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श्रीलंका-भारत रिश्तों में दरार से चीन का फायदा

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, शुक्रवार, 23 मार्च 2012 (11:35 IST)
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संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद द्वारा पारित प्रस्ताव में लिट्टे के खिलाफ युद्ध के दौरान मानवाधिकारों के कथित उल्लंघन को लेकर भारत द्वारा इन आरोपों की जांच के पक्ष में मतदान किए जाने के बाद भारत तथा श्रीलंका के रिश्तों में तल्खी साफ देखी जा सकती है।

गौरतलब है कि इस प्रस्ताव ने तब जोर पकड़ लिया था जब लिट्टे प्रमुख प्रभाकरण के 12 वर्षीय बेटे के गोलियों से छलनी शव का वीडियो सामने आया था। इस वीडियो के जारी होने के बाद श्रीलंका पर युद्ध के अंतिम दिनों में तमिलों पर अत्याचार व उनके नरसंहार के आरोप तेज हो गए थे। वीडियों में दिखाया गया है कि श्रीलंकाई सेना ने हजारों आम तमिल नागरिकों तथा युद्धबंदियों को घोर यातना दी तथा उनकी हत्या कर दी।

श्रीलंका को उम्मीद थी कि भारत इस प्रस्ताव के खिलाफ वोट करेगा। लेकिन श्रीलंका की तमाम कोशिशों के बावजूद यह प्रस्ताव 15 के मुकाबले 24 मतों से पारित हो गया। इसमें भारत के वोट की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका रही क्योंकि अगर इस प्रस्ताव में गैर हाजिर रहे 8 देशों को श्रीलंका के पक्ष में गिना जाए तो श्रीलंका के पास 23 वोट थे और भारत का वोट इस प्रस्ताव को गिरा सकता था।

भारत-श्रीलंका के बीच बिगड़ते रिश्तों का चीन भरपूर फायदा उठा रहा है। चीन शुरू से ही श्रीलंका को मदद देता आया है। चीन ने श्रीलंका के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद द्वारा पारित प्रस्ताव का भी जमकर विरोध किया था।

सामरिक विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत ने इस मामले पर श्रीलंका के खिलाफ मतदान कर एक महत्वपूर्ण सहयोगी खो दिया है। इससे बंगाल की खाड़ी जैसे महत्वपूर्ण सामरिक इलाके में चीन को हस्तक्षेप का मौका जाएगा। भारत ने क्षेत्रीय दलों को खुश करने के प्रयास में अपने अंतरराष्ट्रीय संबंध खराब कर लिए हैं।

भारत के सभी पड़ोसी देशों ने इस मामले में श्रीलंका का साथ दिया है और सिर्फ भारत का उसके खिलाफ मतदान करना आने वाले समय में एशिया में चीन के नेतृत्व में गुटबाजी को बढ़ावा देगा और इसका परिणाम भारत के लिए समस्याएं खड़ी कर सकता है।

भारत को आड़े हाथों लेते हुए श्रीलंकाई विदेश मंत्री जीएल पेरिस ने कहा शीशे के घरों में रहने वालों को दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंकने चाहिए। उन्होंने कह आ कि सबसे परेशान करने वाली बात यह है कि परिषद में मतदान किसी मुद्दे गुण या दोष के आधार पर नहीं, बल्कि रणनीतिक साझेदारियों और घरेलू राजनीतिक मुद्दों के आधार पर किया गया है।

हालांकि शुरू में भारत सरकार ने किसी देश विशेष के खिलाफ लाए गए प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करने को लेकर अनिच्छा जाहिर की थी, लेकिन संप्रग के घटक द्रमुक तथा तमिलनाडु के कई अन्य राजनीतिक दलों के दबाव के आगे सरकार को अपना रुख बदलना पड़ा। द्रमुक ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार से अपने मंत्रियों को हटाने तक की धमकी दे दी थी।

हालांकि भारतीय आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि भारत श्रीलंका के हित में प्रस्ताव में दो जरूरी बदलाव कराने में कामयाब रहा और इसके बाद पक्ष में मतदान करने का फैसला हुआ।

भारत के अलावा आस्ट्रिया, बेल्जियम, चेक गणराज्य, इटली, स्पेन, स्ट्जिरलैंड, उरुग्वे और अमेरिका जैसे देशों ने इसके पक्ष में मतदान किया। चीन, बांग्लादेश, रूस, कुवैत, सउदी अरब और इंडोनेशिया ने प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया।

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