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इंसान की कीमत

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कुछ दिनों पहले जब कंधमाल में दंगे हुए जिनमें कुछ हिन्दू दलों ने ईसाई गिरजाघरों, घरों और लोगों पर हमले किए तो इटली में समाचार-पत्रों और टीवी चैनलों पर इस विषय पर काफी चर्चा हुई, जो आज तक पूरी नहीं रुकी है। उड़ीसा से हिंसा की घटनाओं के समाचार रुके नहीं हैं और इटली की सरकार ने यह मामला योरपियन यूनियन की संसद में भी उठाया तथा भारतीय राजदूत को बुलाकर भी इस बारे में कहा गया।

कुछ दिनों के बाद भारत में बिहार में बाढ़ आई। कई लाख व्यक्ति बेघर हुए। कई सौ जानें गईं, पर इटली के समाचार-पत्रों और टीवी चैनलों पर इस समाचार को न के बराबर दिखाया गया, इस पर किसी तरह की बहस नहीं हुई। इटली के गूगल से उड़ीसा में हो रहे दंगों पर खोज कीजिए तो 25 हजार से अधिक इतालवी भाषा के पन्ने दिखते हैं, जबकि बिहार की बाढ़ पर खोज करिए तो पाँच सौ पन्ने मिलते हैं।

हालाँकि बिहार में भी मरने वालों में सभी धर्मों के लोग होंगे, बाढ़ों और तथाकथित प्राकृतिक दुर्घटनाओं में गरीब लोग ही कीमत चुकाते हैं चाहे उनका कोई भी धर्म हो, पर अगर सब धर्मों के लोग मर रहे हों तो शायद बढ़िया समाचार नहीं बनता। जब धर्मों में लड़ाई हो तब अच्छा समाचार बनता है।
(लेखक इटली में रहते हैं। पेशे से चिकित्सक हैं शौक से लिखते हैं। उनके ब्लॉग पर यह चिट्ठी 3 सितंबर को पोस्ट की गई थी।)

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