Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

Rani Laxmibai : रानी लक्ष्मीबाई की वीरता की कहानी, जानें 6 अनसुनी बातें

हमें फॉलो करें Rani Laxmibai : रानी लक्ष्मीबाई की वीरता की कहानी, जानें 6 अनसुनी बातें

WD Feature Desk

, मंगलवार, 19 नवंबर 2024 (11:02 IST)
Rani Lakshmi Bai Warrior queen of Jhansi: अपने वीरता के लिए जानी जाने वाली रानी लक्ष्मीबाई एक जाना-माना नाम है। उनका जन्म एक मराठी ब्राह्मण परिवार में 19 नवंबर 1828 को वाराणसी में हुआ था। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। आइए जानते हैं मराठा रियासत की रानी रही लक्ष्मीबाई के जीवन के बारे में-
 
Highlights 
  • महान वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई के बारे में जानें।
  • रानी लक्ष्मीबाई के चरित्र की क्या विशेषताएं थीं?
  • झांसी की रानी का जन्मदिन आज। 
रानी लक्ष्मीबाई का जीवन परिचय : रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर, 1828 को वाराणसी/ काशी के असीघाट)में हुआ था, बचपन में उन्हें ‘मणिकर्णिका’ नाम से संबोधित किया जाता था और प्यार से ‘मनु’ कहा जाता था। उनके पिता का नाम मोरोपंत ताम्बे और माता का नाम भागीरथी बाई था। लक्ष्मीबाई के पिता बलवंत राव के बाजीराव पेशवा की सेना में सेनानायक थे, इसी कारण मोरोपंत पर पेशवा की कृपा रहने लगी।

सन्‌ 1838 में गंगाधर राव को झांसी का राजा घोषित किया गया। वे विधुर थे। सन्‌ 1850 में मनुबाई से उनका विवाह हुआ। सन्‌ 1851 में उनको पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। उस समय झांसी के कोने-कोने में आनंद की लहर प्रवाहित हुई, लेकिन चार माह पश्चात उस बालक का निधन हो गया। सारी झांसी शोक सागर में निमग्न हो गई। राजा गंगाधर राव को तो इतना गहरा धक्का पहुंचा कि वे फिर स्वस्थ न हो सके और 21 नवंबर 1853 को चल बसे। महाराजा का निधन महारानी के लिए असहनीय था, लेकिन फिर भी वे घबराई नहीं, उन्होंने विवेक नहीं खोया। 
 
क्यों कहा था मनु ने मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी : राजा गंगाधर राव ने अपने जीवनकाल में ही अपने परिवार के बालक दामोदर राव को दत्तक पुत्र मानकर अंग्रेजी सरकार को सूचना दे दी थी। परंतु ईस्ट इंडिया कंपनी की सरकार ने दत्तक पुत्र को अस्वीकार कर दिया। 27 फरवरी 1854 को लार्ड डलहौजी ने गोद की नीति के अंतर्गत दत्तकपुत्र दामोदर राव की गोद अस्वीकृत कर दी और झांसी को अंग्रेजी राज्य में मिलाने की घोषणा कर दी।

पोलिटिकल एजेंट की सूचना पाते ही रानी के मुख से यह वाक्य प्रस्फुटित हो गया, 'मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी'। पर 7 मार्च 1854 को झांसी पर अंग्रेजों का अधिकार हुआ। झांसी की रानी ने पेंशन अस्वीकृत कर दी व नगर के राजमहल में निवास करने लगीं। 
 
यहीं से फूटा था प्रथम स्वाधीनता क्रांति का बीज : यहीं से भारत की प्रथम स्वाधीनता क्रांति का बीज प्रस्फुटित हुआ। अंग्रेजों की राज्य लिप्सा की नीति से उत्तरी भारत के नवाब और राजे-महाराजे असंतुष्ट हो गए और सभी में विद्रोह की आग भभक उठी। लक्ष्मीबाई ने इसको स्वर्ण अवसर माना और क्रांति की ज्वालाओं को अधिक सुलगाया तथा अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने की योजना बनाई।

भारत की जनता में विद्रोह की ज्वाला भभक गई। नवाब वाजिद अली शाह की बेगम हजरत महल, अंतिम मुगल सम्राट की बेगम जीनत महल, स्वयं मुगल सम्राट बहादुर शाह, नाना साहब के वकील अजीमुल्ला शाहगढ़ के राजा, वानपुर के राजा मर्दनसिंह और तात्या टोपे आदि सभी महारानी के इस कार्य में सहयोग देने का प्रयत्न करने लगे। समस्त देश में सुसंगठित और सुदृढ रूप से क्रांति को कार्यान्वित करने की तिथि 31 मई 1857 निश्चित की गई, लेकिन इससे पूर्व ही क्रांति की ज्वाला प्रज्ज्वलित हो गई और 7 मई 1857 को मेरठ में तथा 4 जून 1857 को कानपुर में, भीषण विप्लव हो गए। कानपुर तो 28 जून 1857 को पूर्ण स्वतंत्र हो गया। 
 
अंग्रेजी सेना के छक्के छुड़ाए : अंग्रेजों के कमांडर सर ह्यूरोज ने अपनी सेना को सुसंगठित कर विद्रोह दबाने का प्रयत्न किया। उन्होंने सागर, गढ़कोटा, शाहगढ़, मदनपुर, मडखेड़ा, वानपुर और तालबेहट पर अधिकार कियाऔर नृशंसतापूर्ण अत्याचार किए। फिर झांसी की ओर अपना कदम बढ़ाया और अपना मोर्चा कैमासन पहाड़ी के मैदान में पूर्व और दक्षिण के मध्य लगा लिया। लक्ष्मीबाई पहले से ही सतर्क थीं और वानपुर के राजा मर्दनसिंह से भी इस युद्ध की सूचना तथा उनके आगमन की सूचना प्राप्त हो चुकी थी।

23 मार्च 1858 को झांसी का ऐतिहासिक युद्ध आरंभ हुआ। कुशल तोपची गुलाम गौस खां ने झांसी की रानी के आदेशानुसार तोपों के लक्ष्य साधकर ऐसे गोले फेंके कि पहली बार में ही अंग्रेजी सेना के छक्के छूट गए। रानी लक्ष्मीबाई ने 7 दिन तक वीरतापूर्वक झांसी की सुरक्षा की और अपनी छोटी-सी सशस्त्र सेना से अंग्रेजों का बड़ी बहादुरी से मुकाबला किया। रानी ने खुलेरूप से शत्रु का सामना किया और युद्ध में अपनी वीरता का परिचय दिया। 
 
कालपी प्रस्थान की योजना : झांसी की सुरक्षा और युद्ध के दौरान वे अकेले ही अपनी पीठ के पीछे दामोदर राव को कसकर घोड़े पर सवार होकर अंग्रेजों से युद्ध करती रहीं। बहुत दिन तक युद्ध का क्रम इस प्रकार चलना असंभव था। सरदारों का आग्रह मानकर रानी ने कालपी प्रस्थान किया। वहां जाकर वे शांत नहीं बैठीं। उन्होंने नाना साहब और उनके योग्य सेनापति तात्या टोपे से संपर्क स्थापित किया और विचार-विमर्श किया। रानी की वीरता और साहस का लोहा अंग्रेज मान गए, लेकिन उन्होंने रानी का पीछा किया।

रानी का घोड़ा बुरी तरह घायल हो गया और अंत में वीरगति को प्राप्त हुआ, लेकिन रानी ने साहस नहीं छोड़ा और शौर्य का प्रदर्शन किया। कालपी में महारानी और तात्या टोपे ने योजना बनाई और अंत में नाना साहब, शाहगढ़ के राजा, वानपुर के राजा मर्दनसिंह आदि सभी ने रानी का साथ दिया। रानी ने ग्वालियर पर आक्रमण किया और वहां के किले पर अधिकार कर लिया। इस विजयोल्लास का उत्सव कई दिनों तक चलता रहा लेकिन रानी इसके विरुद्ध थीं। यह समय विजय का नहीं था, अपनी शक्ति को सुसंगठित कर अगला कदम बढ़ाने का था।
 
ग्वालियर का अंतिम युद्ध और वीरगति : इधर सेनापति सर ह्यूरोज अपनी सेना के साथ संपूर्ण शक्ति से रानी का पीछा करता रहा और आखिरकार वह दिन भी आ गया जब उसने ग्वालियर का किला घमासान युद्ध करके अपने कब्जे में ले लिया। रानी लक्ष्मीबाई इस युद्ध में भी अपनी कुशलता का परिचय देती रहीं। एक ऐसी शूरवीर महिला जिन्होंने अपनी सशक्तता से अंग्रेजों से भी लोहा मनवा लिया। एक ऐसी वीरताभरी शख्सियत, जिसके बारे में जितना लिखा जाए कम हैं, क्योंकि स्वतंत्रता आंदोलन के समय उनके इस योगदान के भारत हमेशा उनका ऋणी रहेगा। ऐसी महान तथा भारत को गौरवान्वित करने वाली झांसी की रानी वीरांगना लक्ष्मीबाई वास्तविक अर्थ में आदर्श वीरांगना थीं। 
 
ग्वालियर का अंतिम युद्ध 18 जून 1858 को हुआ, जो रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी सेना का कुशल नेतृत्व करते हुए लड़ा, किंतु इस दौरान वे घायल हो गईं और उन्होंने वीरगति प्राप्त की। इस तरह भारत की महान क्रांतिकारी को हमने खो दिया। आज भी भारत की सशक्त‍ महिलाओं में रानी लक्ष्मीबाई का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। 

अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं, जो विभिन्न सोर्स से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। सेहत या ज्योतिष संबंधी किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। इस कंटेंट को जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है जिसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

19 नवंबर जयंती विशेष : इंदिरा गांधी कौन थीं? जानें 8 खास बातें