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चमत्कारिक है ये समुद्री शैवाल

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अनिरुद्ध जोशी

धरती पर समुद्र का हिस्सा 70 से 75 प्रतिशत है। 25 से 30 प्रतिशत धरती पर अधिकतर हिस्सा नदियों और उनके जंगलों का है। धरती पर प्रमुख रूप से कुल 5 महासागर हैं- प्रशांत महासागर, अटलांटिक महासागर, हिन्द महासागर, आर्कटिक महासागर तथा दक्षिणी महासागर। इसके अलावा कैस्पियन सागर, मृत सागर, लाल सागर, उत्तर सागर, लापतेव सागर, भूमध्य सागर हैं। इसके अलावा 2 प्रमुख खाड़ियां हैं- बंगाल की खाड़ी और अरब की खाड़ी। 
प्रमुख नदियों में नील, अमेजन, सिन्धु, ब्रह्मपुत्र, वोल्गा, टेम्स, गंगा, हडसन, मर्रे डार्लिंग, मिसीसिपी, मैकेंजी, यमुना, नर्मदा, गोदावरी, कांगो, यांग्त्सी, मेकोग, लेना, आमूर, ह्वांगहो आदि नदियां हैं।
 
उक्त संपूर्ण जलनिधि या जलराशि में अथाह जल है। इन जलराशियों में लाखों तरह के जीव-जंतु और प्रजातियां निवास करती हैं। इन्हीं जलराशियों में हजारों ऐसी वस्तुएं हैं, जो कहीं चिकित्सा की दृष्टि से सबसे उत्तम हैं तो कहीं आयु बढ़ाने के लिए। लेकिन इस सबके अलावा ऐसी भी दैवीय वस्तुएं हैं जिनके आपके घर या पास में होने से यह चमत्कारिक रूप से आपको आर्थिक और शारीरिक लाभ देने लगती हैं। इन्हीं में से एक है समुद्र शैवाला।
 
क्या होती है शैवाल : भूमंडल पर पाए जाने वाले पौधों का विभाजन दो बड़े विभागों में किया गया है। जो पौधे फूल तथा बीज नहीं उत्पन्न करते उनको क्रिप्टोगैम कहते हैं और जो फूल, फल एवं बीज उत्पन्न करते हैं वे फेनेरोगैम कहलाते हैं। शैवालों का वर्गीकरण क्रिप्टोगैम के थैलोफाइटा वर्ग में किया गया है। ये पौधे निम्न श्रेणी के होते हैं, जिनमें पर्णहरित पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है जिसके कारण ये हरे रंग के होते हैं। कुछ शैवाल ऐसे भी होते हैं जिनका रंग लाल, भूरा अथवा नीला-हरा भी होता है। अधिकांश शैवाल तालाब, रुके हुए जलाशय, नदी के किनारे तथा समुद्रों में पाए जाते हैं। कुछ शैवाल पादपों के तनों पर या पत्थर की शिलाओं के ऊपर हरी परत के रूप में उगा करते हैं। कुछ नीले-हरे वर्ण के शैवाल स्नानागार, नदी तथा तालाबों के किनारों पर भी उगते हैं जिन्हें हम काई समझते हैं।
 
अधिकांश शैवाल पौधों के समान सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपना भोजन स्वंय बनाते हैं अर्थात् स्वपोषी होते हैं। ये एक कोशिकीय से लेकर बहु-कोशिकीय अनेक रूपों में हो सकते हैं, परन्तु पौधों के समान इसमें जड़, पत्तियां इत्यादि रचनाएं नहीं पाई जाती हैं। ये नम भूमि, अलवणीय एवं लवणीय जल, वृक्षों की छाल, नम दीवारों पर हरी, भूरी या कुछ काली परतों के रूप में मिलते हैं।
 
समुद्री वनस्पतियों में समुद्री शैवाल का महत्व ज्यादा है। शैवाल मुख्‍यत: 3 प्रकार की होती है। शैवाल का उपयोग औषधि, व्यवसाय और भोजन के रूप में किया जाता है। कुछ जहरीली शैवाल होती है। क्लोरेला नामक शैवाल को कैबिन के हौज में उगाकर अंतरिक्ष यात्री को प्रोटीनयुक्त भोजन, जल और ऑक्सीजन सभी प्राप्त हो सकते हैं।
 
शैवाल से ईंधन : हरा ईंधन विशिष्ट रूप से ताड़ के तेल अथवा मक्के से बनाया जाता है। लेकिन इस बात के कई प्रमाण हैं कि समुद्री शैवाल जैव ईंधन के लिए कच्चा माल हो सकते हैं। हालांकि समुद्री शैवाल को व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य हरे ईंधन में तब्दील करना लंबी प्रक्रिया है।
 
शैवाल से कैंसर का इलाज : जर्मनी में रिसर्चर शैवाल की मदद से कैंसर का इलाज ढूंढ रहे हैं। शोधकर्ताओं को एक खास पदार्थ मिला है जिससे शैवाल खुद को समुद्री हमलों से बचाते हैं। डॉयचे वेले की खबर अनुसार इसके लिए उत्तरी जर्मनी के शहर कील में तटीय शोध और मैनेजमेंट सेंटर की प्रयोगशाला में पौधों को फिल्टर किया जाता है। कील में रिसर्चर कर रहे लेवेंट पीकर बताते हैं कि दिलचस्प प्राकृतिक तत्वों को ढूंढने के लिए समुद्र में हजारों मीटर गहरी डुबकी लगाना जरूरी नहीं है, 'सब कुछ तट पर मिल जाता है। हम फिर इन्हें जमा करते हैं और प्रयोगशाला में इन पर काम करते हैं ताकि कैंसर खत्म करने की इनकी क्षमता का पता लगाया जा सके।'
 
शैवाल से मोटापे को कम करे : ब्रिटन के शोधकर्ताओं के मुताबिक मोटापे का इलाज सीवीड यानी समुद्री शैवाल से हो सकता है। शैवाल में पाया जाने वाला एल्जिनेट नाम का फाइबर शरीर में जमा वसा को 75 फीसदी तक कम कर सकता है। मोटापे पर क़ाबू पाने के लिए शैवाल से इलाज को बाक़ी सभी से बेहतर समझा जा रहा है।
 
खाद के रूप में : नील हरित शैवाल को धान की खेती में खाद्य के रूप में काम में लिया जाता है। नील हरित शैवाल खाद के द्वारा अधिक उपज प्राप्त करने के लिए धान की रोपनी समाप्त होने के एक सप्ताह बाद खेत में 5-7 से.मी. पानी भरें। यदि पानी नहीं हो तो उसके बाद खेत में 10 कि.ग्रा. प्रति हे0 के दर से नील हरित खाद का छिड़काव बराबर रूप से कर दें। खेत में शैवाल डालने के बाद कम से कम 10 दिनों तक पानी भरा रहना चाहिए। इस तरह से एक ही खेत में कई सालों तक लगातार प्रयोग करते रहने से ये खाद आने वाले कई एक सालों तक डालने की जरूरत नहीं पड़ती है, इस प्रकार शैवाल खाद का पूरा लाभ फसलों को मिलता है जिससे उपज में वृद्धि होती है।
 
खाई जा सकने वाली शैवाल : सिवार (kelp) यह एक प्रकार की समुद्री वनस्पति है। समुद्र की गहराइयों में इस वनस्पति के जंगल के जंगल विद्यमान हैं। यह भी शैवाल की तरह बहुउपयोगी है। यह अमरबेल की तरह है। जब तक यह पानी में रहेगी, यह कभी नष्ट नहीं होगी और न सड़ेगी। इसको सेवन करके के तरीके जानना जरूरी है। यह शरीर के लिए यह तरह से फायदेमंद होती है।


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