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हर समस्या का हल मम्मी-पापा : अनिल

सुबह 4 बजे उठकर पढ़ाई करता था

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हमें फॉलो करें अनिल कपूर मेरा बचपन नन्ही दुनिया
अनिल कपूर
जन्मदिन 24 दिसंब

प्यारे दोस्तो,
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मेरी पढ़ाई मुंबई में हुई है और अपने बचपन में बहुत शैतान हुआ करता था। मुझे याद है कि मेरे प्रिंसिपल मुझे जंगली कहकर बुलाते थे। वे मेरी एक्टिंग के शौक के बारे में जानते थे। बहुत से मौकों पर वे मुझे खड़ा करके एक्टिंग करने को कहते थे।

हर बार जब मैं एक्टिंग करके बताता तो खुश होकर वे मुझे कुछ इनाम देते हुए कहते थे कि - 'यह रहा तुम्हारा फिल्मफेअर अवार्ड'। वैसे फिल्मों का शौक मुझे बचपन से ही रहा है। गणेशोत्सव में जो फिल्में दिखाई जाती थीं उन्हें देखने के लिए मैं सबसे पहले तैयार हो जाता था। राजकपूर मेरे पसंदीदा अभिनेता थे और उनकी नकल करने में मुझे खूब मजा आता था। बचपन में एक्टिंग की शुरुआत इसी तरह हुई।

दोस्तो, घर की बात करें तो हम तीन भाई थे और एक बहन। संजय छोटा था पर बोनी और मैं आपस में खूब लड़ते थे। बोनी मुझसे बड़े थे इसलिए हर बार हम दोनों की लड़ाई में जीत उसी की होती थी। मैं हर बार मार खाकर रह जाता था।

दोस्तो, धीरे से एक बात बताता हूँ कि मैं कभी भी बहुत अच्छा स्टूडेंट नहीं रहा। मैं बस पास होने जितने ही नंबर लाता था। इसका कारण यह है कि हम सभी दोस्तों का सालभर का समय मस्ती करते हुए ही बीत जाता था और पढ़ने के बारे में तो हम सोचते भी नहीं थे। जब परीक्षा का टाइमटेबल आता तो बस परीक्षा के एक सप्ताह पहले ही हम पढ़ना शुरू करते। इसका कुछ फायदा और कुछ नुकसान दोनों हुआ।

पढ़ाई करने के लिए बचपन में हम कभी किसी एक की छत पर इकट्‍ठा हो जाते थे और फिर पढ़ाई करते थे। पढ़ाई तो कम और मस्ती ज्यादा करते थे। फिर पढ़ते-पढ़ते जब चाय का समय हो जाता तो हम सभी पास की एक दुकान में चाय पीने जाते थे। पढ़ाई गोल करने वाले मेरे बहुत सारे दोस्त क्लास में फेल भी हो जाते थे पर मैं जैसे-तैसे हर बार अगली क्लास में जाने जितने नंबर ले आता था। मैं अपनी सफलता का राज आपको बताऊँ कि वैसे तो मैं मस्ती करने में अव्वल था पर परीक्षा के एक सप्ताह पहले मैं रोज सुबह 4 बजे उठता था और मन लगाकर पढ़ाई करता था, शायद इसीलिए मैं पास हो जाता था। आज भी जब मुझे कई फिल्मों में कोई कठिन सीन करना होता है तो मैं सुबह 4 बजे उठकर उसकी रिहर्सल करता हूँ।

जब मैं सेंट जेवियर कॉलेज में था तो दूसरे साल ही मुझे कॉलेज से निकाल दिया गया। प्रिंसिपल का कहना था कि मैं अन‍ुशासित और रेगुलर नहीं हूँ। खैर जो होता है अच्छे के लिए होता है... कॉलेज से निकलने के बाद मैं फिल्मों में काम करने लगा। इस तरह से नई शुरुआत हुई।

दोस्तो, बचपन की अपनी किसी भी शैतानी के लिए मुझे कभी भी मम्मी-पापा से डाँट नहीं पड़ी क्योंकि उनके सामने मैं बिल्कुल चुपचाप रहता था और वे समझते थे कि मैं खूब मेहनती बच्चा हूँ। इस इमेज के कारण ही मुझे कभी मार नहीं पड़ी। मम्मी-पापा बहुत अच्छे रहे और उन्होंने मुझे उनकी पसंद का रास्ता चुनने के लिए नहीं कहा। उन्होंने हमेशा मुझे अपने मन की राह चुनने दी।

मैं एक्टर भी बना तो उन्होंने रोका नहीं बल्कि मुझे हमेशा अच्छा काम करने के लिए कहा। उनकी वजह से ही मैं आज खुद को साबित कर पाया हूँ। आप भी मम्मी-पापा के साथ अच्‍छी ट्‍यूनिंग रखोगे तो उसका फायदा मिलेगा। उनके पास हमारी मुश्किलों के हल होते हैं। अगर उनसे बात करोगे तो सारी समस्याएँ पल में दूर हो जाएँगी।

एक महत्वपूर्ण बात भाषा की भी कर लेना चाहिए। दोस्तो, मुंबइया भाषा मुझे शुरू से ही अच्छी लगती थी और इ‍सलिए फिल्मों में मेरे ज्यादातर रोल और डायलॉग भी इसी तरह के होते हैं। आप जहाँ रहते हैं वहाँ की भाषा आपको आना ही चाहिए और उस भाषा के शब्दों के साथ आपकी दोस्ती होना चाहिए। तभी तो आप अच्छे एक्टर बनोगे। अच्छी भाषा जल्दी हमें दूसरों के साथ जोड़ देती है।

आपका
अनिल कपूर

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