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झलकारी देवी कौन थीं? जानिए झाँसी की रानी का रूप बनाकर अंग्रेज़ों को चकमा देने वाली वीरांगना के बारे में

हमें फॉलो करें झलकारी देवी कौन थीं? जानिए झाँसी की रानी का रूप बनाकर अंग्रेज़ों को चकमा देने वाली वीरांगना के बारे में
Jhalkari Bai
 
एक महान और आदर्श वीरांगना महिला, जिसके बारे में जानकर पूरे भारतवासियों को गर्व महसूस होता है, ऐसी झांसी की झलकारी बाई (Jhalkari Bai Biography in Hindi) का जन्म बुंदेलखंड के एक गांव में 22 नवंबर को एक गरीब कोली परिवार में हुआ था। 
 
उनके पिता का नाम सदोवा उर्फ मूलचंद कोली और माता जमुनाबाई उर्फ धनिया था। झलकारी बचपन से ही साहसी और दृढ़ प्रतिज्ञ बालिका थी। बचपन से ही झलकारी घर के काम के अलावा पशुओं की देखरेख और जंगल से लकड़ी इकट्ठा करने का काम भी करती थी। 
 
एक बार जंगल में झलकारी की मुठभेड़ एक बाघ से हो गई थी और उन्होंने अपनी कुल्हाड़ी से उसको मार डाला था। वह एक वीर साहसी महिला थी। एक अन्य अवसर पर जब गांव के एक व्यवसायी पर डकैतों के एक गिरोह ने हमला किया तब झलकारी ने अपनी बहादुरी से उन्हें पीछे हटने को मजबूर कर दिया था। 
 
उनकी इस बहादुरी से खुश होकर गांव वालों ने उसका विवाह रानी लक्ष्मीबाई की सेना के एक सैनिक पूरन कोरी से करवा दिया, जो बहुत बहादुर था। पूरे गांव वालों ने झलकारी बाई के विवाह में भरपूर सहयोग दिया। विवाह पश्चात वह पूरन के साथ वे झांसी आ गई। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना में वे महिला शाखा दुर्गा दल की सेनापति थीं। वे लक्ष्मीबाई की हमशक्ल भी थीं, इस कारण शत्रु को धोखा देने के लिए वे रानी के वेश में भी युद्ध करती थीं। 
 
सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजी सेना से रानी लक्ष्मीबाई के घिर जाने पर झलकारी बाई ने बड़ी सूझबूझ, मालिक के प्रति निष्ठा दिखाते हुए स्वामीभक्ति और राष्ट्रीयता का परिचय दिया था। 
 
रानी के वेश में युद्ध करते हुए वे अपने अंतिम समय अंग्रेजों के हाथों पकड़ी गईं और रानी को किले से भाग निकलने का अवसर मिल गया। उस युद्ध के दौरान एक गोला झलकारी को भी लगा और 'जय भवानी' कहती हुई वे जमीन पर गिर पड़ीं। उनका निधन 4 अप्रैल 1857 को झांसी में हुआ था। भारत की संपूर्ण आजादी के सपने को पूरा करने के लिए प्राणों का बलिदान करने वाली वीरांगना झलकारी बाई का नाम आज भी इतिहास के पन्नों में अपनी आभा बिखेरता है। ऐसी महान वीरांगना थीं झलकारी बाई। 
 
झलकारी बाई की गाथा आज भी बुंदेलखंड की लोकगाथाओं और लोकगीतों में सुनी जा सकती है। झलकारी बाई के सम्मान में सन् 2001 में डाक टिकट भी जारी किया गया। ऐसी महान वीरांगना झलकारी बाई सन् 1857 की जंग-ए-आजादी का एक ऐसा नाम, जिसके हौसले और बहादुरी ने भारत के इतिहास को गौरवान्वित किया है। 
 
उनके सम्मान में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की लिखी ये पंक्तियां उनकी वीरता का बखूबी वर्णन करती हैं। 
 
जाकर रण में ललकारी थी,
वह तो झांसी की झलकारी थी।
गोरों से लड़ना सिखा गई,
है इतिहास में झलक रही,
वह भारत की ही नारी थी।
 

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