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'मिस्ट्री ऑफ जीरो' का खोला रहस्य

तोड़ा गणित का ताला, खोला जीरो का राज

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हमें फॉलो करें अंकुर तिवारी
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बिलासपुर के एक होनहार छात्र ने आसमान से तारे तोड़कर लाने जैसा करिश्मा कर दिखाया है। उसने अपनी बुद्धि का जादू दिखाते हुए न सिर्फ जीरो का रहस्य खोला है, बल्कि मिस्ट्री ऑफ जीरो नाम से पुस्तक भी लिख डाली है।

जीरो से भाग देने के उसके फार्मूले के संबंध से अवगत होते ही अच्छे से अच्छे गणितज्ञ दांतों तले उंगली दबाने पर मजबूर हो जाएंगे, क्योंकि अब तक इस राज से पर्दा नहीं हट पाया था। जीरो से भाग देने की विधि में कंप्यूटर व कैलकुलेटर भी मात खा गए हैं। इस छात्र ने शून्य से भाग देने का तरीका किया ईजाद किया।

बिलासपुर के शुभम विहार में रहने वाला अंकुर तिवारी मंगला स्थित महर्षि विद्या मंदिर में पढ़ता है। इस साल उसने सीबीएसई 10वीं की परीक्षा में टॉप किया है। वर्तमान में मौजूद किसी भी सामान्य गणना यंत्र (कैलकुलेटर) में किसी भी संख्या को शून्य से भाग दिया जाए, तो उसमें उत्तर नहीं आता है।

इसका कारण यह है कि अभी तक आधुनिक गणित में किसी भी संख्या को शून्य से भाग देने की विधि की खोज नहीं हो सकी है और ऐसा माना जाता है कि शून्य को शून्य से भाग देने पर अज्ञात (संख्या) आती है और किसी भी धनात्मक या ऋणात्मक संख्या भाजित शून्य का मान अनंत (संख्या) होता है, लेकिन इस क्षेत्र में एक बड़ी कामयाबी अंकुर ने पाई है।

उसने एक ऐसा गणित का सूत्र विकसित किया है, जो किसी भी संख्या को शून्य से भाग देने में सक्षम है। अंकुर ने अपने इस सूत्र का नाम 'भारतीय न्यू रूल फॉर फ्रेक्शन' (बीएनआरएफ) रखा है। यह पूर्णतः आधुनिक गणित के सिद्धांतों पर ही भाग की विधि को एक नवीन तरीके से बिना भाजक के सीधे प्रयोग के पूर्ण करता है, जिसके कारण वह शून्य से भाग देने में सक्षम है।

मिस्ट्री ऑफ जीरो नाम से लिखी किताब :
अंकुर की खोज पूरी दूनिया में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकता है। इससे कई अनसुलझे सवाल हल हो सकते हैं। हमें अंकुर की इस सफलता पर पूरा विश्वास है, लेकिन इसे परखने के लिए दुनिया के जाने-माने गणितज्ञ को इस खोज को भेजा जाएगा। - श्रीकांत चतुर्वेदी शिक्षक

किताब में है फार्मूले का रहस्य :
अंकुर द्वारा विकसित 'भारतीय न्यू रूल फॉर फ्रेक्शन' की संपूर्ण जानकारी, गणितीय उद्भव, उदाहरण आदि लिखित 'मिस्ट्री ऑफ जीरो' यानी कि शून्य का रहस्य नामक पुस्तक में दी गई है। इस पुस्तक और बीएनआरएफ की प्रत्यालिपि-अधिकार पूर्ण रूप से अंकुर के आधीन है।

अंकुर पिछले महीने अपने पिता के साथ अपनी इस खोज को पेंटेंट कराने के लिए दिल्ली गए थे, जहां उसे पता चला कि गणित का कोई भी फार्मूला पेंटेंट नहीं होता है। इसके बाद उन्होंने इसकी कॉपीराइट तैयार की है। कोई भी व्यक्ति कामर्शियल उपयोग के लिए बगैर अंकुर की अनुमति के इसका उपयोग नहीं कर सकता है।

गणित के ज्यामिती, कलन, समाकलन व त्रिकोणमिती शाखाओं में शून्य भाजित शून्य का मान परिभाषित होने पर क्रांतिकारी परिवर्तन आने की संभावना है, क्योंकि इससे पहले अभी तक किसी ने इसके मान को परिभाषित नहीं किया है। इसके अलावा दूरी व समय भी गणित के ऊपर आधारित है। अंतरिक्ष प्रक्षेपात्र व मिसाइल का केलकुलेशन भी गणितीय पद्धति से किया जाता है। वर्तमान में अंतरिक्ष प्रक्षेपात्र व मिसाइल की सटिकता पर सवाल उठाया जा सकता है, लेकिन अंकुर के फार्मूले से 100 फीसदी सटीकता रहेगी।

एक सवाल बना जुनून :
महर्षि विद्या मंदिर में अध्ययनरत्‌ अंकुर कक्षा नवमीं में एक दिन सुबह क्लास में बैठा था। उस समय मैथेमैटिक्स के टीचर बच्चों को गणित पढ़ा रहे थे। इस दौरान अंकुर के मन में जीरो को लेकर सवाल उठा। उसने टीचर से पूछा कि जीरो से जीरो को भाग देने पर क्या उत्तर आएगा। टीचर ने जवाब दिया- कोई उत्तर नहीं आता। इसके बाद उसने मन में ठान लिया कि इस रहस्य को वह सुलझाकर रहेगा।

ब्रम्हगुप्त ने बताया था शून्य का मान :
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1383 में भारतीय गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त ने शून्य भाजित शून्य का मान शून्य बताया था, लेकिन वे इसे परिभाषित नहीं कर पाए। बीएनआरएफ भी शून्य भाजित शून्य का मान शून्य ही निकालता है, लेकिन आधुनिक गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त की खोज को किसी भी गणितीय प्रमाण के न होने के कारण सही नहीं मानता है, लेकिन अंकुर ने नई खोज करके इस अनसुलझे सवाल को परिभाषित किया है।

सीबीएसई ने दी बधाई :
अंकुर ने अपनी इस खोज के बारे में नई दिल्ली में सीबीएसई के ज्वाइंट सेक्रेटरी डॉ. अंतरिक्ष जोहरे को बताया। उन्होंने अंकुर की इस खोज की जमकर तारीफ की और उन्होंने कहा कि यह गणित के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकता है।

विश्व हित में हो उपयोग :
मैं यह नहीं जानता कि, मुझमें ऐसा क्या खास है। मैं वे बातें जानता हूं, जो अन्य लोगों के लिए अज्ञात है, लेकिन मैं इतना जरूर जानता हूं कि मैंने जो खोज की है, उससे हमें आगामी भविष्य में बहुत लाभ होंगे। मैं चाहता हूं कि मेरे इस कार्य और विवेक का इस्तेमाल विश्व हित के लिए हो।

मेरी यह खोज मेरे सद्गुरु श्री शक्तिपुत्र जी महाराज की कृपा और आशीर्वाद का परिणाम है, जिसके कारण मुझे यह सफलता मिली है। मैंने अपनी खोज पूर्ण होने के बाद अपने गुरुवर के ही निर्देश पर गणित के कई क्षेत्रों से संबंधित लोगों व अपने संबंधियों से इस विषय पर बातचीत की थी।

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