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रहस्यमय पक्षी बन गई है गौरेया!

इतिहास का हिस्सा बन रही है गौरेया

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हमें फॉलो करें घरेलू गौरेया
- धनीश शर्मा
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14 से 16 से.मी. लंबी, पंख का फैलाव 19-25 से.मी., वजन 26 से 32 ग्राम, दिखने में सर्वत्र परिचित, सर्वव्यापी चहचहाने वाली गौरेया अब रहस्यमय पक्षी बन गई है।

गौरेया को हमेशा शरदकालीन एवं शीतकालीन फसलों के दौरान, खेत-खलिहानों में अनेक छोटे-छोटे पक्षियों के साथ फुदकते देखा जाता है। गौरेया की सामान्य पहचान उस छोटी सी चंचल प्रकृति की चिड़िया से है जो हल्के धातु रंग की होती है तथा चीं चीं करती हुई यहां से वहां फुदकती रहती है।

गौरेया से हमें प्रथम परिचय 1851 में अमेरिका के ब्रुकलिन इंस्टीट्यूट ने कराया था। गौरेया पूरे विश्व में तेजी से दुर्लभ एवं रहस्यमय तरीके से गायब होती जा रही है। लेकिन अब तो रहस्यमय पक्षी बन गई है। वहीं गौरेया को अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है। गुजरात में चकली, मराठी में चिमनी, पंजाब में चिड़ी, जम्मू तथा कश्मीर में चेर, तमिलनाडु तथा केरल में कूरूवी, पश्चिम बंगाल में चराई पाखी, तथा सिंधी भाषा में झिरकी कहा जाता है।

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बीएनएचएस सर्वेक्षण जांच के आधार पर गौरेया की संख्या 2005 तक 97 प्रतिशत तक घट चुकी है। बढ़ता शहरीकरण, खेतों में कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग, बढ़ता प्रदूषण और बड़े स्तर पर गौरेया को मारना जैसे कई कारक हैं जिनसे यह प्राणी आज लुप्त होने के कगार पर है।

आधुनिक युग में पक्के मकान, लुप्त होते बाग-बगीचे, खेतों में कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग तथा भोज्य-पदार्थ स्रोतों की उपलब्धता में कमी प्रमुख कारक हैं जो इनकी घटती संख्या के लिए जिम्मेदार हैं। गौरेया फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों को भी समाप्त करने में सहायक होती है।

डॉ. सालिम अली ने अपनी पुस्तक इंडियन बर्ड्स में गौरैया का वर्णन भगवान की निजी भस्मक मशीन के रूप में किया है जिसकी जगह मानव के आविष्कार से बनी कृत्रिम मशीन नहीं ले सकती है।

यद्यपि अभी पृथ्वी के दो-तिहाई हिस्से की उड़ने वाली प्रजातियों का पता लगाया जाना बाकी है, फिर भी यह बड़ी ही विडंबना है कि जो प्रजाति की बहुलता में यहां थी, वही आज कम होने के कगार पर है।

सरकार ने अप्रैल, 2006 में भारत में बर्ड्स संरक्षण के लिए एक कार्य योजना की घोषणा की थी। चरणबद्ध ढंग से डाइक्लोफेनेक का पशु चिकित्सीय इस्तेमाल पर रोक तथा बर्ड्स के संरक्षण और प्रजनन केंद्र की भी घोषणा की थी पर नतीजा कुछ खास नहीं निकला। शहरों के आसपास देखी जानी वाली गौरेया धीरे-धीरे अब दुर्लभ हो रही हैं।

गौरेया एक बुद्धिमान चिड़िया है, जिसने घोंसला स्थल, भोजन तथा आश्रय परिस्थितियों में अपने को उनके अनुकूल बनाया है। इन्हीं विशेषताओं के कारण विश्व में सबसे ज्यादा पाई जाने वाली चहचहाती चिड़िया बन गई।

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