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डोनाल्ड ट्रंप के झूठ पर क्यों भरोसा करते हैं लोग

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, शुक्रवार, 23 सितम्बर 2016 (09:30 IST)
डोनाल्ड ट्रंप की झूठ बोलने की कुशलता के पीछे पैथोलोजिकल कारण हैं। उनके हालिया बड़े झूठ कि अमेरिकी प्रेसीडेंट बराक ओबामा अमेरिका के बाहर पैदा हुए थे और कानूनी तौर पर प्रेसीडेंट नहीं हो सकते, को उन्हें आखिर में सही करना पड़ा। असलियत में हुआ यूं कि ट्रंप ने अपने इस झूठ को बदलने के लिए कुछ और बड़े और चमकदार झूठ बोले।
'हिलेरी क्लिंटन और उनके 2008 के कैंपेन से बर्थ की कंट्रोवर्सी शुरू हुई।' (ट्रंप को पक्का पता था कि वे झूठ बोल रहे थे, क्योंकि यह आरोप संडे को छ: तरीकों से गलत साबित किया गया) 
 
"मैंने इसे खत्म किया। मैंने इसे खत्म किया - आपको पता है ना मेरा मतलब" (नहीं तो, क्या वह उस बात के बारे में कह रहे थे जो वे बोलने वाले थे और उनका पुराना राग कि उन्होंने 2011 में हवाई में जांचकर्ता भेजे थे? दोनों ही बातों में, ट्रंप ने साफ झूठ बोला : हवाई की राज्य सरकार ने 2008 में ओबामा के बर्थ स्टेट्स पर सबूत दे दिए थे और इस बात का कोई सबूत नहीं कि ट्रंप ने हवाई में जांचकर्ता भेजे) 
 
न्यूयॉर्क टाइम्स ट्रंप के झूठों पर पूरी तरह ध्यान रख रहा है। हालांकि इससे कुछ होगा नहीं। ट्रंप ने इंसानी दिमाग पर इस तरह से कुशलता पा ली है कि मीडिया ऐसा करने का सोच भी नहीं सकता-और इस बात को साबित करने के लिए सांइस भी मौजूद है। 
 
प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के सांड्रा आमोद और सेम वांग के द्वारा 2008 में आर्टिकल के माध्यम से 'सोर्स इमनेज़िया' समझाया था। ट्रंप बड़ी ही चतुराई से 'सोर्स इमनेज़िया' का फायदा उठाते हैं। जब हमें कोई जानकारी मिलती है, यह हिप्पोकैंपस में इकट्ठी होती है। हर बार जब भी हम इसे याद करते हैं, हमारा दिमाग इसे फिर से लिखता है और यह जानकारी इस बार और अच्छे से याद हो जाती है। कुछ समय के बाद, यह जानकारी हमारे दिमाग के अधिक लंबे समय तक याद रहने वाले स्टोर सिस्टम 'सेरेब्रल कोर्टेक्स' में पहुंचा दी जाती है। 
 
परंतु जिस चीज के आधार पर हमने इसे याद किया था, इसके साथ आमतौर पर नहीं स्टोर होती। उन दोनों बातों में से कोई ही निश्चिततौर पर सच नहीं-और यही सोर्स इमनेज़िया के साथ दिक्कत है। अगर कोई झूठा स्टेटमेंट या कोई अन्य बात फिर से याद की जाती है तो गलत जानकारी हमारे दिमाग में बैठ जाती है। जब भी इसे याद किया जाता है यह उतनी ही सच बनने लगती है। 
 
ट्रंप की मीडिया पहुंच और उनका बार बार बर्थ झूठ कहना 2014 तक चलता रहा-निश्चित तौर पर इसका ही असर है कि दो तिहाई अमेरिकी वोटर्स मानते हैं कि ओबामा यूएस के बाहर पैदा हुए। 
 
रिपब्लिकंस का ट्रंप के इस झूठ पर डेमोक्रेटिक्स से अधिक भरोसा करने की वजह भी समझी जा सकती है। हमारा दिमाग निष्क्रिय होकर जानकारी इकट्ठी नहीं करता। इसमें फिल्टर्स होते हैं जो जानकारी को मैनेज और प्रमुखता देते हैं। ऐसा दिमाग हमारी सोच के आधार पर करता है। ऐसी खबर जो हमारे पहले से ही बनी सोच के हिसाब से होती है, याद रख ली जाती है वहीं बाकी की जानकारी दिमाग मिटा देता है।  
 
इसी तरह रिपब्लिकंस का ओबामा की पॉलिसी पर सवाल उठाने की संभावना प्रबल होने की वजह है कि वे ऐसी जानकारी पर भरोसा करना चाहते हैं जो राष्ट्रपति की ताकत से चिढ़ना सही साबित करती हो।  ऐसी लोग जो ट्रंप के झूठ और ओबामा के बर्थ को लेकर तथ्य की जांच की वकालत करते हैं परिणाम आने पर निराश होंगे। जैसा वांग ने अपनी थ्योरी में बताया कि "एक झूठ को दोहरा कर, इसे अंजाने में ताकतवर बनाया जा सकता है।

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