ब्रिटेन को तुमने तोड़ा, अब यह तुम्हारा है
ब्रिटेन में यूरोपियन यूनियन से अलग होने का जनमत का फैसला दुनिया खत्म होना नहीं परंतु यह जरूर बताता है कि वहां कैसे पहुंच सकते हैं।
ब्रिटेन यूरोप का एक शक्तिशाली राष्ट्र होने के अलावा खुला लोकतंत्र, विभिन्न संस्कृतियों को समाहित करने वाला खुले बाजार वाला देश, कुछ स्वार्थी नेताओं की इच्छा के तहत यूरोप से अलग हो रहा है। नेताओं ने अपने करियर को उपर उठाने के चक्कर में लोगों के प्रवासन के डर का फायदा उठाया। इन नेताओं ने जनता को सिर्फ दो ही विकल्प दिए। रूका जाए या छोड़ा जाए। इस तरह के पेचिदा मामले में सिर्फ दो ही रास्ते देना गलत है।
ये राजनेता मानकर चलते है कि ऐसा कुछ नहीं होगा और उनके स्वार्थ की पूर्ति भी हो जाएगी। ऐसा जिसे जनता पसंद नहीं करती उसका विरोध किया परंतु इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि जनता इससे निकलने के लिए वोट दे देगी। झूठ बोलकर, डरा कर और गलत बोलकर छोटे मार्जिन से ईयू से अलग तो हुए परंतु इसके आगे क्या होना चाहिए इसका पता नेताओं को नहीं है।
अगर ईयू की अन्य देश भी ऐसा करने की कोशिश करें तो भी थोड़ा ही बिगड़ेगा। डोनाल्ड ट्रंप को वोट देने वाले समझ लें ऐसा ही होता है जब कोई देश छोटी सोच वाले लोगों के हाथ में पहुंच जाता है।
ईयू से अलग होना ब्रिटेन के लिए सही जवाब न हो परंतु इसे लोगों ने चुना है। भले ही जनता झूठ को सच मान बैठी हो परंतु यह साफ जाहिर करता है कि लोग किसी बात से डरे हुए हैं। यह हमारे समय की कहानी है : तकनीक तेजी से बदल रही है, वैश्वीकरण और मौसम ने हमारे राजनीतिक ढांचे को पीछे छोड़ दिया है। इनके आधार पर सामाजिक, शैक्षणिक, कामकाज संबंधी और राजनीतिक बदलाव आ रहे हैं।
हमारे बाजार वैश्वीक हैं और हमने रोबोट और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस सिस्टम को इतनी तेजी से इजाद किया कि हमार सोशल सेफ्टी नेट, ट्रेड और एजुकेशन में बढ़त उस गति से पीछे रह गई। इससे लोग को चीजे समझने में मुश्किल आती है।
इसी दौरान हमने जानबूझकर देश की सीमाएं खोल दीं और जबरदस्त गैरकानूनी माइग्रेशन हुआ। इससे लोगों में कल्चर संबंधी भ्रम पैदा हुआ उन्हें अपना घर छूटता महसूस हुआ। इस तरह के तेजी से होने वाले बदलाव उस समय हो रहे हैं जब राजनीति भी अस्थिर है और इस तरह की स्थिति को संभालने में नाकाम। सरकार बिना ब्याज के पैसा उधार ले रही है जिससे इंफ्रास्ट्रक्चर में पैसा लगाया जा सके ताकि जॉब बढ़े और बढ़ चुकी तकनीक का भरपूर इस्तेमाल हो।
हमें समझना होगा कि हमारे सामने मुद्दा एक साथ मिलना (एक दूसरे के साथ मिक्स अप) है न कि लोगों का दूसरे देशों से आकर बस जाना। राजनीतिक, आर्थिक और शैक्षणिक प्रगति तभी संभव है जब लोग आपस में एक हो जाएं।
ऐसे देश, जहां लोग आपस में मिल जाते हैं, 21वीं सदी में सबसे अधिक प्रगति करेंगे। उनमें राजनीतिक स्थिरता, काबिल लोगों की बढ़ी हुई तादाद और लोगों का आपस में समंवय होगा परंतु ऐसा होना बहुत मेहनत के बाद ही संभव होगा।
यह समय है जब तकनीक हमें अधिक कस के बांधती है और नए आविष्कार बहुत अधिक हैं। भविष्य उनका है जो वेब्स बनाते हैं न कि दीवारें। जो लोगों को जोड़े न कि इंसानों में भेद कर उन्हें पृथक करें। ब्रिटेन का ईयू से अलग होना काफी नुकसानदायक होगा।
कभी नहीं भुलाया जाना चाहिए कि वर्ल्डवार सेकंड के बाद, ईयू प्रोजेक्ट शांति, खुशहाली, लोकतंत्र और आजादी के लिए उपजा। ऐसा मानना ऑक्सफॉर्ड के इंस्टीट्यूट फॉर न्यू इकोनॉमिक थिंकिंग के इरिक बैन्हॉकर का है। यह इंसानों की उपलब्धि थी। इसे खत्म होने देने से बेहतर है कि हम इसके बाद एक नए यूरोप की नींव डालें।
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