वैज्ञानिक शोधों से यह साबित हो चुका है कि संगीत मनुष्य के मनोमस्तिष्क को प्रभावित करता है लेकिन अब एक नए शोध में पाया गया कि बंदर भी संगीत सुनना पसंद करते हैं। लेकिन यह मोत्जार्ट का नहीं बल्कि ‘बंदरों का संगीत’ ही होना चाहिए।
अमेरिका में पशु वैज्ञानिकों ने एक शोध किया और पाया कि दक्षिण अमेरिका में पाया जाने वाला ‘काटन टाप टैमरीन’बंदर इंसानों के संगीत के प्रति बेहद उदासीन होता है लेकिन ‘मंकी म्यूजिक’ पर वह उचित तरीके से प्रतिक्रिया करता है।
‘बायोलोजी लैटर्स जर्नल’ में प्रकाशित शोध रिपोर्ट में बताया गया है कि बंदर भी संगीत की विभिन्न किस्मों में भेद कर सकते हैं। पाँच मिनट तक शोर शराबा और भय पैदा करने वाला संगीत सुनने के बाद बंदरों में बेचैनी के लक्षण देखे गए और उनकी गतिविधियाँ बढ़ गयीं।
इसके विपरीत जिन बंदरों ने सुकून पहुँचाने वाला संगीत सुना उनकी गतिविधियाँ मद्धम पड़ गयीं और उनकी भूख बढ़ गई। ये दोनों ही संकेत सुकून पैदा करने वाले थे।
शोधकर्ताओं के अनुसार, यह शोध जानवरों के बीच संचार के क्षेत्र में अध्ययन के नए द्वार खोलता है।
अध्ययन दल के प्रमुख तथा यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कोंसिन,मेडिसिन के चार्ल्स स्नोडाउन ने बताया‘संगीत सुनने वालों के व्यवहार में दीर्घकालीन प्रभाव पैदा करता है। शांत संगीत उन्हें शांत बनाता है, वे कम चहलकदमी करते हैं। खानपान को लेकर उनकी भूख बढ़ जाती है और बेचैनी कम हो जाती है।’
न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के न्यूरो साइंटिस्ट जोश मैकडरमोट ने बताया‘मुझे लगता है कि सर्वाधिक रोचक बात यह है कि इस अध्ययन से जानवरों की देखभाल करने में काफी सहायता मिल सकती है।'
उन्होंने कहा‘लोगों के लिए यह बहुत आम सी बात है कि वे पिंजरों में रखे गए पशु पक्षियों के लिए संगीत बजाते हैं और यह सोचते हैं कि इससे वे खुश होंगे। लेकिन शोध दिखाता है कि वे इंसानों के संगीत में कोई रुचि नहीं रखते। लेकिन यदि संगीत को पक्षी या जानवर विशेष की आवाजों, ध्वनियों पर तैयार किया जाए तो उसमें उसकी रुचि अधिक होती है।’
मैकडरमोट ने कहा कि मैं सोचता हूँ कि संबंधित जानवर को उन्हीं की आवाजों पर तैयार संगीत यदि सुनाए जाए, जिन आवाजों को सुनने का वह आदी है तो इसका उस पर अधिक असर होगा।’