Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

जानिए शिवाजी महाराज के सेनापति के बारे में जो अकेले ही हाथी से लड़ लिए थे

हमें फॉलो करें जानिए शिवाजी महाराज के सेनापति के बारे में जो अकेले ही हाथी से लड़ लिए थे
- अथर्व पंवार 
छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना में पराक्रमी योद्धाओं की भरमार थी। उनके शिवाजी और स्वराज के प्रति समर्पण , निष्ठा और प्रेम अमूल्य था। वे शिवाजी के एक आदेश पर प्राणों की बाजी लगा देते थे और स्वराज के शत्रुओं पर बाघ के समान आक्रमण कर देते थे। उन्हीं में से एक थे येसाजी कंक।
 
येसाजी कंक शिवाजी की सेना में सेनापति थे। उनकी स्वामिनिष्ठा का अनुमान इस बात से किया जा सकता है कि उन्होंने 30 वर्ष स्वराज की सेना को दिए पर 20 दिन भी अपने घर नहीं गए। शिवाजी जब दक्षिण विजय के लिए निकले थे तो येसाजी को भी महत्वपूर्ण दायित्व दिया गया था।
 
येसाजी कंक की वीरता को जानने के लिए इतिहास का एक प्रसंग मिलता है। जब शिवाजी हैदराबाद के कुतुबशाह के पास पहुंचे थे। तो कुतुबशाह ने तंज कस्ते हुए शिवाजी से कहा था कि आपकी सेना में चालीस हजार घोड़े दिखते हैं पर हाथी एक भी नहीं। तब शिवाजी ने कहा कि हमारी सेना का एक-एक मावळा हाथी के बराबर शक्ति रखता है और हाथी से लड़ सकता है। शिवाजी की बात सुनकर कुतुबशाह हंसने लगा। शिवजी ने कहा कि आप कोई भी सैनिक चुन लें , और लोगों को एकत्रित कर लीजिए , मेरा हर सैनिक हाथी से लड़ने की क्षमता रखता है। कुतुब शाह ने शिवजी के पास ही खड़े दुबले पतले साढ़े पांच फ़ीट के एक सैनिक (येसाजी कंक) को चुन लिया।
 
कुतुबशाह के आदेशानुसार एक हाथी को उत्तेजित कर के छोड़ा गया। हाथी गुस्से में येसाजी पर टूट पड़ा। पर येसाजी ने चपलता दिखाते हुए एक गुलांट खाई और हठी के पीछे जाकर उसकी पंच पकड़ ली। हाथी इससे और उत्तेजित हो गया और लगातार आक्रमण करने के लिए घूमता रहा। पर येसाजी जी पकड़ इतनी मजबूत थी कि हाथी अपनी पूंछ नहीं छुडवा पाया। अंत में वह थक गया और क्रोध से सूंड हवा में उठाने और पटकने लगा। इसी में अवसर पाकर जब हाथी ने सूंड उठाई तो येसाजी ने तलवार से उसकी सूंड एक ही वार में काट दी। इससे हठी जमीन पर आ गिरा। इतना पराक्रम दिखा कर येसाजी ने शिवाजी को प्रणाम किया और उनके पीछे आकर खड़े हो गए। 
 
यह देख कुतुबशाह प्रसन्न हो गया और आश्चर्यचकित भी। उसने उन्हें मोतियों की माला, पांच हज़ार मुद्राएं और दस वर्ष तक अनुदान देने की बख्शीश देने को कहा। इस पर येसाजी ने कहा कि आप नहीं, हमारे राजा (शिवाजी ) ही हमें कुछ भी देने को सक्षम है। महाराज के आदेश पर मैंने पराक्रम किया और इसे मैं उनके चरणों में अर्पित करता हूँ। मैं बस स्वराज और महाराज का सेवक हूँ , मुझपर प्रथम अधिकार उनका ही है। 
 
यह सुनकर कुतुबशाह गदगद हो गया उसने शिवाजी के सामने प्रस्ताव रखा कि ऐसा स्वामीनिष्ठ, पराक्रमी और स्वराजनिष्ठ व्यक्ति मुझे दे दिजिए और बदले में आपको हजार हाथी दे दिए जाएंगे। पर शिवाजी महाराज ने इसे नकारते हुए कहा कि हमारे हर सैनिक के यही गुण तो उन्हें उच्चकोटि का बनाते हैं और हमारा कोई भी वीर सैनिक अपने स्वराज को छोड़कर नहीं जा सकता , हमारा हर सैनिक पूरे स्वराज का प्रतिनिधित्व करता है।शिवाजी का अपने सैनिकों के प्रति प्रेम और उनके सैनिकों का शिवाजी और स्वराज के प्रति श्रद्धा, निष्ठा, प्रेम और भक्ति देखकर कुतुबशाह विस्मय से देखता ही रह गया।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

हिन्दी कविता : सिया जू की प्यारी मिथिला नगरिया