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ब्लड ग्रुप से जानिए कि आप इस धरती के हैं या नहीं

हमें फॉलो करें ब्लड ग्रुप से जानिए कि आप इस धरती के हैं या नहीं
ब्लड ग्रुप कई प्रकार के होते हैं जिनके दो मुख्‍य प्रकार है नेगेटिव और पॉजीटिव। A, B, O और AB ब्लड ग्रुप के नाम तो आपने सुने ही होंगे, परंतु बॉम्बे ब्लड ग्रुप का नाम नहीं सुना होगा। मुंबई के डॉ. भेंडे ने 1952 में इस ग्रुप को खोजा था। 'बॉम्बे' ग्रुप के किसी व्यक्ति में इसी ग्रुप का खून चढ़ाया जा सकता है। हालांकि 'बॉम्बे' ग्रुप वाले ए, बी, ओ, ग्रुप के लोगों के लिए भी रक्त दान कर सकते हैं, लेकिन सामान्य प्रैक्टिस में यह होता नहीं है।  दूसरी रक्त समूहों में ऐंटिजन-एच होते हैं, जबकि 'बॉम्बे' में ये ऐंटिजन नहीं पाए जाते। इसे एचएच ग्रुप भी कहा जाता है। दस लाख में से मुश्किल से 4 लोगों का यह ग्रुप होता है। परंतु हम यहां कुछ और भी अजीब बताने जा रहे हैं।
 
 
1. दरसअल, एलियंस पर शोध करने वालों का दावा है कि सुदूर अतीत में दूसरे ग्रह से जीवों ने धरती का दौरा किया था। उन्होंने मनुष्‍यों की पुत्रियों को अपना जीवनसाथी बनाकर आरएच नेगेटिव लोगों को जन्म दिया था। इस थ्‍योरी के अनुसार आरएच पॉजीटिव सीधे बंदर से जुडे हैं, जबकि आरएच नेगेटिव ग्रुप के लोग वानर की तुलना में कुछ दूसरे से विकसित हुआ समूह है।
 
 
2. 84 से 85 प्रतिशत लोग, जिनका ब्लड ग्रुप पॉजीटिव है, वे बंदर की नस्ल से आते हैं जिनमें ओ पॉजीटिव 38 प्रतिशत, बी पॉजीटिव 9 प्रतिशत, ए पॉजीटिव 34 प्रतिशत और एबी पॉजीटिव 3 प्रतिशत है। लेकिन 15 से 16 प्रतिशत नेगेटिव ब्लड ग्रुप वाले बंदर की नस्ल से नहीं है जिनमें 7 प्रतिशत ओ नेगेटिव, 2 प्रतिशत बी नेगेटिव, 6 प्रतिशत एक नेगेटिव, 1 प्रतिशत एबी नेगेटिव के लोग है।
 
 
3. सामान्य तौर पर 4 रक्त समूह के 4 प्रकार होते हैं- ए, बी, एबी और ओ। वैज्ञानिकों के अनुसार यह वर्गीकरण मानव शरीर पर बैक्टीरिया और वायरस से लड़ने के लिए तैयार कोशिकाओं की सतह पर पाए जाने वाले प्रोटीन द्वारा किए गए हैं।
 
4. दरअसल, लाल रक्त कोशिकाओं की सतह पर स्थित, जो एक प्रतिजन (प्रोटीन) है, वह लाल रक्त कोशिका है। 85% इस एक ही आरएच फैक्टर के हैं और क्रमश: आरएच पॉजीटिव हैं जबकि शेष 15%, जिस पर यह नहीं है, वे आरएच नेगेटिव हैं। वैसे भारत में नेगेटिव ब्लड ग्रुप के 5 फीसदी ही लोग हैं लेकिन सबसे ज्यादा स्पेन और फ्रांस में हैं।
 
 
5. क्या कहते हैं वैज्ञानिक : विज्ञान, विकास प्रक्रिया में आरएच नेगेटिव लोगों की मौजूदगी को प्राकृतिक घटना मानने से इंकार करता है। विज्ञान आरएच को इस तरह परिभाषित करता है कि यह एंटीजन डी मौजूदगी दर्शाता है। जो आरएच पॉजीटिव लोग होते हैं, उनके रक्त में एंटीजन डी होता है लेकिन आरएच नेगेटिव लोगों के रक्त में एंटीजन डी नहीं पाया जाता है। 
 
शरीर में विषाणुओं से लड़ने के लिए एंटीजंस पैदा किए जाते हैं। अगर किसी शरीर में एंटीजन पैदा नहीं किया जाता है लेकिन अगर इसे शरीर में बाहर से डाला जाता है तो यह एंटीजन के साथ अपने शत्रु की तरह से व्यवहार करेगा। विज्ञान के अनुसार क्यों एक आरएच पॉजीटिव मां का शरीर एक आरएच नेगेटिव बच्चे को अस्वीकार कर देता है, इसकी यही असली वजह है। 
 
'योर न्यूज वायर' की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस सिद्धांत के अनुसार आरएच नेगेटिव लोगों का शरीर विचित्र गुणों को रखता है। इससे भी यह व्याख्या की जा सकती है कि क्यों एक आरएच पॉजीटिव मां का शरीर आरएच नेगेटिव बच्चे को अस्वीकार कर देता है। इस स्थिति के चलते ही बहुत से शिशुओं की मौत हुई है।
 
नई थ्योरी के अनुसार : यह थ्योरी हमें सुमेरियन समय में वापस ले जाती है, जब एक अति उन्नत एलियन सफर करता हुआ कहीं और ब्रह्मांड से आया और उसने प्रथम अनुनाकी मानव समाज का निर्माण किया। 'अनुनाकी' सुमेरियन शब्द है जिसका प्रयोग स्वर्ग से निकाले गए लोगों के लिए होता था जिन्होंने दुनिया की पहली महान सुमेर सभ्यता को स्थापित और गतिशील किया।
 
वैज्ञानिकों का मानना है कि उन्हें आरएच पॉजीटिव और नेगेटिव के संबंध में एक दिलचस्प बात पता चली है। इस नई वैज्ञानिक थ्योरी के अनुसार सुदूर अतीत में अलौकिक प्राणियों द्वारा धरती का दौरा किया गया और यहां के लोगों को दास बनाने के इरादे से आनुवांशिक हेर-फेर करके आरएच नेगेटिव प्रजाति के विशालकाय मानवों का निर्माण किया गया होगा।
 
यह भी माना जाता है कि इन प्राचीन प्राणियों ने योजना बनाकर आदिम जाति को आनुवांशिक रूप से परिवर्तित कर दिया और उन्होंने सुदूर अतीत में दास के रूप में इस्तेमाल करने के लिए भी मजबूत और अधिक पर्याप्त प्राणियों को बनाया होगा।
 
दिलचस्प है कि नेगेटिव आरएच की विशेषता घोर परिश्रम है। उदाहरणार्थ ब्रिटिश राजपरिवार जिन्होंने संभवत: अलौकिक वंश के बारे में विवादित सिद्धांतों को जन्म दिया। हालांकि इस परिकल्पना की पुष्टि नहीं की गई है। यह सवाल परेशान करता है कि कैसे सुदूर अतीत में धरती की सभ्य दुनिया की आबादी का एक छोटा-सा हिस्सा आनुवांशिक कोड है जिसे उन्नत अलौकिक प्राणी द्वारा बदल दिया गया। हालांकि इस सिद्धांत की आलोचना करने वाले भी बहुत है।
 
- अनिरुद्ध जोशी/एजेंसी
 

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