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एक नायक जो था ही नहीं

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हमें फॉलो करें एक नायक जो था ही नहीं
दुनिया के सबसे भयावह युद्धों में एक द्वितीय विश्वयुद्ध पर ऐसे तो कई किस्से-कहानियाँ, लेख-पुस्तकें लिखी गई हैं पर हाल ही में ब्रिटेन में लेखक बेन मैकेंटायर द्वारा ब्लूम्सबैरी प्रकाशन की एक पुस्तक 'ऑपरेशन मींसमीट' में इस युद्ध के एक ऐसे दुस्साहसी ऑपरेशन के बारे में रोशनी डाली है, जिससे 1942-43 के अंत में मित्रराष्ट्रों की सेनाओं को दक्षिणी यूरोप में निर्णायक बढ़त लेने में काफी मदद मिली थी।

हालाँकि इस पर पहले एक फिल्म 'The man who never was' भी बन चुकी है और यह किताब भी एक बार फिर वही कहानी कहती है, पर दिलचस्प तरीके से। यह कहानी है ब्रिटिश रॉयल मरीन की एक ऐसे वीर सैनिक अधिकारी मेजर विलियम मार्टिन की जिसने अपने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया था। मेजर मार्टिन एक ऐसे मिशन पर गया, जिसमें उसकी मौत तय थी। उसका मिशन था दुश्मनों के प्रभाव वाले प्रदेश में ब्रिटिश सेना के मिलेट्री प्लान से भरे अत्यंत गोपनीय दस्तवेज लेकर जाना।
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यह द्स्तावेज थे यूरोप पर हमले की योजना से संबंधित कुछ पत्र और इसी से संबंधित सैन्य प्रगति की रिपोर्ट जिन पर अल्जीरिया और ट्‍यूनीशिया के सैन्य कमांडर और वाइस चीफ ऑफ इम्पीरियल स्टॉफ के दस्तखत थे। इस ऑपरेशन के दौरान मेजर मार्टिन मारा गया था।

उसकी लाश के साथ उसकी प्रेमिका पैम द्वारा लिखे प्रेम-पत्र, बैंक द्वारा 79.96 पॉउंड के ओवर ड्राफ्ट की राशि के संयोजन का नोट तथा उसके पिता जॉन सी. मार्टिन द्वारा लिखा गया एक पत्र जिसमें उन्होंने बिल और पैम के विवाह पर एतराज जताया था और इस पर अपनी नाराजगी जाहिर की थी। एक जिंदादिल और बेहतरीन नौजवान था विलियम मार्टिन। अगर संक्षेप में कहें तो इस ऑपरेशन में एक शानदार शख्सियत वाले नौजवान ने अपना जीवन देश पर कुरबान कर दिया।

हाँ, युद्धों में अकसर इसी प्रकार की कहानियाँ होती है पर इस कहानी का सबसे बड़ा कमाल यह है कि मेजर विलियम मार्टिन कभी असल में था ही नहीं, अगर कुछ था तो स्पेन के तटवर्तीय इलाके हुलवा के तट पर बहकर आई एक ब्रिटिश सैन्य अधिकारी की लाश। उसकी कलाई पर चेन से बंधे ब्रीफकेस में थे सैन्य इतिहास के सबसे बड़े षड्‍यंत्र के दस्तावेज, जिसने द्वितीय विश्वयुद्ध का नक्शा ही बदल दिया।

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दरअसल मेजर विलियम मार्टिन लंदन के एडमिरल ऑफिस में बैठे दो लोगों द्वारा बनाया गया एक काल्पनिक किरदार था, जिसके साथ मिले दस्तावेजों से उसके ब्रिटिश रॉयल मरीन मेजर होने के प्रमाण मिलते थे।

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जर्मन सेनाओं ने यूरोप के बड़े भाग पर कब्जा कर लिया था और 1942 के अंत में मित्रराष्ट्रों की सेनाओं ने अफ्रीका पर विजय प्राप्त करने के बाद अपना ध्यान यूरोप की मुक्ति पर लगाया। पर सबसे बड़ी परेशानी यह थी कि इस क्षेत्र पर अगर सैन्य अभियान चलाया जाता तो उसके लिए सबसे मुफीद जगह थी इटली या बॉल्कन होते हुए, जिसे प्रधानमंत्री चर्चिल 'सॉफ्ट अंडरबेली ऑफ एक्सिस' कहते थे।
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सिसली इस अभियान का सबसे निश्चित और महत्वपूर्ण बिंदु माना गया था। एक बार सिसली के द्वीप पर कब्जा होने पर मित्रराष्टों को पूरा खुला मेडिटेरियन समुद्र मिल जाता जो सैन्य अभियान की तात्कालिक जरूरत था। इस बात से जर्मन भी अनभिज्ञ नहीं थे और उन्होंने इस मोर्चे पर काफी ताकत लगा रखी थी।

इस बात के मद्देनजर मिलेटरी इंटेलिजेंस के लोग जर्मनों को इस बात से आश्वस्त करना चाहते थे कि अगर सैन्य अभियान हुआ तो सिसली से नहीं बल्कि सार्डिनिया या ग्रीस के रास्ते होगा।

इसलिए उन्होंने एक चाल चली और सोची-समझी रणनीति के तहत एक नकली सैन्य अधिकारी की लाश को नाजी आधिपत्य वाले इलाके में बहा दें और इसके साथ कुछ ऐसे नकली दस्तावेज रखे जिनसे प्रतीत होता था की दक्षिण यूरोप में मित्रराष्ट्रों का सैन्य अभियान 'ऑपरेशन हस्की' सिसली या सार्डिनिया के बजाय ग्रीस से शुरू होगा। इस योजना को 'ऑपरेशन मींसमीट' का नाम दिया गया और इसका नायक बना मेजर विलियम मार्टिन जो दरअसल एक छलावा था।

इसके योजनाकार थे रॉयल एयरफोर्स के सेकेंड लेफ्टिनेंट चार्ल्स कोलोमांडली और लेफ्टिनेंट कमांडर ईवन मोंटेगू। दोनों ही ब्रिटिश इंटेलिजेंस एमआई5 के सेक्शन 17एम के प्रमुख सदस्य थे।

पूर्व नियोजित योजना के तहत मेजर विलियम मार्टिन की नकली शख्सियत को इतनी होशियारी से तैयार किया गया कि उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि, सैन्य प्रशिक्षण और निजी जिंदगी तक की मामूली से मामूली जानकारी भी सच्ची लगे। सिर्फ एक समस्या थी कि मेजर मार्टिन की लाश कहाँ से प्राप्त हो। इसका हल मिला जनवरी 1943 को जब एक 34 वर्षीय वेल्स निवासी की लाश मोर्चुरी में आई।

इसके अगले तीन महीनों तक चार्ल्स कोलोमांडली और ईवन मोंटेगू मेजर मार्टिन की जिंदगी बनाने पर काम करते रहे और उन्होंने खुफिया एजेंसियों में इस 'काबिल अधिकारी' के होने की बात फैला दी।

उन्होने इस किरदार का नाम मार्टिन सिर्फ इसलिए रखा क्योंकि उस समय मरीन फोर्स में बहुत से अधिकारियों के नाम मार्टिन थे। इसके अलावा उन्हें पता था कि जर्मनों के पास सिर्फ A से लेकर L तक के नामों वाले अधिकारियों की ही जानकारी है। यहाँ तक की लाश को तीन महीने पुरानी इस्तेमाल की गई वर्दी पहनाई गई।

मेजर मार्टिन की किस्मत में वायुयान दुर्घटना में मरना और दुश्मन के इलाके में मिलना लिखा था। आखिर अप्रैल 1943 में एक पनडुब्बी द्वारा मार्टिन का शव स्पेन के तट के पास पानी में बहा दिया गया, जिससे वो जर्मनों के हाथ लग जाए।

लाश मिलने पर स्पेन के अधिकारियों ने उसे ब्रिटिश अधिकारियों के हवाले पर दिया पर तब तक जर्मन खुफिया सेवा के लोग उसकी कलाई पर बँधे ब्रीफकेस में रखे दस्तावेज देख चुकी थी। पर वह नहीं भाँप सकी कि जिन दस्तावेजों को वे देख रहे हैं वह असल में ब्रिटिश सेना का एक छलावा है।

इस छलावे को बरकरार रखने के लिए 4 मई 1943 में मेजर विलियम मार्टिन का जो दरअसल वेल्स के ग्लेंडर माइकल की लाश थी, जो चूहामार दवा खाने से मर गया था; पूरे सैनिक सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया।

इसके बाद जर्मनों ने अपना ध्यान ग्रीस की तरफ लगा दिया जिससे सिसली की ओर से सैन्य अभियान करने पर मित्रराष्ट्रों को अपेक्षाकृत कम प्रतिरोध का सामना करना पड़ा और यहीं से यूरोप की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हुआ।

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