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तुर्की में तख्ता पलट की कोशिश नाकाम: क्यों और कैसे, जानिए पूरा मामला

हमें फॉलो करें तुर्की में तख्ता पलट की कोशिश नाकाम: क्यों और कैसे, जानिए पूरा मामला
, शनिवार, 16 जुलाई 2016 (18:02 IST)
अंकारा। तुर्की में तख्तापलट की कोशिश नाकाम हो गई है। राष्ट्रपति रैसीप तैयप एरदोगन की सरकार  ने बागियों को कुचल दिया और कुछ घंटों में बागियों को घुटने पर आने को मजबूर कर दिया।  तख्तापलट का समर्थन कर रहे सैनिकों ने इस्तांबुल में बोसफोरस पुल पर आत्मसमर्पण कर दिया। यह  पुल सारी रात इन सैनिकों के कब्जे में रहा। समर्पण करने वाले इन सैनिकों को अपने हाथ हिरासत में  ले लिया गया है। 
 
तख्तापलट की कोशिश के विफल होने के बाद आधिकारिक समाचार एजेंसी आंदालोउ ने कहा कि तुर्की  के बड़े शहरों में रातभर हुई हिंसा में कम से कम 194 लोग मारे गए हैं और 1,150 लोग घायल हुए हैं,  वहीं अधिकारियों ने तख्तापलट की कोशिश नाकाम होने का दावा करते हुए कहा कि 1,560 से अधिक  सेना अधिकारियों को पकड़ा है और करीब 200 निहत्थे सैनिकों ने तुर्क सैन्य मुख्यालय में समर्पण कर  दिया है। 
 
जनरल दुनदार नए कार्यवाहक सैन्य प्रमुख नियुक्त : तुर्की के प्रधानमंत्री ने बताया कि देश में  तख्तापलट के प्रयास के बाद नया कार्यवाहक सैन्य प्रमुख नियुक्त कर दिया गया है। फर्स्ट आर्मी के  कमांडर जनरल उमित दुनदार को नया कार्यवाहक सैन्य प्रमुख नियुक्त किया गया है।
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हालांकि ये सस्पेंस अभी भी बना हुआ है कि तख्तापलट क्यों किया गया था, क्योंकि सेना के प्रमुख खुद  तख्तापलट की कोशिशों के शिकार बने। सरकार की ओर से धार्मिक नेता फेतुल्ला गुलेन (जो कि पेरिस में रहते हैं) का नाम आ रहा था लेकिन अब खबर यह है कि गुलेन ने अपना हाथ होने से इनकार किया  है।
 
तुर्की अधिकारियों ने बताया कि सरकार ने राजधानी अंकारा में हुए विस्फोटों, हवाई संघर्ष एवं गोलीबारी  के बाद सैन्य तख्तापलट की कोशिश को नाकाम कर दिया है। कल देर रात सैनिक और टैंक सड़कों पर  उतर आए थे और आठ करोड़ की आबादी वाले देश के दो सबसे बड़े शहरों अंकारा और इस्तांबुल में सारी  धमाके होते रहे।
 
तख्तापलट की कोशिश करने वाले देशद्रोही करार : इस बीच तुर्की के राष्ट्रपति रेसीप तैयप एरदोगन ने  ‘फेसटाइम’ के जरिए देश को संबोधित करते हुए कहा कि वे अभी भी राष्ट्रपति पद पर बने हुए हैं।  उन्होंने विपक्षी बलों को ध्वस्त करने की प्रतिबद्धता जताई। एरदोगन ने अपने वीडियो संदेश में कहा कि  'मैं देश की जनता से सड़कों पर उतरने का आह्वान कर रहा हूं। आओ, इन्हें सबक सिखाएं। मुझे नहीं लगता कि तख्तापलट की यह कोशिश सफल होगी। इतिहास में तख्तापलट की कोई भी साजिश सफल नहीं हुई।'
 
हालांकि सच्चाई यह है कि देश में पिछले साठ वर्ष के दौरान कम से कम पांच सत्ता पर कब्जा करने  की कोशिश की गई है। प्रधानमंत्री बिनाली यिलदिरीम ने शुक्रवार रात को देश को संबोधित करते हुए  कहा, 'यह लोकतंत्र पर हमला है। हम इसे सहन नहीं करेंगे। लोकतंत्र पर किसी तरह का कोई समझौता  बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। दोषियों को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।'
 
बहरहाल, उनके कार्यालय ने यह बताने से इनकार कर दिया कि वे कहां हैं। कार्यालय ने केवल यह कहा  कि वे सुरक्षित स्थान पर हैं। तुर्की में रह रहे भारतीय नागरिकों को भारतीय विदेश मंत्रालय ने हालात  साफ होने तक घरों में ही रहने के निर्देश दिए हैं। अंकारा और इस्तांबुल में हेल्पलाइन नंबर जारी किया  गया है।
 
भारतीय नागरिकों के लिए इमरजेंसी नंबर जारी : विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने बताया  कि अंकारा में भारतीय दूतावास ने वहां रह रहे भारतीय नागरिकों को स्थिति सामान्य होने तक घरों के  अंदर रहने और बाहर न जाने की सलाह दी है।
 
उन्होंने भारतीय नागरिकों के लिए अंकारा में इमरजेंसी नंबर +905303142203 जबकि इस्तांबुल में  इमरजेंसी नंबर +905305671095 जारी किए हैं। पूरे तुर्की में कर्फ्यू लगा : सेना प्रमुख को सैनिक मुख्यालय में ही बंधक बना लिया गया है। पूरे तुर्की में  कर्फ्यू लगा है। इंटरनेट और सोशल साइट्स के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई है। देशभर के शहरों में  लोग सरकार के प्रति अपना समर्थन दिखाने के लिए तख्तापलट की कोशिश के दौरान राष्ट्रीय ध्वज लहराते रहे।
 
तुर्की का दुनिया सें संपर्क टूट गया है। तुर्की के इस्तांबुल शहर में एयरपोर्ट बंद कर दिया गया है।  सभी अंतरराष्ट्रीय उड़ानों को रद्द कर दिया गया है। यूरोप को जोड़ने वाले पुल बास्फोरस और फातिह पुलों को बंद कर दिया गया है। इन्हीं पुलों से लोग एशिया से यूरोप जाते हैं। 
 
प्रधानमंत्री बिनाली यिलदीरिम ने इसे सैन्य तख्तापलट की कोशिश बताया, लेकिन तुर्की में तख्तापलट  का इतिहास 1960 से ही चला आ रहा है। इससे पहले भी तुर्की तख्तापलट और सत्ता की अस्थिरता का  गवाह रह चुका है। हालांकि सेना अब तक 3 बार तख्तापलट की कोशिश में सफल रही है।
 
- तुर्की में पहली बार 1960 में सेना ने तख्तापलट किया। सेना ने सत्ताधारी डेमोक्रेट पार्टी के सभी  सदस्यों को गिरफ्तार कर उन पर मुकदमा चलाया।
 
- साल 1971 में सेना ने कंजरवेटिव पार्टी के सदस्य और प्रधानमंत्री सुलेमान डिमाइरल को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया। देश में सैन्य शासन की घोषणा की गई।
 
- सेना ने 1980 में एक बार फिर तख्तापलट किया। जब देश के लेफ्ट और राइट विंग के बीच हिंसा  की वजह से गृहयुद्ध की स्थिति पैदा हुई, तब तुर्की के चीफ ऑफ जनरल स्टाफ केनान एवरेन के नेतृत्व  में तीसरा तख्तापलट किया गया।
 
- साल 1997 में सेना ने एक बार फिर नेकमेट्टिन एरबाकन को इस्तीफा देने पर मजबूर किया। उन पर  देश में धार्मिक कानूनों को लागू करने का आरोप था। हालांकि उस वक्त सेना ने सत्ता नहीं संभाली थी  और इसके बाद धर्मनिरपेक्ष माने जाने वाले राजनेताओं को सरकार बनाने का मौका दिया गया।
 
- 15 जुलाई 2016 को तुर्की के प्रधानमंत्री बिनाली यिलदीरिम ने घोषणा की कि देश में सेना ने  तख्तापलट की कोशिश की है। हालांकि बाद में राष्ट्रपति ने रिसीप एर्दोगन ने कहा कि देश में उन्हीं की  सरकार है। सेना की कोशिश को असफल कर दिया गया है। 
 
- तख्तापलट की कोशिश नाकाम करने के बाद तुर्की ने शनिवार को कार्यवाहक आर्मी चीफ नियुक्त  किया। कार्यवाहक आर्मी चीफ जनरल उमित दुंदर ने पद संभालते ही घोषणा कर दी कि तुर्की में सेना के  तख्तापलट की कोशिश नाकाम रही।
 
- तुर्की की सेना ने दावा किया है कि उसने सत्ता पर नियंत्रण कर लिया है। तुर्की में फिलहाल अनिश्चय  की स्थिति आ गई है क्योंकि सेना और सरकार दोनों एक-दूसरे के दावों को गलत बता रहे हैं। जिस  समय सेना ने हमले शुरू किए उस वक्त राष्ट्रपति एर्दोगन छुट्टियां मना रहे थे। लेकिन वे तुरंत इस्तांबुल  लौटे और घोषणा की कि सेना के कब्जे से जल्द ही देश को निकाल लिया जाएगा।
 
- लोगों से सड़कों पर उतरने को कहा : तुर्की के राष्ट्रपति रिसीप तईप एर्दोगन ने कहा कि तख्तापलट की  कोशिश करने वाले कभी कामयाब नहीं होंगे। उन्होंने लोगों से अनुरोध किया कि वे सरकार को सपोर्ट  करने के लिए सड़कों पर उतरें, जिसके बाद हजारों की संख्या में लोगों ने सड़कों पर आकर प्रदर्शन किया  और सरकार का साथ दिया। उनके अलावा तुर्की के मेयर ने भी लोगों से कहा कि वे सड़कों पर उतर  जाएं। 
 
तुर्की में गहराया संकट : कई टीवी चैनलों पर दिखाए जा रहे फुटेज में सेना के वाहन पुलों को ब्लॉक  करते और शहर के एयरपोर्ट को टैंक से घेरते नजर आए। यहां बेहद कम ऊंचाई पर सैन्य विमानों के  उड़ने की आवाजें साफ सुनी जा सकती हैं। इसके अलावा लोगों ने गोलीबारी भी सुनी है। सेना के कब्जा  करते ही अंकारा पुलिस विभाग हरकत में आया और अपने पूरे स्टाफ को तुरंत ड्यूटी पर तैनात रहने के  लिए कहा।
 
सोशल मीडिया पर लगा बैन : तुर्की में सैन्य हमले के चलते फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब समेत पूरे  सोशल मीडिया पर बैन लगा दिया गया है। इसके अलावा कई चैनलों को ऑफ एयर कर दिया गया और  एयरपोर्ट बंद किए गए हैं हालांकि बाद में कुछ लोकल टीवी चैनलों को बहाल कर दिया गया है। 
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तख्तापलट के 5 बड़े कारण-  
1. धुंधला पड़ता जा रहा है लोकतंत्र  : रिसीप तईप एर्दोगन की 'एके पार्टी' (एब्रिविएशन ऑफ टर्किश  इनिशियल्स ऑफ जस्टिस एंड डेवलेपमेंट पार्टी) 2002 में सत्ता में आई थी। इससे एक साल पहले ही  एके पार्टी बनाई गई थी। तभी से रिसीप एर्दोगन पर आरोप लगते रहे हैं कि वे राष्ट्रपति के इर्द-गिर्द  सारी शक्तियां केंद्रित करना चाहते हैं। उन्होंने कथित तौर पर लगातार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के  खिलाफ काम किया। 
 
2. तुर्की सरकार का धार्मिक झुकाव : रिसीप तईप एर्दोगन के सत्ता में आने के बाद से ही सरकार का  रुख इस्लाम की तरफ झुक रहा है। देश में धर्मनिरपेक्ष कानूनों की जगह इस्लामिक नियमों को लागू  करने के लिए कई कानून भी पास किए गए।
 
3. अमेरिका से खराब संबंध : तुर्की और अमेरिकी सेना के करीबी रिश्ते हैं, लेकिन फिर भी पश्चिमी  नेताओं के साथ तुर्की के राष्ट्रपति  एर्दोगन के रिश्ते खराब हैं। एर्दोगन और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक  ओबामा के बीच भी कई बार तनाव की स्थिति पैदा हो चुकी है।
 
4. तुर्की सेना और एर्दोगन के तनाव भरे रिश्ते : साल 2002 में सत्ता में आते ही राष्ट्रपति एर्दोगन ने  कई सैन्य अधिकारियों पर कानूनी कार्रवाई की और कई पर अदालतों में केस भी चला। इसके बाद से ही  सेना और एर्दोगन के रिश्ते तल्ख हैं।
 
5. संविधान में बदलाव का दबाव : एर्दोगन सत्ता में आने के बाद से ही संविधान के दोबारा निर्माण के  पक्षधर हैं. एर्दोगन संविधान में बदलाव कर राष्ट्रपति पद को अमेरिकी रंग में ढालना चाहते थे। लेकिन  उनकी इस चाहत ने उनके कई समर्थकों को उनसे दूर कर दिया।

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