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निषिद्ध ग्रहों की खोज, जो कर रहे हैं बौने तारों की परिक्रमा

हमें फॉलो करें निषिद्ध ग्रहों की खोज, जो कर रहे हैं बौने तारों की परिक्रमा
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राम यादव

, बुधवार, 15 मार्च 2023 (13:01 IST)
भारतीय मूल के शोधकर्ता शुभम कनोडिया के नेतृत्व में अमेरिका में शोधकर्ताओं ने हमारी आकाशगंगा में ऐसे ग्रहों की खोज की है, खगोल विज्ञान के नियमों के अनुसार जिन्हें होना ही नहीं चाहिए। शुभम कनोडिया ने खगोल भौतिकी में डॉक्टर की उपाधि प्राप्त की है। इस समय अमेरिका में वॉशिंगटन डीसी के कार्नेगी इंस्टीट्यूट की खगोल विज्ञान प्रयोगशाला में वे एक फेलो हैं। वहां वे अपनी टीम के साथ ऐसे विशालकाय गैसीय ग्रहों की खोज और उनका अध्ययन कर रहे हैं, जो एम-ड्वार्फ्स (एम या लाल बौने) कहलाने वाले ऐसे छोटे तारों की परिक्रमा करते हैं, जो हमारे सौरमंडल के सूर्य की अपेक्षा काफी छोटे और कम चमकीले हैं, पर हमारे सूर्य से 10 गुनी अधिक संख्या में पाए जाते हैं। यह अपने ढंग का एक बिल्कुल नया विषय है।
 
माना जाता है कि एम या लाल बौने कहलाने वाले तारों की परिक्रमा कर रहे बाह्य ग्रहों पर जीवन मिलने की संभावना, अन्य तारों की अपेक्षा अधिक होनी चाहिए। जीवन योग्य बाह्य ग्रहों की खोज में शुभम कनोडिया की भी रुचि है तो, पर फिलहाल यह उनकी खोज का विषय नहीं है। उनका ध्यान इस समय हमारे सौरमंडल से बाहर, 280 प्रकाशवर्ष दूर की एक ऐसी ग्रह-प्रणाली पर टिका हुआ है, जिसके केंद्र में TOI-5205 नाम का एक बौना तारा है।
 
खगोल विज्ञान की पत्रिका द एस्ट्रोनॉमिकल जर्नल में प्रकाशित अपने लेख में उनका कहना है कि इस तारे की परिक्रमा एक ऐसा विराटकाय गैसीय ग्रह कर रहा है, जिसका अस्तित्व वास्तव में होना ही नहीं चाहिए।
 
बौने तारों की भरमार : हमारी आकाशगंगा में एम या लाल बौने तारों की भरमार है। वे हमारे सूर्य की अपेक्षा कहीं अधिक छोटे आकार के, और तापमान की दृष्टि से भी सूर्य से आधे तापमान वाले होते हैं, इसलिए पृथ्वी पर से देखने पर ललछौंहे रंग के दिखते हैं। इन तारों की चमक तो मद्धिम होती है, पर आयु बहुत लंबी होती है। उनके पास बड़े-बड़े भारी-भरकम तारों की तुलना में छोटे आकार के औसत से अधिक ग्रह होते हैं।
 
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के उपग्रह TESS (ट्रांजिटिंग एक्सोप्लैनेट सर्वे सैटेलाइट) ने हाल ही में TOI 5205b नाम के एक बाह्यग्रह का पता लगाया था। शुभम कनोडिया की टीम ने विभिन्न उपकरणों की सहायता से, जिन में से कुछ उन्हीं की टीम ने विकसित किए हैं, इस ग्रह की जांच-परख की और पाया कि वह सचमुच एक बाह्यग्रह है। इन उपकरणों की सहायता से पृथ्वी पर से ही उसकी और उसके मालिक तारे की कई विशेषताओं का भी पता लगाया जा सका। मालिक बौना तारा TOI-5205 हमारे सौरमंडल के ग्रह बृहस्पति से केवल चार गुना बड़ा है। हमारी आकाशगंगा के तीन-चौथाई तारे इसी प्रकार के बौने तारे हैं।
 
मानो मटर का दाना नींबू के फेरे लगाए : इस खोज से पहले भी कुछ बड़े गैसीय बाह्यग्रह पुराने लाल बौनों की परिक्रमा करते मिले थे। लेकिन, TOI-5205 जैसी कोई ऐसी ग्रह-प्रणाली अभी तक नहीं मिली थी, जिसमें कोई विराटकाय गैसीय ग्रह किसी हल्के बौने तारे के फेरे लगाता हो। यह कुछ ऐसा ही है, मानो मटर का एक दाना नींबू के फेरे लगाए। इसकी तुलना यदि हम अपने सौरमंडल से करें, तो हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह बृहस्पति यदि मटर के एक दाने के बराबर हो, तो हमारा सूर्य एक चकोतरे जितना बड़ा होगा।
 
ग्रह बनते हैं किसी नए तारे की तेज़ी से फेरे लगा रही गैस और धूल के तश्तरियों (डिस्क) के रूप मे संघनित होने से। गैसीय ग्रहों के बनने का सबसे सामान्य सिद्धांत यह है कि हमारी पृथ्वी का जितना द्रव्यमान (मास) है, उसके 10 गुने के बराबर यदि चट्टानी सामग्री जमा हो कर अपने केंद्र में एक भारी क्रोड़ बना सके, तो वह क्रोड़ अपने आस-पास घूम रही गैस को खींच कर संघनित करने लगेगा। इस क्रिया के पूरा होने में बहुत समय लगता है, इसलिए समय भी इसके लिए एक सबसे निर्णायक कारक है।
 
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विराटकाय ग्रह बनने की शर्त : कनोडिया का कहना है, गैस और धूल से बनी तश्तरियों के बारे में हम जो कुछ जानते हैं, उसके अनुसार TOI 5205b के होने से तश्तरियां खिंच रही हैं। यदि चट्टानी सामग्रियां शुरू से ही पर्याप्त मात्रा में न हों, तब न तो कोई क्रोड़ बनेगा और न ही विराटकाय गैसीय ग्रह बन पायेंगे। कोई विराटकाय ग्रह तब भी नहीं बनेगा, जब तश्तरी की सामग्री भारी-भरकम क्रोड़ बनने से पहले ही (तारे की गर्मी से) भाप बन कर उड़ जायेगी। TOI 5205b इन सब नियमों के बावजूद बना है। ग्रहों के बनने की हमारी वर्तमान समझ के अनुसार, TOI 5205b का अस्तित्व होना ही नहीं चाहिये था। वह एक निषिद्ध ग्रह है।
 
निषिद्ध होते हुए भी TOI 5205b का अस्तित्व सिद्ध होने का साफ़ मतलब यही है कि हमारी आकाशगंगा में ऐसे और उदाहरण भी हो सकते हैं। शुभम कनोडिया की टीम ने दिखाया है कि TOI 5205b अपने तारे की परिक्रमा के दौरान, अपने विशाल आकार के द्वारा उसे इतना अधिक और इतने लंबे समय ग्रहण लगा देता है कि अंतरिक्ष में हमारे समय के सबसे शक्तिशाली दूरदर्शी, जेम्स वेब टेलिस्कोप की सहायता से, उसके वायुमंडल और उसकी उत्पत्ति के अन्य रहस्यों पर से पर्दा उठाना भी संभव होना चाहिये।
 
कनोडिया की टीम में चार और भारतीय : अपने बारे में कनोडिया का कहना है, हम विशेष रूप से इन कम द्रव्यमान वाले तारों की परिक्रमा करने वाले विशाल ग्रहों में रुचि रखते हैं क्योंकि उनकी खोज अपेक्षाकृत हाल ही में हुई है। हाल तक हमने सोचा था कि वे नहीं बन सकते हैं और बहुत दुर्लभ होने चाहिए। उनकी टीम के सदस्यों में उनके और मुख्यतः अमेरिकी-यूरोपीय देशों के लोगों के अलावा भारतीय मूल के 4 और लोग हैं- अंजली पीत्ते, अर्पिता रॉय, सुवरत महादेवन और अरविंद गुप्ता। इस शोधकार्य में भारत के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंंडामेंंटल रिसर्च ने भी सहयोग दिया है। इस खोज से यह भी पता चलता है कि भारतीय वैज्ञानिक अब पश्चिम में भी ज़ोर-शोर से अपना सिक्का जमाने लगे हैं।

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