बैंकॉक। म्यांमार में तख्तापलट से पहले सेना ने जातीय समूह कैरन पर अत्याचार शुरू कर दिया था। म्यांमार में सेना ने 1 फरवरी को तख्तापलट कर देश की बागडोर अपने हाथ में ले ली। सहायता समूहों का दावा है कि इस पूरे घटनाक्रम में सबसे अधिक अत्याचार देश के दक्षिण-पूर्वी दूरदराज इलाके में बसे जातीय समुदाय कैरन पर हुआ जिसके कारण समुदाय के करीब 8 हजार लोग घर छोड़ने को मजबूर हुए हैं।
समूहों ने बताया कि पिछले 10 साल में यहां हुई यह सबसे बड़ी कार्रवाई है। ये लोग अपने स्वास्थ्य और सुरक्षा की चिंता के बीच जंगलों में रह रहे हैं और वहां से लौटने की कोई उम्मीद उन्हें नजर नहीं आ रही। देश में तख्तापलट के बाद सड़कों पर जारी विरोध प्रदर्शनों के बीच सीमावर्ती क्षेत्रों का यह संकट सामने नहीं आ पा रहा है।
कैरन का प्रमुख राजनीतिक संगठन कैरन नेशनल यूनियन (केएनयू) फिलहाल सभी विस्थापित लोगों को खाना मुहैया कराने, पनाह देने और सुरक्षा प्रदान करने जैसी बुनियादी जरूरतें पूरी कर रहा है। केएनयू के विदेशी मामलों के विभाग के प्रमुख पैडो सॉ तॉ नी ने बताया कि आगे चलकर समहू की चुनौतियां बढ़ सकती हैं। उन्होंने कहा कि इसलिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को जल्द से जल्द इन लोगों को मानवीय सहायता पहुंचाने के लिए सामने आना चाहिए। कैरन समुदाय उन जातीय समूहों में से एक हैं, जो ब्रिटेन से 1948 में आजाद होने के बाद से म्यांमार की सरकार से अधिक स्वायत्तता की मांग कर रहे हैं। तब म्यांमार को बर्मा कहा जाता था। (भाषा)