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चीन को रोकने में अमेरिका की मदद करे भारत

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वॉशिंगटन , मंगलवार, 6 मार्च 2012 (11:19 IST)
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एक प्रख्यात अमेरिकी विशेषज्ञ ने कहा है कि भारत को चीन की आक्रामकता और बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए अमेरिका के और करीब आना चाहिए। विशेषज्ञ ने अमेरिका से दूरी बनाए रखने और गुटनिरपेक्ष 2. 0 की विदेश नीति अपनाए जाने की वकालत करने वालों की भी कड़ी आलोचना की।

‘दी हैरिटेज फाउंडेशन’ की लिसा कर्टिस ने कहा कि चीन को शांत रखने के लिए अमेरिका से हाथ भर की दूरी बनाए रखने के बजाय भारत को अमेरिका के साथ इस प्रकार करीब आना चाहिए, जिससे दोनों के बीच भागीदारी और आपसी विश्वास मजबूत हो तथा चीन को भारत के प्रति आक्रामक रूख अख्तियार करने से रोका जा सके।

कर्टिस हाल ही में एक भारतीय थिंक टैंक द्वारा 'गुटनिरपेक्ष 2. 0 : 21वीं सदी में भारत के लिए विदेश और सामरिक नीति' शीषर्क से जारी रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया दे रही थीं। रिपोर्ट को हाल ही में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन ने जारी किया था।

उन्होंने कहा कि भारत के साथ संबंध सुधारने को उत्सुक अमेरिकी रणनीतिक विचारक इस रिपोर्ट से निराश होंगे क्योंकि इसमें 21वीं सदी में अमेरिका और भारत के बीच सामरिक भागीदारी को मजबूत करने संबंधी अधिक सिफारिशें नहीं हैं।

कर्टिस ने कहा कि रिपोर्ट में इस बात को स्वीकार किया गया है कि अमेरिका और चीन विश्व शक्ति केन्द्र होंगे और एशिया प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी मौजूदगी से हिंद महासागर में चीन की नौसेना की बढ़ती ताकत को रोकने में मदद मिलेगी। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अमेरिका के साथ रिश्ते बढ़ाने से भारत को लाभ होने का नतीजा निकालना अभी जल्दबाजी होगी।

पूर्व सीआईए विश्लेषक कर्टिस ने कहा कि रिपोर्ट अमेरिकी नियत पर शंका जाहिर करती है और इस बात को प्रमुखता से रेखांकित करती है कि अमेरिका पर जरूरत से अधिक भरोसा करना भारत के लिए खतरनाक होगा क्योंकि भारत. अमेरिकी सामरिक साझेदारी, चीन अमेरिकी संबंधों में किसी भी प्रकार की घनिष्ठता की बलि चढ़ सकती है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय राजनयिक नीति के समक्ष यह सबसे बड़ी चुनौती होगी कि वह चीन को हद में रहने को मजबूर करने के लिए कई प्रमुख शक्तियों के साथ अपने संबंधों को विस्तार दे। कर्टिस ने तर्क दिया है कि चीन आक्रामक तरीके से भारत के साथ प्रतिस्पर्धा को बढ़ा रहा है।

कर्टिस ने कहा कि चीन ने जम्मू कश्मीर और अरूणाचल प्रदेश के भारतीय सैन्य अधिकारियों को वीजा देने से इनकार कर दिया। वह अंतरराष्ट्रीय अप्रसार फ्रेमवर्क के बाहर जाकर पाकिस्तान को असैन्य परमाणु तकनीक मुहैया करा रहा है और हिंद महासागर में अपनी मौजूदगी को विस्तार दे रहा है। (भाषा)

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