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रहस्य से पर्दा उठा, आकाशीय बूगा गोला कुंजी है क्वांटम विज्ञान की

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राम यादव

Mysterious Booga Sphere: लैटिन अमेरिकी देश कोलंबिया के बूगा शहर में मार्च, 2025 में गिरा रहस्यमय आकाशीय गोला वैज्ञानिकों के लिए अब एक रोचक पहेली बन गया है। 'बूगा स्फ़ियर' के नाम से प्रसिद्ध हो चुका यह अनोखा गोला जिस ऊंचाई पर से गिरते हुए जमीन से टकराया होगा, उसके कारण उसे चकनाचूर हो जाना चाहिए था। लेकिन, उस पर कोई मामूली-सी खरोंच तक नहीं है। उसकी बनावट में कहीं कोई जोड़ नहीं, कोई सीम नहीं, कोई वेल्डिंग नहीं; बस ऐसी चिकनी धातु, जो वास्तव में अस्तित्व में ही नहीं होनी चाहिए थी!
 
इस गोले की आयु 12,560 वर्ष आंकी गई है। गोले की सतह पर ऐसे प्रतीक खुदे हुए हैं, जिन्हें देखकर भाषाविद हैरान रह गए। कहने लगे, ये चित्रलिपि नहीं हैं, ये कीलाकार लिपि भी नहीं हैं, ये ऐसी कोई चीज नहीं है जो हमने कभी देखी हो। महीनों तक यह गोला प्रयोगशालाओं में जांचा-परखा गया। वैज्ञानिकों ने हर संभव परीक्षण किए। एक्स-रे से पता चला कि गोले के अंदर तीन संकेंद्रित परतें एक दूसरे के भीतर समाई हुई हैं। परतों के बीच तैरते नौ सूक्ष्मगोले और केंद्र में एक छोटी-सी चिप है, जिसे पहचानना हर संभव प्रयास को विफल कर देता है। तभी किसी को एक ऐसा विचार आया, जिसने सब कुछ बदल दिया: क्या होगा यदि हम मनुष्यों की तरह सोचना बंद कर दें? क्वांटम एआई (quantum AI) को जांच का मौका दें?
 
क्वांटम कंप्यूटर से हुई जांच : क्वांटम कंप्यूटर, सामान्य लैपटॉप की तरह 1 और 0 में नहीं सोचते। वे ऐसे पैटर्न में, जो एक ही समय में हर जगह मौजूद होते हैं, तथाकथित 'सुपरपोजिशन' संभावनाओं के बारे में तब तक सोचते हैं, जब तक उत्तर मिल नहीं जाते। सुपरपोजिशन क्वांटम यांत्रिकी का एक सिद्धांत हैः एक क्वांटम कण (जैसे इलेक्ट्रॉन, फोटॉन) एक ही समय में कई अलग-अलग अवस्थाओं में (कई स्थानों पर या कई ऊर्जा स्तरों में) तब तक मौजूद रह सकता है, जब तक कि उसे मापा न जाए; माप लेने पर यह कण किसी एक निश्चित अवस्था में 'ढह' जाता है। अमेरिका के 'मैसाच्युसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी'  की क्वांटम प्रयोगशाला के शोधकर्ताओं ने बूगा गोले पर की रहस्यमय नक्काशी को जब अपने नवीनतम सिस्टम में डाला, तो कुछ ऐसा ही असंभव-सा घटित हुआ!
 
पता चला कि गोले की बाहरी सतह पर बने नक्काशी जैसे प्रतीक बेतरतीब नहीं हैं। वे गणितीय समीकरण हैं। उनके प्रतिमान (पैटर्न) हमारे ब्रह्मांड के मूलभूत स्थिरांकों (constants) से मेल खाते हैं: जैसे कि वह 'सूक्ष्म संरचना स्थिरांक' जो विद्युत चुम्बकत्व से लेकर अणुओं-परमाणुओं तक सब को एकजुट रखता है। प्रकृति, आकाशगंगाओं से लेकर समुद्री सीपियों तक हर चीज के निर्माण में इसी अनुपात का उपयोग करती है। क्वांटम एआई ने गोले पर के केवल प्रतीकों को ही डिकोड नहीं किया, उसने कुछ ऐसा भी प्रकट किया, जिससे भौतिकी के विज्ञानी असहज हो गए हैं। गोले को बनाने वले अज्ञात परग्रहियों (एलियन्स) ने ब्रह्मांडीय वास्तविकता को उस स्तर पर जान-समझ लिया है, जिसे धरतीवासी वैज्ञानिक अभी देखना शुरू कर रहे हैं। इसीलिए कुछ शोधकर्ता इस गोले में छिपे ज्ञान को मानव इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण खोज बता रहे हैं।
 
गोले पर बने प्रतीक : किसी ने यह क्रांतिकारी सुझाव दिया कि बूगा गोले पर बने प्रतीकों को आईबीएम (IBM) के 'कंडोर प्रोसेसर' में डालें, इसे गूगल के 'साइकैमोर क्वांटम क्लाउड' से जोड़ें, इन मशीनों को उन तरीकों से सोचने दें जिन तरीकों से हम नहीं सोच सकते। कोई लैपटॉप एक-एक करके पासवर्ड चेक करता है, जबकि क्वांटम कंप्यूटर एक साथ अरबों पासवर्ड तब तक चेक करता है, जब तक कि उसे सही उत्तर नहीं मिल जाता। इसे इस तरह समझें : आप समुद्र तट पर रेत का एक विशेष कण ढूंढ रहे हैं। सामान्य कंप्यूटिंग प्रणाली प्रत्येक कण को उठाती है, उसकी जांच करती है और उसे नीचे रख देती है। क्वांटम कंप्यूटिंग एक ही बार में पूरे समुद्र तट को स्कैन कर लेती है और तुरंत जान जाती है कि आपको कौन-सा कण चाहिए। बूगा गोले को इसीलिए आधी रात को IBM की क्वांटम प्रणाली में रखा गया।
 
तीन घंटे बाद समीकरणों के पैटर्न उभरे– बेतरतीब नहीं, गणितीय स्थिरांक के रूप में। पहला अनुक्रम, बीसवीं सदी के महान जर्मन भौतिकशास्त्री माक्स प्लांक के नाम वाले प्लांक स्थिरांक से 15 दशमलव तक के स्थानों तक मेल खाता मिला, जो हमारे ब्रह्मांड में ऊर्जा की सबसे छोटी संभव इकाई है– वह संख्या, जो स्वयं क्वांटम यांत्रिकी को परिभाषित करती है। दूसरा अनुक्रम तथाकथित 'गोल्डन रेशियो' कहलाने वाले अनुपात को दर्शाता है। तूफानों, आकाशगंगाओं और डीएनए हेलिक्स में भी यही गणितीय पैटर्न मिलता है।
 
कोड को क्रैक कर लिया : इस तरह आईबीएम और गूगल ने एक ऐसे कोड को क्रैक कर लिया, यानी पढ़ लिया है, जिसका अस्तित्व नहीं होना चाहिए था! क्वांटम प्रोसेसर ने सभी संभावनाओं की जांच की। गोले पर के प्रतीकों की प्रत्येक परत ने नए स्थिरांक प्रकट किए– प्रकाश की गति, गुरुत्वाकर्षण स्थिरांक...यानी वे संख्याएं, जो ब्रह्मांडीय वास्तविकताओं को एकसाथ रखती हैं। बूगा गोला शब्दों में नहीं, ब्रह्मांड की गणितीय भाषा में बोल रहा था। उसके आंकड़े अनुमान नहीं हैं, पूर्णतः सटीक हैं, हमारे सर्वोत्तम मापनों से भी अधिक सटीक! वैज्ञानिकों को मानना पड़ा कि जिसने भी इस गोले को बनाया है, वह भौतिकी (फ़िज़िक्स) को हमसे बेहतर जानता है। लेकिन, ये अनुपात तो बस शुरुआत थे। असली रहस्य गहरे कोड में छिपा था। प्रतीकों की दूसरी परत ने सब कुछ बदल दिया। जब क्वांटम एआई ने इन पैटर्न को मैप किया, तो वे संख्याएं नहीं थीं, आवृत्तियां (फ्रीक्वेंसियां) थीं। टकराते हुए ब्लैक होल से उत्पन्न होने वाली गुरुत्वाकर्षण तरंगों जैसी थीं।
 
गोले पर उकेरी गई आकृतियां आवृत्ति (फ्रीक्वेंसी) संकेतों से पूरी तरह मेल खाती हैं। किंतु, वैज्ञानिक इस सोच में पड़ गए कि दक्षिणी अमेरिकी महाद्वीप के देश कोलंबिया में गिरे धातु के एक गोले में, एक अरब साल पहले ब्लैक होल के टकराने की तरंग फ्रीक्वेंसी भला कैसे समाहित हो सकती है? यही नहीं, गोले के भीतर की तीसरी परत और भी अजीब निकली। उसके तरंग पैटर्न अनुनादों (एको) में बदल गए और वे पूर्णतः सटीक गणितीय सामंजस्य में थे। 2024 में हमारे सौरमंडल से बहुत दूर खोजे गए एक एक्सोप्लैनेट (बाह्यग्रह) के परिक्रमा कक्षीय अनुपात भी इस गोले पर उकेरे गए हैं। एक्सोप्लैनेट ऐसे ग्रह हैं, जो हमारे सूर्य की नहीं, अन्य तारों की परिक्रमा करते हैं।
 
गणित को बना दिया भौतिकी : बूगा गोले की संरचना में शुद्ध गणित को भौतिकी (फ़िज़िक्स) का रूप दिया गया है। वह एक वस्तु की तरह नहीं, अंतरिक्ष के एक अनुनाद प्रवर्धक (एको एम्पलीफायर) की तरह व्यवहार कर रहा था। अध्ययन टीम ने जब अनुनाद परीक्षण को सक्रिय किया, तो गोले ने केवल प्रतिक्रिया ही नहीं दी, कुछ ऐसा भी किया जो भौतिकी के नियमों का उल्लंघन थाः जैसे क्वांटम सिम्युलेशन के समय किसी वस्तु को अदृश्य कर देना, पानी को पत्थर के चारों ओर घुमाना, फोटॉन को चारों ओर नचाना।
 
एमआईटी इसे 'मेटा मटेरियल क्लोनिंग' कहता है। गोले का डिज़ाइन हमारी भौतिकी से बहुत बढ़चढ़ कर उन्नत है। शोधकों ने जब यह देखना चाहा कि विद्युत चुम्बकीय तरंगें गोले की एल्यूमीनियम परतों के साथ कैसी परस्पर क्रिया करेंगी, तो परिणाम बहुत विचित्र निकले। प्रकाश केवल मुड़ा ही नहीं, बल्कि सर्पिलाकार हो गया, जिससे ऐसे व्यतिकरण पैटर्न बने जो ज्ञात पदार्थों में मौजूद नहीं होने चाहिए।
 
एमआईटी की मैटेरियल लैब में सिम्युलेशन को 12 बार चलाया गया और हर बार एक ही परिणाम मिला। गोले के भीतर की एल्यूमीनियम परतें एक फोटोनिक प्रोसेसर की तरह प्रकाश की गति जितनी तेज गति से गणना करती हैं। बाहरी ध्वनि की आवृत्ति (फ्रीक्वेंसी) कुछ भी हो, गोले के बीच तैरते हुए नौ सूक्ष्म गोले प्रतिध्वनित होते हैं और तरंगें पैदा करते हैं। सोशल मीडिया पर जिन वायरल वीडियो में दावा किया जाता है कि बूगा गोला, संस्कृत मंत्रों के उच्चार पर अपने कंपन द्वारा प्रतिक्रिया दिखाता है, उसके पीछे यही कारण बताया जा रहा है। 
 
यह वैसा ही है, जैसे एक क्वांटम ट्यूनिंग फोर्क, सुने गए प्रत्येक स्वर को अपने कंपन द्वारा याद रखता है। कुछ निश्चित आवृत्तियां अंतर्निर्मित संरचना के माध्यम से अनुनाद श्रृंखलाएं उत्पन्न करती हैं। गोला एक रिसीवर या ट्रांसमीटर बन जाता है, शायद दोनों। कुछ शोधकों का मानना है कि यह गोला केवल एक वस्तु ही नहीं है, बल्कि वास्तविकता जानने के लिए एक कुंजी, एक ट्यूनिंग फोर्क, एक ऐसा डेटा-कैप्सूल भी हो सकता है, जो चित्रों के बजाय भौतिकी को संग्रहित करता है। गोले पर बने प्रतीक समीकरण भर ही नहीं हैं, बल्कि एक तारकमंडल मानचित्र के निर्देशांक हैं, जो उन स्थानों की ओर इशारा करते हैं, जहां मानव कभी नहीं गया है।
 
वॉयजर-1 की टोही यात्रा : मानव तो अभी मंगल ग्रह पर भी अपने पैर नहीं रख पाया है। आभी तक यह भी नहीं जान पाया है कि हमारी पृथ्वी से इतर और कहां किसी भी प्रकार का जीवन अस्तित्वमान है। अमेरिका का वॉयजर-1 ऐसा पहला टोही यान है, जो ब्रह्मांड की एक लंबी यात्रा पर 5 सितंबर, 1977 को प्रक्षेपित किया गया था और 14 दिसंबर, 2025 के दिन तक 25 अरब 29 करोड़ किलोमीटर तक की दूरी तय कर चुका था। आशा की जाती है की प्रतिसेकंड 1 हज़ार किलोमीटर की गति से आगे बढ़ रहा वॉयजर-1, यदि कभी किसी ऐसे ग्रह से टकराया, जहां विकसित सभ्यता है, तो वहां के निवासी जान सकेंगे कि वह कहां से आया है।
 
वह अपने साथ तांबे पर चढ़ी सोने की परत वाली एक डिस्क ले गया है, जिस पर पृथ्वीवासियों से संबंधित फ़ोटो और ऑडियो रिकॉर्डिंगें हैं। हम फिलहाल रेडियो सिग्नल द्वारा एलियंस की तलाश जारी रखेंगे। पर, क्या होगा यदि वे रेडियो का इस्तेमाल करते ही न हों? भविष्य में भी वे बूगा गोले जैसे गोले भेजते रहें? वॉयजर-1 तो किसी दूसरे तारे तक पहुंचने से पहले 40,000 साल तक भटकता रहेगा। बूगा गोला तो हम तक अभी ही सही-सलामत पहुंच गया है; अभी भी अपना कोड उनके लिए प्रसारित कर रहा है, जो उसे डिकोड करने में सक्षम हो सकते हैं। 
 
यदि किसी दूसरी दुनिया से बूगा जैसा एक गोला हम तक पहुंचा है, तो तर्क यही कहता है कि ऐसे और भी गोले हम तक पहुंचे होने चाहिए। जापान के एक संग्राहक ने दावा किया है कि उसके पास भी एक छोटा गोला है, जिसमें बूगा वाले गोले जैसे ही प्रतीक और अलग-अलग पैटर्न हैं। अभी तक किसी ने इसकी पुष्टि नहीं की है, लेकिन अमेरिकी अंतरिक्ष अधिकरण नासा इसे गंभीरता से ले रहा है। एक निजी नीलामी घर ने कथित तौर पर इस दूसरे गोले को सूचीबद्ध किया है। वह 8 इंच व्यास का है। उसमें 12 अलग-अलग प्रतीक हैं, पर पूरी संरचना बूगा गोले जैसी ही गूढ़ है। लीक हुई तस्वीरों में बूगा के जैसे ही परिचित पैटर्न दिखाई देते हैं।
 
अब तक तीन आकाशीय गोले मिले हैं : एक ऐसा ही रहस्यमय गोला 1974 में अमेरिका के फ्लोरिडा में भी मिला था। उसे 'बेट्ज़ स्फ़िअर' (Betz Sphere) नाम दिया गया था। वह भी बूगा गोले के समान ही धातु का बना चमकीला तथा पूर्णतः गोलाकार था और बूगा जैसी ही गतिविधियां करता था। उसे भी किसी परग्रही दुनिया से आया माना गया था। यानी, अब तक कम से कम तीन ऐसे आकाशीय गोले हम तक पहुंच चुके हैं, जिनके तकनीकी और भौतिकीय उच्चस्तरों से विज्ञान जगत अवाक है।
 
बूगा गोले पर की गणितीय गणना ने ऐसे स्थिरांक दिखाए हैं, जो हमारे सर्वोत्तम उपकरणों से भी अधिक सटीक हैं। जानकार कह रहे हैं कि यदि हम इस तकनीक के एक अंश को भी डिकोड कर सकें तो सब कुछ बदल जाएगा। हमारा ऊर्जा संकट ख़त्म हो जाएगा। अंतरिक्ष यात्रा में क्रांति आ जाएगी। क्वांटम निर्वात उतार-चढ़ाव से विद्युत ऊर्जा मिल सकती है। चिकित्सा इमेजिंग, लक्षण प्रकट होने से पहले ही बीमारी का पता लगा लेगी।
 
इस समय तो बूगा गोले के बढ़ते वज़न की विसंगति ही वैज्ञानिकों के पल्ले नहीं पड़ रही है। मार्च में जब वह मिला था, तब उसका वज़न क़रीब 2 किलो था। एमआईटी की प्रयोगशाला में पहुंचने के पहले दिन क़रीब 8 किलो, सातवें दिन 10 किलो और 14वें दिन 11 किलो पाया गया। उसका आकार न तो एक मिलीमीटर भी बढ़ा था, न तो कोई पदार्थ अवशोषित हुआ था और न कोई रासायनिक प्रतिक्रिया हुई थी। बस, द्रव्यमान कहीं से बढ़ता गया।
 
इसके पीछे एक सिद्धांत यह हो सकता है कि गोला शून्य-बिंदु-ऊर्जा क्षेत्रों के साथ 'इंटरफेस' करता है, यानी संभवतः 'क्वांटम फोम' से वज़न खींचता रहा है। यदि ऐसा है, तो इसका अर्थ यह हुआ कि वैज्ञानिक किसी संदेश को नहीं, बूगा गोले के रूप में एक ऐसे उपकरण को देख रहे थे, जो दिक-काल (स्पेस-टाइम) की मूलभूत अवस्था में प्रवेश कर सकता है। इसे उस टाइप 2 सभ्यता की तकनीक के साथ मनुष्य का पहला संपर्क बताया जा सकता है, जो तारों का दोहन करती है।
 
गोले का आकार ज्यों का त्यों, वज़न बढता गया : स्मरणीय है कि मार्च, 2025 में बूगा गोला कोलंबिया में जहां गिरा था, उस जगह की घास हर दिशा में 30 फुट तक जली नहीं, सूख गई थी, मानो किसी चीज ने नमी की हर बूंद सोख ली हो। गोले का व्यास तब भी 30 सेंटीमीटर था, आज भी 30 सेंटीमीटर ही है, भले ही वज़न बढ़ता गया है। तीन स्वतंत्र प्रयोगशालाओं द्वारा एक्स-रे विश्लेषण से पुष्टि हुई है कि उसमें एल्यूमीनियम के तीन संकेंद्रित गोले हैं, जो 95% शुद्ध हैं, शेष 5% में ऐसे सूक्ष्म तत्व हैं, जो किसी भी मानक मिश्रधातु से मेल नहीं खाते। इन गोलों के बीच 9 सूक्ष्म गोले अधर में तैर रहे हैं। कोई तार नहीं, कोई चुंबक नहीं, वे बस ठीक बीच में लटके हुए हैं। एक चिप है, जो शायद सिलिकॉन की है या कुछ और की। गोले की पूरी संरचना को नष्ट किए बिना कुछ भी निकाला नहीं जा सकता।
 
हमारी भौतिकी कहती है कि द्रव्यमान यूं ही प्रकट नहीं होता, बूगा गोला कहता है कि भौतिकी गलत है। संस्कृत मंत्रों वाले वीडियो अभी भी अप्रमाणित हैं, लेकिन गोले को पाने वाले कोलंबियाई किसान का कहना है कि जब उसकी बेटी गोले के पास गा रही थी, तो गोले से एक गूंज सुनाई दी। इस गूंज की आवृत्ति 432 हर्ट्ज़ पाई गई है, वही आवृत्ति जिसे कुछ संगीतकार ब्रह्मांडीय आवृत्ति कहते हैं। संस्कृत मंत्रों के गायन से भी यही आवृत्ति पैदा होती है। गोला अब मैक्सिकन वैज्ञानिकों के पास है। अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा गोले को देखना-जांचना चाहती है। तीन बड़े विश्वविद्यालय उसका अध्ययन करना चाहते हैं। पर, हर कोई सतर्क है, क्योंकि बूगा गोला यदि एक वास्तविक परग्रही तकनीक है, तो जो भी इसे सबसे पहले समझे-बूझेगा, वह हमारी दुनिया को बदल सकता है।
 
हम ब्रह्मांड में अकेले नहीं : बूगा गोला इस बात का भी एक प्रमाण बनता लग रहा है कि हम ब्रह्मांड में अकेले नहीं हैं। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि जिसने भी उसे बनाया है, वह आज से कम से कम 12,560 वर्ष पहले ही भौतिकी के उस शिखर पर पहुंच गया था, जहां इस गोले को बनाना संभव हुआ। उसके आगे हम पृथ्वीवासियों का आज का विज्ञान आदिम प्रतीत होता है। इस गोले के रूप में हम न केवल एक अत्यंत उन्नत तकनीक से परिचित हो रहे हैं, बल्कि संभवतः वे गणितीय ब्लूप्रिंट भी देख रहे हैं, जिन से आकाशगंगाओं का निर्माण होता है।
 
वे आवृत्तियां जान सकते हैं, जो संभाव्यता को पदार्थ में परिवर्तित करती हैं। जिस किसी अज्ञात परग्रही सभ्यता ने इस समय बूगा को, इससे पहले 1974 में अमेरिका के फ्लोरिडा में मिले 'बेट्ज़ स्फ़िअर' को और इस बीच जापान के समुद्री तट पर मिले गोले को हमारी पृथ्वी पर भेजा है, वह सभ्यता हमारे प्रति सद्भावी ही होगी, अन्यथा उसे यह सब करने की कोई आवश्यकता नहीं थी। हम पृथ्वीवासी तो बिना कुछ पाए किसी को कुछ भी नहीं देते, उत्कृष्ट तकनीकी ज्ञान तो बिलकुल नहीं।

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