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संस्कृत से की पढ़ाई, उर्दू में की शायरी, अब होंगे पद्मश्री से सम्मानित, जानिए ब्राह्मण से बने शीन काफ निजाम का सफर

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हमें फॉलो करें संस्कृत से की पढ़ाई, उर्दू में की शायरी, अब होंगे पद्मश्री से सम्मानित, जानिए ब्राह्मण से बने शीन काफ निजाम का सफर

WD Feature Desk

, बुधवार, 29 जनवरी 2025 (16:37 IST)
Padma Shri Award 2025: भारत के साहित्य जगत में एक ऐसा नाम है जिसने संस्कृत और उर्दू दोनों भाषाओं पर समान रूप से महारत हासिल की है। वह हैं शीन काफ निजाम, जिन्हें हाल ही में उनके उत्कृष्ट साहित्यिक योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। जोधपुर के कल्लों की गली में 26 नवम्बर 1945 को गणेश दास बिस्सा के घर जन्म हुआ था शीन काफ निजाम का। एक ब्राह्मण शिवकिशन कैसे बन गए'शीन काफ निजाम'? आइये जानते हैं।

बिस्सा ने अपना नाम निजाम क्यों रखा?
जोधपुर के रहने वाले बिस्सा बिजली विभाग से सेवानिवृत हैं। उर्दू के साथ साथ वे फारसी भाषा के भी अच्छे जानकर हैं। शिवकिशन बिस्सा एक पुष्करणा ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए। उनकी शुरूआती शिक्षा भी संस्कृत में हुई, लेकिन उर्दू भाषा और साहित्य में दिलचस्पी होने के कारण उन्होंने अपने नाम को ही उर्दू में ढाल लिया। और इस तरह ने अपने नाम के इनिशिअल्स एस को उर्दू के शीन और के को काफ में बदल लिया । निजाम उनका ‘तखल्लुस'(शायर का उपनाम) है। और इस तरह उनका नाम ‘शीन काफ निजाम’ हुआ। निजाम भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में मुशायरे कर चुके हैं। उनके कई मुशायरे और शायरियां लिखी और पढ़ी जाती हैं।

संस्कृत से उर्दू तक का सफर
यह अक्सर देखा जाता है कि लोग एक भाषा पर ही महारत हासिल करते हैं। लेकिन शीन काफ निजाम ने संस्कृत और उर्दू दोनों भाषाओं पर समान रूप से महारत हासिल की। उन्होंने संस्कृत की गहराई और उर्दू की मिठास को अपनी शायरी में बखूबी पिरोया है।

दिलीप कुमार और गुलज़ार से है नाता
निजाम साहब का नाम सिर्फ साहित्य जगत में ही नहीं बल्कि बॉलीवुड में भी सम्मान से लिया जाता रहा है। सालों पहले जोधपुर में एक सिनेमा घर के उद्घाटन के लिए मशहूर अभिनेता दिलीप कुमार को आमंत्रित किया गया, तब दिलीप साहब ने आयोजकों से साफ कहा कि वह तभी कार्यक्रम में आएंगे, जब उस प्रोग्राम में निजाम साहब साथ होंगे।

ऐसे ही एक बार मशहूर गीतकार साहित्यकार गुलजार जो शीन काफ निजाम के अच्छे मित्र रहे हैं, जब जोधपुर आए, तो वे उनसे मिलने के लिए शहर के 5 स्टार होटल से निकल कर जोधपुर की तंग गालियों से होते हुए स्कूटर से उनके घर पहुंचे थे

निजाम की मशहूर किताबें
निजाम की लम्हों की सलीब, नाद, दश्त में दरिया, साया कोई लम्बा नहीं था, सायों के साये में, बयाजे खो गई है, गुमशुदा दैर की गूंजती घंटियां, रास्ता ये कहीं नहीं जाता, और भी है नाम रस्ते का।। जैसी कई किताबें प्रकाशित हुईं। वहीं तनकीद यानी आलोचना में तज़्किरा, मुआसिर शो रा-ए-जोधपुर, मंटो-एहतिजाज और अफसाना, लफ्ज दर लफ्ज मा नी दर मा नी, संपादित पुस्तकें गालिबयात और गुप्ता रिजा, भीड़ में अकेला, दीवाने-गालिब हैं। उर्दू शायरों की 05 पुस्तकें जो नन्दकिशोर आचार्य के साथ संपादित की गईं। इसके अलावा कई लेख जो राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार में पढ़े गए और प्रकाशित हुए। साहित्यिक पत्रिकाएं भी शामिल हैं।

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निजाम को मिले सम्मान
शीन काफ निजाम को कई पुरस्कार एवं सम्मान मिले, जिसमें राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित, साहित्य अकादमी अवार्ड 2010, राष्ट्रीय इकबाल सम्मान 2006-07, राष्ट्रीय भाषा भारती सम्मान केन्द्रीय भाषा संस्थान मैसूर, बेगम अख्तर गजल अवार्ड 2006, रामानन्द आचार्य सप्त शताब्दी महोत्सव समिति काशी द्वारा सम्मानित, राजस्थान उर्दू अकादमी जयपुर के सर्वोच्च सम्मान महमूद शीरानी अवार्ड, मेहरानगढ़ म्यूजियम ट्रस्ट द्वारा मारवाड़ रत्न एवं राजा मानसिंह सम्मान, शाने-उर्दू अवार्ड,आचार्य विद्यानिवास मिश्र स्मृति सम्मान और संस्कृति सौरभ सम्मान कोलकता शामिल हैं।




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