित्रीबाई से हुआ था। 
 
2. ज्योतिराव गोविंदराव फुले का अध्ययन मराठी भाषा में हुआ था। ज्योतिबा बहुत बुद्धिमान थे। वे महान क्रांतिकारी, भारतीय विचारक, समाजसेवी, लेखक एवं दार्शनिक थे। उनका परिवार कई पीढ़ियों पहले माली का काम करता था। और वे सातारा से पुणे फूल लाकर फूलों के गजरे आदि बनाने का काम करते थे, इसलिए उनकी पीढ़ी 'फुले' के नाम से जानी जाती थी। 
 
3. उन दिनों महाराष्ट्र में धार्मिक सुधार आंदोलन जोरों पर था। तब जाति-प्रथा का विरोध करने और एकेश्‍वरवाद को अमल में लाने के लिए ‘प्रार्थना समाज’ की स्थापना की गई थी, उस समय महाराष्ट्र में जाति-प्रथा बड़े ही वीभत्स रूप में फैली हुई थी। प्रार्थना समाज के प्रमुख गोविंद रानाडे और आरजी भंडारकर थे। उस जमाने में स्त्रियों की शिक्षा को लेकर लोग बहुत उदासीन थे, अत: ऐसे समय में ज्योतिबा ने समाज को कुरीतियों से मुक्त करने के लिए बड़े पैमाने पर आंदोलन चलाए। 
 
 
4. ज्योतिबा के कई प्रमुख सुधार आंदोलनों के अतिरिक्त हर क्षेत्र में छोटे-छोटे आंदोलन जारी थे, जिसने सामाजिक और बौद्धिक स्तर पर लोगों को परतंत्रता से मुक्त करने का कार्य किया था। ज्योतिबा ने महाराष्ट्र में सर्वप्रथम महिला शिक्षा तथा अछूतोद्धार का काम आरंभ किया था तथा पुणे में लड़कियों के लिए भारत की पहला विद्यालय खोला। अत: लड़कियों और दलितों के लिए पहली पाठशाला खोलने का श्रेय ज्योतिबा फुले को दिया जाता है। लोगों में नए विचार, नए चिंतन की शुरुआत, और आजादी की लड़ाई में उनके संबल बनने का श्रेय भी ज्योतिबा को ही जाता है। 
 
5. ज्योतिबा ने किसान और मजदूरों के हकों के लिए भी संगठित प्रयास किया था। ऐसे महान समाजसेवी ने अछूतोद्धार करने के लिए सत्यशोधक समाज स्थापित किया था। उन्हें सन् 1888 में 'महात्मा' की उपाधि दी गई और पुणे में 28 नवंबर 1890 को उनका निधन हुआ था।

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