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क्या आपके भीतर हैं ये 5 तरह के फोबिया?

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अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

जो डर गया, समझो मर गया। यह सिर्फ फिल्मी डायलॉग नहीं है, बल्कि जिंदगी की हकीकत भी है। सवाल ये है कि डर क्या हमारे दिमाग की उपज है या फिर इसके पीछे सचमुच कोई रहस्य छिपा है। हम यहां बात कर रहे हैं डर की नहीं फोबिया की। फोबिया और डर, दोनों में अंतर है। फोबिया डर का एक खतरनाक लेवल है। फोबिया में डर इतना ज्यादा होता है कि इंसान इसे खत्म करने के लिए इंसान अपनी जान से भी खेल सकता है।
हमारे सभी मनोरोग, दुख और दर्द का कारण भय और सेक्स की मनोवृत्ति है। हिंसक लोग सेक्स को महत्व देते हैं तो सेक्सी लोग कभी भी हिंसक हो सकते हैं। लेकिन यह ज्ञान अधूरा है। यदि हम भारतीय दर्शन को पढ़ेंगे तो इससे भी गहरी बातों को उसमें उल्लेख मिलेगा।
 
हमने सुना है कि सिग्मंड फ्रायड का मानना था कि सारे मनोरोगों का कारण सेक्स है। इसे वे सेक्स मनोग्रस्तता कहते थे। पूरा पश्चिम इसी रोग से ग्रस्त है। चौबीस घंटे सेक्स की ही बातें सोचना। कहते हैं कि फ्रायड भी इसी रोग से ग्रस्त थे।...उनके शिष्य कार्ल गुस्ताव जुंग के अनुसार मृत्यु का भय ही मूल में सभी मनोरोगों का कारण है। आश्चर्य कि गुरु और शिष्‍य में इतनी असमानता। कहते हैं कि पूरा पूरब इसी रोग से ग्रस्त है तभी तो वह जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा पाना चाहते हैं। हालांकि जिन्होंने कृष्‍ण, महावीर, बुद्ध और पतंजलि को पढ़ा है वो फ्रायड और जुंग से सहमत नहीं होंगे।
 
खैर... हम आपको बताना चाहते हैं कि दुनिया में विचित्र किस्म के लोग हैं जिनका डर भी विचित्र किस्म का ही होगा। हर व्यक्ति का फोबिया और उसकी परिस्थितियां अलग-अलग होती हैं। 
 

1.अनहोनी से डरना : बहुत से लोग किसी होनी-अनहोनी की आशंका से डरे रहते हैं। ऐसे लोग अपने जीवन को नर्क बना लेते हैं, क्योंकि यदि उनके जीवन में किसी भी प्रकार की होनी-अनहोनी नहीं भी होती होगी तो ऐसे लोग अनहोनी को आमंत्रित कर लेते हैं। यह भी एक तरह का फोबिया होता है। यह फोबिया अक्सर उन मूर्ख लोगों में रहता है जो किसी ज्योतिष या कथित बाबाओं के चक्कर में रहते हैं। यह फोबिया उन लोगों के मन में भी रहता है, जिनके साथ कभी घटना-दुर्घटना घट चुकी है।
 
कहते हैं कि आदमी के जीवन में अनहोनी होने का कारण है उसका डर। यह डर ही होनी-अनहोनी को आकर्षित करता है। इस डर के कारण व्यक्ति किसी की हत्या कर सकता है या कुछ समझ में न आए तो आत्महत्या भी कर सकता है।
 
इसी डर के कारण व्यक्ति का व्यवहार भी बदल जाता है। उसमें हर दम बैचेनी बनी रहती है। वह अनावश्यक सोचता ही रहता है। सोच सोच कर वह सोच का पहाड़ बना लेता है और अंत में वह इसी पहाड़ के नीचे दबकर मर जाता है। ऐसे व्यक्ति अपने डर को दूसरे के भीतर भी डालता रहता है। वह मरने से पहले ही मर जाता है।
 
किसी व्यक्ति ने कहा है कि जिसे भविष्य का भय नहीं रहता, वही वर्तमान का आनंद उठा सकता है और जो वर्तमान का आनंद उठा सकता है वही अपना भविष्य सुरक्षित कर पाता है। होनी-अनहोनी से डरने वाले उसका सामना नहीं कर पाते हैं।
 
कबीरदासजी कहते हैं कि 'होनी होय सो होय।' जैसे ही भय आपकी ओर बढ़े, उस पर आक्रमण करते हुए उसे नष्ट कर दो। जब जो होना है वह तो हो ही जाएगा, फिर डरना क्या। डर-डर के जीना क्या। भगवान श्रीकृष्‍ण कहते हैं कि न कोई मरता है और न कोई मारता है। सभी निमित्त मात्र है, तब तू व्यर्थ की चिंता क्यों करता है। हनुमान चालीसा में लिखा है...तुम रक्षक काहू को डरना...। डरते वे हैं तो ईश्वर से दूर हैं।
 
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2.:प्राकृतिक वातावरण से डर : कई ऐसे लोग हैं जिनको तूफान, आंधी या तेज बारिश, नदी, समुद्र आदि से डर लगता है। अंधेरे में या जंगल में सांप या खतरनाक जानवर देखने पर भी ये लोग डर जाते हैं।
 
अंधेरे से डर को अंग्रेजी में Nyctophobia कहते हैं। बहुत से लोगों को अंधेरे में कहीं आने या जाने से अंजान डर लगता है। हो सकता हैं कि वे सोचते हो भूतों के बारे में या किसी अनहोनी के बारे में। अंधेरा अपने आप में डर का कारण है।
 
हवाई सफर के दौरान कुछ लोगों को लगता है कि प्लेन क्रैश होने से उनकी मौत हो जाएगी। ऐसे डर को अंग्रेजी में Aerophobia कहते हैं। कुछ लोगों को बिजली चमकने से भी डर लगता है। वे सोचते रहते हैं कि कहीं हमारे ऊपर न गिर जाए। इस डर को अंग्रेजी में Astraphobia कहते हैं।
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3.एक खास स्थिति का डर : इस फोबिया में लोगों को ऊंचाई पर खड़े होने, उड़नें, ड्राइविंग, टनल में जाने पर व ब्रिज पर चलने में डर लगता है। ऊंचाई से डरने के फोबिया को अंग्रेजी में Acrophobia कहते हैं।
 
ऊंचाई से नीचे देखने पर कई लोगों को डर लगता है कि कहीं गिर न पड़े। ऊंची बिल्डिंग की छत पर जाने पर ऐसे लोगों को लगता है कि बिल्डिंग गिर जाएगी या फिर वो बिल्डिंग से गिर जाएंगे। कुछ लोगों को  इंजेक्शन से डर लगता है। इस फोबिया को Trypanophobia कहते हैं।
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4.सोशल फोबिया : इसका मतलब सामाजिक डर या इस फोबिया के दौरान व्यक्ति में लोगों के बीच चलने या बात करने में डर लगता है। वे अपने से बड़े लोगों से डरते हैं, जिझकते हैं और अपने बराबर के लोगों में अच्छे से घुलमिल नहीं पाते हैं।
 
इस खास प्रकार के फोबिया को सोशल एंक्जाइटी डिसआर्डर का नाम दिया गया है। यह एक सबसे आम फोबिया है। जिसमें लोगों के बीच भोजन करने, स्वयं के बारे में बताने में या एक साथ भीड़ में जाने पर सबसे ज्यादा परेशानी होती है। इसके अलावा अपरिचितों से रू-ब-रू होने पर ये लोग डरे डरे से होते हैं।
 
इंटरव्यू या पब्लिक मीटिंग में बोलने से पहले का डर भला कौन अनजान होगा। मगर समस्या उस समय होती है, जब मन किसी मामूली चीज या हालात से अनायास ही भय खाने लगता है। हर रोज का यह डर व्यक्तित्व को खोखला बनाकर रख देता है। हालात ऐसे हो जाते हैं कि हम दूसरे लोगों का सामना करने और बातचीत करने में भी कतराने लगते हैं। चिंता और तनाव से प्रेरित होने वाला यह मनोविकार ही फोबिक डिसऑर्डर कहलाता है। 
 
इसमें किसी खास चीज, स्थिति या गतिविधि के प्रति मन में आशंका बैठ जाती है। उस चीज का सामना होते ही तन और मन बेचैनी से घिर जाता है। दिल जोरों से धड़कने लगता है, सांस फूलने लगती है, हाथ-पैर कांपने लगते हैं और लगता है प्राण निकल जाएंगे। 
 
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ की एक रिपोर्ट के अनुसार सार्वजनिक स्थानों पर भी लोग डर के साए में रहते हैं। मसलन स्पोर्ट्स इवेंट, पुल, पब्लिक ट्रांसपोर्ट, ड्राइविंग या शॉपिंग करते हुए भी लोगों के मन में डर बना रहता है।
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5.जानवरों से डर : इसके अंर्तगत लोगों में सांप, मकड़ी, कुतें और खास तरह के रेप्टाइल्स या रेंगने वाले जीवों का फोबिया आता है। इसे अंग्रेजी में Arachnophobia कहते हैं। इसके अंजर्गत छिपकली, मकड़ी जैसे छोटे-छोटे जीवों का डर भी शामिल है।
 
कुत्तों से डरने को अंग्रेजी में Cyanophobia कहते हैं। ऐसे लोग सड़क पर कुत्तों को देखकर रास्ता बदल लेते हैं। वे डरते हैं कि कुत्ते के काटने से उन्हें रैबीज जैसी खतरनाक बीमारी हो सकती है और इससे उनकी मौत भी हो सकती है। कुछ लोग जर्म से डरते हैं। जर्म से डरने वाले मनोरोग को अंग्रेजी में Mysophobia कहते हैं।
 

अंत में जानिए क्या है फोबिया : 'फोबिया' ग्रीक शब्द Phobos से निकला है। अनावश्यक डर को फोबिया कहते हैं। इसके पीछे के कारणों की बात करें तो मन-मस्तिष्क में उठने वाले रहस्यमय भाव-संवेग को इसके लिए जिम्मेदार माना जा सकता है। कई बार तो डर इतना ज्यादा होता है कि व्यक्ति अपनी मानसिक सूझबूझ और विवेक खो देता है।
 
फोबिया और डर, दोनों में अंतर है। डर एक इमोशनल रिस्पॉन्स है, जो किसी से धमकी मिलने या डांट पड़ने के कारण होता है। डर कोई बीमारी नहीं है लेकिन फोबिया डर का एक खतरनाक लेवल है।
 
फोबिया से बचने के लिए मेडिकल साइंस में 'कॉग्निटिव-बिहेवियरल थैरेपी' को सबसे कारगर तरीका माना जाता है। इस थैरेपी के तहत व्यक्ति को कल्पना में अपने डर के करीब जाने को कहा जाता है। जैसे किसी को अगर कुत्ते के काटने से डर लगता है, तो उसे बताया जाता है कि कुत्ता इंसान का सबसे अच्छा दोस्त है। मेडिटेशन, सांसों पर नियंत्रण और बेहतर नींद काफी हद तक डर से आपको दूर रख सकती है।
 
कहते हैं कि फोबिया के कुल मिलाकर 530 प्रकार होते हैं, हालांकि अब इनमें और भी इजाफा होता जा रहा है।-  (समाप्त)

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