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भारत के विज्ञानी 'आचार्य प्रफुल्लचन्द्र राय'

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* 28 फरवरी : राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर विशेष 
* आचार्य प्रफुल्लचन्द्र राय

वे कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में रसायन विभाग के प्राध्यापक थे। उस जमाने में शिक्षा के क्षेत्र में अंग्रेजों का ही बोलबाला था। देश पर उनका शासन जो था। एक दिन एक अंग्रेज ने ताना कसा कि 'विदेशी दवाओं के सामने देशी दवाएं भला क्या टिकेंगी?'
 
भला एक देशभक्त भारतीय वैज्ञानिक को यह बात कैसे सहन होती? बातों का जवाब बातों से नहीं, काम से मिला। उन्होंने बंगाल केमिकल्स की स्थापना की और वह कर दिखाया, जो वह अंग्रेज असंभव मानता था।
 
हिस्ट्री ऑफ हिन्दू केमिस्ट्री (हिन्दू रसायन का इतिहास) नामक अत्यंत प्रामाणिक बृहद ग्रंथ लिखा और सारी दुनिया को प्राचीन भारत के रसायन विज्ञान की शोधों की श्रेष्ठता मनवा ली। सिद्ध कर दिया कि प्राचीन भारत का रसायन ज्ञान इतना उन्नत था‍ जितना कि पाश्चात्य देशों में 17वीं शताब्दी तक भी न था।
 
वे केवल अपने अनुसंधानों में ही व्यस्त न रहे, अपितु उनका मानना था- 'मैं रसायन शाला का जीव हूं। मगर ऐसे भी अवसर आते हैं, जब समय की आवश्यकता होती है कि परखनली छोड़कर देश की पुकार सुनी जाए।' उन्होंने यह स्वयं करके भी दिखाया भारतीय स्वातंत्र्य आंदोलन में सक्रिय भाग लेने वाले भारत की माटी के इस सच्चे सपूत का नाम था आचार्य प्रफुल्लचन्द्र राय।
 
सत्य है
 
राष्ट्रस्यार्थे न यद् ज्ञानं राष्ट्रस्यार्थे न यद्धनम्।
राष्ट्रस्यार्थे बलंयन्न धिक् तद्ज्ञानं धनम् बलम्।।

 
साभार - देवपुत्र 

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