शाही खानदान से ताल्लुक रखते हैं राजा
इस्लामाबाद , शनिवार, 23 जून 2012 (00:41 IST)
भारतीय उपमहाद्वीप की सियासत में वफादारी लफ्ज की खासी अहमियत है और सियासत की बिसात पर मोहरे बिछाने वाले इसे बखूबी समझते हैं। इसी वफादारी को रावलपिंडी के शाही परिवार के बेटे राजा परवेश अशरफ ने बहुत पहले समझ लिया था। नतीजतन आज वह पाकिस्तान की लोकतांत्रिक सरकार के ‘राजा’ बन गया।सत्तारूढ़ पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) की ओर से प्रधानमंत्री के नेता अशरफ को आज नेशनल असंबली ने देश का नया प्रधानमंत्री चुना। अशरफ अपनी पार्टी के नेता यूसुफ रजा गिलानी की जगह ले रहे हैं, जिन्होंने इसी वफादारी के चलते अपने प्रधानमंत्री जैसे रसूखदार पद को हंसते-हंसते गंवा दिया।खर, अब बारी नए ‘राजा’ की है, जो मरहूम बेनजीर भुट्टो के भी वफादार थे और अब उनके शौहर आसिफ अली जरदारी के भी हैं।अशरफ रावलपिंडी के राज परिवार से ताल्लुक रखते हैं। पीपीपी के सह-अध्यक्ष जरदारी की ओर से प्रधानमंत्री पद के लिए दूसरी पसंद थे, लेकिन पार्टी के उम्मीदवार मखदूम शहाबुद्दीन के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी होने के बाद वे मुख्य उम्मीदवार बन गए।शहाबुद्दीन के खिलाफ उनके स्वास्थ्य मंत्री के कार्यकाल में हुए एक घोटाले के सिलसिले में वारंट जारी हुआ। वहीं अशरफ भी बिजली परियोजनाओं में कथित भ्रष्टाचार को लेकर राष्ट्रीय जवाबदेही अदालत की जांच का सामना कर रहे हैं। अशरफ 2002 में गठित पीपीपी (पार्लियामेंटेरियंस) के महासचिव थे, जिसे पीपीपी ने राजनीतिक दलों के लिए बनाए गए चुनावी नियमों के पालन के लिए गठित किया था। रावलपिंडी के गुजर खान संसदीय क्षेत्र से वे 2002 और 2008 में विजयी रहे और दो बार यूसुफ रजा गिलानी के कैबिनेट में रहे।बिजली परियोजनाओं में भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद पिछले साल फरवरी में उन्होंने गिलानी की कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया। हालांकि इस साल अप्रैल में उनकी कैबिनेट में वापसी हुई और उन्हें सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री नियुक्त किया गया।उनकी उम्मीदवारी का सहयोगी दल पीएमएल-क्यू ने समर्थन किया है, जिसकी नेशनल असेंबली में 50 से ज्यादा सीटे हैं। विशेषज्ञ उनकी उम्मीदवारी को सक्रिय न्यायपालिका पर ताने के तौर पर देख रहे हैं, जिसने सरकार को भ्रष्टाचार मामलों में उनके खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई करने का निर्देश दिया था। (भाषा)