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एक्सप्लेनर:आखिरकार ट्रंप से बाइडेन को सत्ता हस्तांतरण में वो घट गया जिसका डर था !

विश्व के सबसे पुराने लोकतंत्र अमेरिका में सत्ता हस्तांतरण का हिंसक अध्याय

हमें फॉलो करें एक्सप्लेनर:आखिरकार ट्रंप से बाइडेन को सत्ता हस्तांतरण में वो घट गया जिसका डर था !
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विकास सिंह

, गुरुवार, 7 जनवरी 2021 (13:15 IST)
आखिरकार अमेरिका में वह सब कुछ घट ही गया जिसका हर अमेरिकी को डर था। विश्व के सबसे पुराने लोकतंत्र में सत्ता हस्तांतरण का हिंसक अध्याय लिख ही गया। राष्ट्रपति चुनाव के नतीजें आने के बाद जो शंका और डर  अमेरिका के लोगों के साथ पूरे विश्व को थी वह सच साबित हो गई।

अमेरिकी संसद (कैपिटल हिल) पर वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सर्मथकों के कब्जे से आज विश्व का सबसे पुराना लोकतंत्र  अपने इतिहास में पहली बार लीबिया,यमन और जिम्बाब्वे जैसे उन अस्थिर देशों की श्रेणी में खड़ा नज़र आ रहा है जहां के शासक जनादेश का आदर नहीं उसे कुचलने के लिए जाने जाते है।
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59वें राष्ट्रपति चुनाव को अमरीकी गणतंत्र के 244 वर्ष के इतिहास का सबसे अहम चुनाव कहा जा रहा था क्योंकि इस चुनाव में अमरीकी गणतंत्र की बुनियाद ख़तरे में दिखाई दे रही थी। विश्व के सबसे पुराने लोकतंत्र की मर्यादा उस वक्त तार-तार हो गई जब निर्वाचन नतीजों को लेकर हो रही अमेरिकी संसद की बैठक से मौजूदा राष्ट्रपति ट्रंप के समर्थकों ने घुसकर जमकर बवाल किया।

अमेरिकी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कैपिटल बिल्डिंग (संसद) में घुसे ट्रंप समर्थकों के बवाल को रोकने के लिए सुरक्षा गार्ड को फायरिंग करनी पड़ी। हजारों की संख्या में ट्रंप समर्थक हथियारों के साथ कैपिटल हिल में घुस गए और तोड़फोड़ करने के साथ सीनेटरों को बाहर कर दिया और यहां कब्जा कर लिया। 
 
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ट्रंप के समर्थकों ने पहली बार इस तरह का बवाल नहीं किया है इससे पहले भी छिटपुट घटनाएं होती रही है लेकिन पहली बार समर्थकों ने कैपिटल हिल में घुसकर लोकतंत्र के चिथड़े उड़ा दिए। दरअसल ट्रंप ने अपने कार्यकाल में वर्षों से जड़ें जमाए बैठी राजनीतिक व्यवस्था और नौकरशाही को उखाड़ फेंकने के नाम पर देश के बुनियादी मूल्यों की ही बलि चढ़ा दी है और अब उसकी परणिति दिखाई दे रही है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के अंतिम दिनों में अमेरिका ने एक बार फिर हिंसा का रूप देख लिया है।

इतिहासकार और राजनीति शास्त्री अमरीका के इस चुनाव की तुलना सन 1800 के एरोन बर और जेफ़र्सन के चुनाव, 1860 के डगलस और लिंकन के चुनाव और 1932 के हूवर और रूज़वैल्ट के चुनावों से कर रहे थे। डगलस और लिंकन के चुनाव में भी अमरीका पर गृहयुद्ध का ख़तरा मंडरा रहा था और आज जब अमेरिका में फिर एक बार सत्ता हस्तांतरण की घड़ी नजदीक आ गई है तब देश में गृहयुद्ध जैसा माहौल बन गया है और वाशिंगटन डीसी में इमरजेंसी लगानी पड़ी है।
 
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20 जनवरी को अपना कार्यकाल पूरा कर रहे डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पूरे कार्यकाल में बयानों, ट्वीटों और कामों के जरिए अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए निरंकुश तरीके से सत्ता और प्रचार साधनों का दुरुप्रयोग किया। यहां तक ट्रंप उस समय भी नहीं सुधरे जब उनके समर्थक सारी मार्यादा को ताक पर रखकर संसद में गदर मचा रहे थे। पहले तो ट्रंप मूकदर्शक की तरह सब कुछ देखते रहे और काफी देर बाद जब उन्होंने वीडियो संदेश जारी कर समर्थकों को वापस लौटने की अपील की तो उसमें भी वह चुनाव को लेकर फर्जी दावे करते नजर आए।

इससे पहले कोरोनाकाल में वैज्ञानिकों की सलाह को अनसुना कर उन्होंने सार्वजनिक तौर पर मास्क लगाने का मजाक उड़ाया और एक तरह से अपने समर्थकों और लोगों को बिना मास्क के खुला घूमने के लिए उकसाया जिसका खामियाजा आज अमेरिका चुका रहा है। इससे पहले कई बार ट्रंप ने अपनी करतूतों पर कानूनी सवाल खड़े होने पर न्याय व्यवस्था और विज्ञान को दोषी ठहराया। कालों, अल्पसंख्यकों और आप्रवासियों के प्रति लोगों के मन में मौजूद भेदभाव की चिंगारी को हवा दी। अपने समर्थकों को अपने आलोचकों के ख़िलाफ़ उकसाने का काम किया।

डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति बनने के बाद जिस तरह नैतिकता का ताक पर रख विभाजनकारी ताकतों को उभारने का काम किया उसकी आलोचना आज अमेरिका के जॉर्ज बुश से लेकर क्लिंटन, ओबामा और कार्टर तक सारे पूर्व राष्ट्रपति एक सुर में करते है और उसे देश के लिए ख़तरा मानते हैं। डोनाल्ड ट्रंप को जो रूप राष्ट्रपति चुनाव के आखिरी में देखने को मिला और अमरीकी मूल्यों के लिए ही नहीं बल्कि अमरीकी लोकतंत्र लिए भी बुरा संकेत है। जनादेश को स्वीकार करते हुए हार-जीत को स्वीकार करना लोकतंत्र की मूल मर्यादा है। लेकिन डोनाल्ड ट्रंप उसे भी मानने को तैयार नहीं हैं।
 
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करीब एक साल चलने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया के बाद अमरीकी कांग्रेस को  अपने 6 जनवरी के संयुक्त अधिवेशन में विजेता राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति की घोषणा करनी होती है। अमेरिका में गुरुवार को जब संसद परिसर में यह प्रक्रिया शुरु हुई तो ट्रंप समर्थकों ने प्रदर्शन शुरु कर दिया और देखते ही देखते पूरा प्रदर्शन हिंसक हो गया और अब तक 4 लोगों की मौत हो चुकी है।
 
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दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र अमेरिका 'रूल ऑफ लॉ' के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है लेकिन डोनाल्ड ट्रंप और उसके समर्थकों ने सारे कायदे-कानून तोड़ कर सत्ता में काबिज रहने की जिस मानसिकता का परिचय दो उसने दो सौ साल पुराने हिंसा की यादें फिर ताजा कर दी। आजाद ख्यालों और असीमित अवसरों वाले अमेरिका जिसकी बुनियाद स्वंत्रता, बराबरी, निजता और न्याय जैसे आदर्शों पर रखी गई और मान्यता है कि अमेरिका पूरे विश्व को एक संदेश देने का काम करता है लेकिन सत्ता हस्तातंरण के हिंसक रूप ने विश्व के इस सबसे पुराने लोकतंत्र को दागदार कर दिया है।

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