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ब्रिटेन बाहर आया तो रूस का खतरा

हमें फॉलो करें ब्रिटेन बाहर आया तो रूस का खतरा
लंदन , शनिवार, 25 जून 2016 (14:10 IST)
लंदन। भले ही ब्रिटेन यूरोपीय संघ (ईयू) को छोड़ने का विकल्प क्यों न चुन ले लेकिन वह इसके बावजूद ईयू से किसी दूसरी राजनयिक सत्ता के जरिए अपना दबदबा कायम रखना चाहेगा। इस मामले में वह ‍बेल्जियम की नौकरशाही पर भरोसा नहीं कर सकता है और नहीं चाहेगा कि उसकी आवाज आसानी से दब जाए। ईयू से बाहर रहकर भी ब्रिटेन उतना की शक्तिशाली बना रहना चाहेगा ताकि वह यूरोप की घुसपैठ पर अंकुश लगा सके। मॉस्को पर लगाम लगाने के लिए वह नाटो का सदस्य बना रहेगा।
 
हालांकि यह दावा किया जा रहा है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन को ब्रिटेन के जनमत संग्रह के परिणाम से कोई लेना-देना नहीं है। क्रेमलिन का सरकारी रुख यह है कि जनमत संग्रह ब्रिटेन के लोगों का काम है और वह पूरे मामले को लेकर निरपेक्ष है वास्तविकता यह है कि अगर ब्रिटेन यूरोपीय संघ से अलग होने का फैसला लेता है, तो इसको लेकर सबसे ज्यादा खुशी पुतिन को ही होगी।   
 
उल्लेखनीय है कि जब से पुतिन ने रूस के पुराने गौरव को फिर से बहाल करने के लिए आक्रामक सैन्य अभियान की शुरूआत की है, उन्होंने यूरोपीय संघ के ‍प्रति अपनी दुश्मनी को रहस्य नहीं रहने दिया। पूर्व में सोवियत संघ के पिछलग्गू बने रहे देशों, जैसे पोलैंड, हंगरी और चेक गणराज्य के यूरोपीय संघ में शामिल होने से खासे दुखी हैं। वे अभी भी मानते हैं कि इन देशों पर मॉस्को का पराम्परागत प्रभाव होना चाहिए। 
 
विदित हो कि जब यूरोपीय संघ ने यूक्रेन को अपना सामरिक सहयोगी बनाने के प्रयास किए तो पुतिन ने दो वर्ष पहले क्रीमिया पर जबरन कब्जा कर लिया था। रूस का पूर्वी यूक्रेन में भी सैन्य हस्तक्षेप बना रहा। सोवियत प्रभाव से मुक्त होने के बाद बाल्टिक राज्यों ने 1989 के बाद राहत की सांस ली है। पुतिन यह मानते हैं कि अगर ब्रिटेन, यूरोपीय संघ को छोड़ देता है तब मध्य यूरोप और बाल्टिक गणराज्यों पर मॉस्को का असर बढ़ जाएगा।
 
क्रीमिया पर हमले और पूर्वी यूक्रेन में घुसपैठ के बाद रूस पर लगे प्रतिबंधों से रूसी अर्थव्यवस्‍था को काफी नुकसान उठाना पड़ा है। हालांकि इन प्रतिबंधों के चलते पुतिन के यूरोप में किसी प्रकार का साहसिक अभियान (मिलिटरी एडवेंचरिज्म) चलाने पर रोक लगी है लेकिन अभी भी जर्मनी और  इटली ऐसे दो देश हैं जोकि प्रतिबंधों को लेकर उदासीन हैं। लेकिन फिर भी प्रतिबंध बने रहे हैं तो इसका कारण है कि यूरोपीय संघ के नीति निर्माताओं को ब्रिटेन के कट्टर रुख का सामना करना पड़ा है।
 
ब्रिटेन के मॉस्को के साथ तनावपूर्ण संबंध तब से बने हुए हैं, जबकि 2006 में रूसी असंतुष्ट अलेक्जेंडर लितवेंको की लंदन के एक होटल में रूसी जासूसों ने पो‍लोनियम का जहर देकर मार दिया था। इसके बाद मध्य यूरोप में रूसी भड़काने की कार्रवाइयों को लेकर नाटो देशों ने ब्रिटिश सेना के नेतृत्व में करारा जवाब दिया।
 
रूसी हमलों को रोकने के लिए नाटो देशों ने पोलैंड की सीमा पर भारी सैन्य बल और बल्कान इलाके में लड़ाकू विमानों की तैनाती कर दी थी। मॉस्को को काबू में रखने के लिए ब्रिटेन के साथ फ्रांस जैसा देश भी है जोकि ट्रांसअटलांटिक गठजोड़ का प्रमुख भागीदार है। इसलिए अगर यूरोपीय संघ से ब्रिटेन अलग भी हो जाता है तब भी ब्रिटेन नाटो का नेतृत्व करता रहेगा और यह बात पुतिन के पक्ष में नहीं होगी।  
 


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