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बेनजीर भुट्टो का जीवन परिचय

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पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) की प्रमुख बेनजीर भुट्टो की मौत प्रभावशाली भुट्टो परिवार पर ढहने वाला नया कहर है, जिसने इस देश के लोकतंत्र के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।

पाकिस्तान में होने वाले आम चुनाव के कुछ ही दिन पूर्व गुरुवार को शाम श्रीमती भुट्टो को संदिग्ध आतंकवादियों की गोली का निशाना बनाया गया।

उनके पिता जुल्फि कार अली भुट्टो ने देश में तानाशाही और मजहबी कट्टरवाद के खिलाफ मशाल उठाई थी। लेकिन जनरल जिया उल हक के शासनकाल में उन्हें फाँसी दे दी गई थी। श्रीमती भुट्टो के भाई मुर्तजा भुट्टो भी अकाल मृत्यु का शिकार हुए थे।

पूर्व की बेटी : बेनजीर भुट्टो का जन्म 21 जून 1953 में जमींदार परिवार में हुआ था1 उन्होंने अपने पिता जुल्फिकार अली भुट्टो की सियासी विरासत संभालते हुए पाकिस्तान की उथलपुथल भरी राजनीति में प्रवेश किया था तथा वर्ष 1988 में पहली बार देश की प्रधानमंत्री बनी थी

उनका कार्यकाल पूरा नहीं हो सका और 20 महीने बाद ही उन्हें भ्रष्टाचार के आरोप में इस पद से हटा दिया गया1 1993 में वह दूसरी बार देश की प्रधानमंत्री बनी लेकिन वर्ष 1996 में उन्हें इस पद से फिर हटना पड़ा।

पाकिस्तान में लोकतंत्र की बहाली के लिए पहले भी आंदोलन चलाने वाली बेनजीर भुट्टो हाल में ही अपना स्वैच्छिक निर्वासन खत्म कर गत 18 अक्तूबर को पाकिस्तान लौटी थीं। स्वदेश लौटने पर स्वागत रैली के दौरान कराची में भी उनके काफिले को आतंकवादियों ने निशाना बनाया था लेकिन वह बच गई थीं।

चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने अल कायदा और अन्य आतंकवादी संगठनों की तीखी आलोचना की थी तथा सरकार पर आतंकवाद से निपटने में असफल रहने का आरोप लगाया था। राजनीतिक हलकों में यह अनुमान लगाया जा रहा था कि श्रीमती भुट्टो देश की अगली प्रधानमंत्री होंगी।

राजनीतिक सफर के दौरान ही बेनजीर ने एक सफल व्यापारी आसिफ अली जरदारी के साथ 18 दिसंबर 1987 को निकाह किया था। यह विवाह बहुत उनके लिए बहुत भाग्यशाली रहा तथा अगले ही वर्ष वह दुनिया के किसी मुस्लिम देश की पहली प्रधानमंत्री बनी।

लेकिन उनकी राजनीति पर छाए संकट के बादल ने पूरे परिवार को अपनी गिरफ्त में लिया तथा भ्रष्टाचार के आरोपों में जरदारी को लंबे समय तक जेल में रहना पड़ा। उनके एक पुत्र और दो पुत्रियाँ हैं।

श्रीमती भुट्टो ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पाकिस्तान में ली और अमेरिका के हार्वर्ड विश्वविद्यालय और फिर ब्रिटेन के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा हासिल की।

राजनीति का ककहरा उन्होंने अपने पिता जुल्फिकार अली भुट्टो से सीखा। बांग्लादेश युद्ध के बाद 1972 में जुल्फिकार अली भुट्टो जब शिमला समझौते के लिए जब भारत आए थे तो उनके साथ बेनजीर भी थीं।

बेनजीर के पिता को 1975 में प्रधानमंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया था। बाद में एक राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी की हत्या के आरोप में उन पर मुकदमा चलाया गया तथा उन्हें चार अप्रैल 1979 को फाँसी की सजा दे दी गई।

1980 में बेनजीर के भाई शाहनवाज की फ्रांस में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। इसके बाद 1996 में उनके दूसरे भाई मीर मुर्तजा की भी हत्या कर दी गई जिससे प्रधानमंत्री के बेनजीर का दूसरा कार्यकाल भी अस्थिर हो गया।

बेनजीर लंदन में अपने निर्वासित जीवन के दौरान ही पीपीपी की नेता बनी। पाकिस्तान में एक दशक से अधिक समय के बाद नवंबर 1988 में हुए आम चुनाव में बेनजीर की पीपीपी ने सबसे अधिक सीटें जीती और उन्होंने दो दिसंबर को गठबंधन सरकार के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली।

बेनजीर ने अपने जीवन और राजनीति के बारे में अपनी आत्मकथा 'डॉटर ऑफ ईस्ट' (पूर्व की बेटी) में विस्तार से लिखा है। अपने करिश्माई व्यक्तित्व से बेनजीर ने केवल पाकिस्तान बल्कि पूरे विश्व में लोगों के दिल जीते और आज उनकी हत्या से पाकिस्तान के साथ ही पूरे विश्व में शोक की लहर दौड़ गई है।

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