why people change their religion: दुनियाभर में सामाजिक, सांस्कृतिक और वैचारिक परिवर्तन लगातार हो रहे हैं। इन बदलावों का प्रभाव धर्म और आस्था पर भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। हाल के वर्षों में, विशेषकर पश्चिमी देशों में, एक नया चलन सामने आया है जहां लोग जन्म से मिले अपने धर्म को त्याग कर नास्तिकता या किसी अन्य आध्यात्मिक मार्ग को अपना रहे हैं। यह सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि समाज में गहराती एक महत्वपूर्ण प्रवृत्ति का संकेत है। प्रसिद्ध शोध संस्थान प्यू रिसर्च सेंटर के अध्ययनों ने इस बदलाव को प्रमुखता से उजागर किया है। आइये जानते हैं इस बारे में विस्तार से :
प्यू रिसर्च के चौंकाने वाले खुलासे
प्यू रिसर्च के विश्लेषण के अनुसार, इटली, जर्मनी, स्पेन, स्वीडन और यूनाइटेड किंगडम जैसे यूरोपीय देशों में जन्म से प्राप्त धर्म को छोड़ने वाले लोगों की संख्या सबसे अधिक है। ये वे देश हैं जहाँ पारंपरिक रूप से ईसाई धर्म का वर्चस्व रहा है।
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इटली में लगभग 28.7% लोग ऐसे हैं, जिन्होंने अपने परिवार से प्राप्त धर्म को छोड़कर खुद को नास्तिक घोषित कर दिया है। यह आंकड़ा दर्शाता है कि कैथोलिक चर्च के गढ़ माने जाने वाले इस देश में भी धार्मिक जुड़ाव कम हो रहा है।
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इसी तरह, जर्मनी, स्पेन और स्वीडन जैसे देशों में भी बड़ी संख्या में लोग, खासकर युवा पीढ़ी, संगठित धर्म से दूर हो रही है। ब्रिटेन में भी लगभग 12% लोग खुद को नास्तिक मानते हैं।
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प्यू रिसर्च का एक व्यापक सर्वे बताता है कि दुनियाभर में लगभग 28.4% ईसाई अब खुद को नास्तिक घोषित कर चुके हैं, जबकि अन्य धर्मों से ईसाई धर्म में परिवर्तित होने वालों की संख्या केवल 1% है। यह दर्शाता है कि ईसाई धर्म में 'आउटगोइंग' सदस्यों की संख्या 'इनकमिंग' सदस्यों से कहीं अधिक है।
क्यों हो रहा है यह बदलाव?
यह सवाल स्वाभाविक है कि आखिर क्यों लोग अपने पारंपरिक धार्मिक विश्वासों से दूर हो रहे हैं? इसके पीछे कई जटिल कारण हो सकते हैं:
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आधुनिकता और विज्ञान का प्रभाव: आधुनिक शिक्षा, विज्ञान और तर्कसंगत सोच के बढ़ते प्रभाव ने कई लोगों को पारंपरिक धार्मिक मान्यताओं पर सवाल उठाने के लिए प्रेरित किया है। वैज्ञानिक प्रगति ने कुछ धार्मिक सिद्धांतों को चुनौती दी है, जिससे लोग धर्म से दूर हुए हैं।
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धर्मनिरपेक्षता का बढ़ता चलन: यूरोपीय समाज में धर्मनिरपेक्षता (सेक्युलरिज्म) एक मजबूत मूल्य के रूप में उभरी है। राज्य और धर्म के बीच अलगाव की यह अवधारणा लोगों को व्यक्तिगत रूप से भी धर्म को अपने जीवन का केंद्रीय हिस्सा न मानने के लिए प्रोत्साहित करती है।
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संस्थागत धर्म से मोहभंग: कुछ लोग संगठित धर्मों की संस्थागत कार्यप्रणाली, उनके ऐतिहासिक कृत्यों या वर्तमान में सामने आ रही समस्याओं (जैसे घोटालों या कट्टरता) से निराश होकर उनसे दूरी बना लेते हैं। वे धर्म की संस्थागत संरचना के बजाय व्यक्तिगत आध्यात्मिकता की ओर मुड़ते हैं या पूरी तरह से नास्तिक हो जाते हैं।
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व्यक्तिगत स्वतंत्रता की चाह: आज की युवा पीढ़ी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आत्मनिर्णय को अधिक महत्व देती है। वे किसी भी बाध्यकारी संरचना या नियम से बंधे रहना पसंद नहीं करते, जिसमें कभी-कभी धर्म भी शामिल होता है।
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सामाजिक परिवर्तन और विविधता: समाज में बढ़ती विविधता, विभिन्न संस्कृतियों और विचारों के संपर्क में आने से भी लोगों के धार्मिक दृष्टिकोण में बदलाव आता है।