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सिर्फ 756 रुपए में एक माह तक घूमिए जर्मनी, टिकट खरीदना भी आसान

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राम यादव

1 जून से 31 अगस्त तक के तीन महीनों के दौरान जर्मनी की रेलवे और मेट्रो ट्रेनों, बसों और ट्रामों में सामान्य की अपेक्षा अधिक भीड़ रहेगी। 6 साल से अधिक आयु का हर व्यक्ति, 9 यूरो का एक मासिक टिकट ख़रीद कर, पूरे देश की सारी सार्वजनिक परिवहन सेवाओं का असीमित उपयोग कर सकता है।
 
यदि आप अगले तीन महीनों में यूरोप जाना चाहते हैं, तो जर्मनी ज़रूर जाएं। हर महीने केवल 9 यूरो (1 यूरो=84 रुपए) का एक विशेष मासिक टिकट ख़रीदकर पूरे जर्मनी की सभी सार्वजनिक परिवहन सेवाओं का उपयोग कर सकते हैं। जहां चाहें, वहां जा सकते हैं। जितना चाहें, उतना घूम सकते हैं। ऐसा मौका फिर कभी नहीं आएगा!
 
कोविड-19 महामारी ने दो वर्षों से जर्मन जनता की नाक में दम कर रखा है। मानो, यही कुछ कम न हो, 24 फ़वरी से चल रहे रूसी-यूक्रेनी युद्ध के कारण भारी मंहगाई की मार नहले पर दहला बन गई है। बिजली और ईंधन का बिल अपूर्व तेज़ी से बढ़ गया है। जनता को राहत देने के लिए जर्मनी की नई-नवेली सरकार कुछ ऐसा करने पर विवश हो गई, जो पहले कभी नहीं हुआ था। 
 
सरकार ने तय किया है कि इस साल 1 जून से लेकर 31 अगस्त तक, पूरे देश में असीमित संख्या में, एक ऐसा मासिक यात्री-टिकट उपलब्ध किया जाएगा, जिसके लिए हर व्यक्ति को केवल 9 यूरो देने होंगे। यह टिकट देशव्यापी रेलवे ट्रेनों से लेकर देश भर के सभी शहरी और देहाती इलाकों में चल रही उपनगरीय ट्रेनों, सार्वजनिक बसों, ट्रामों, मेट्रो-ट्रेनों, मोनोरेल और फेरी-नौकाओं के लिए भी मान्य होगा। 6 साल तक के बच्चे वैसे भी हर जगह व हर समय बिना टिकट यात्रा कर सकते हैं। यह मासिक टिकट केवल 'इंटर सिटी (EC)' या 'इंटर सिटी एक्सप्रेस (ECE)' कहलाने वाली लंबी दूरी की तेज़गति (बुलेट) ट्रेनों में और सभी ट्रेनों के फ़र्स्ट क्लास वाले हिस्से में नहीं चलेगा।
 
टिकट ख़रीदना भी बहुत आसान होगा। उसे अपने कंप्यूटर या स्मार्ट फ़ोन द्वारा, रेलवे, मेट्रो या बस सेवा के टिकट देने वाले ऑटोमैट द्वरा, या जहां कहीं उनके टिकट-काउन्टर हों, वहां से ख़रीदा जा सकता है। स्वदेशी या विदेशी, जर्मन या ग़ैर-जर्मन का कोई भेदभाव नहीं है।
 
9 यूरो टिकट 'इंटर सिटी' या 'इंटर सिटी एक्सप्रेस' ट्रेनों के लिए उपलब्ध नहीं होने कारण, उदाहरण के लिए, बर्लिन से फ्रैंकफ़र्ट या म्यूनिक जाना हो, तो ट्रेन कुछेक बार बदलनी पड़ सकती है। जिस के पास समय और धैर्य हो, उसे ट्रेनें बदलते हुए पूरे जर्मनी को छान मारने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। जर्मनी इतना हरा-भरा, साफ-सुथरा और सुरम्य देश है कि उसे अच्छी तरह देखने-जानने का सही आनन्द ट्रेन में बैठकर ही मिल सकता है। शहरों के भीतर ट्रामों, बसों और महानगरों में मेट्रो की भी भरपूर सुविधा है। उनका आम तौर पर केवल एक किलोमीटर का किराया भी एक यूरो से अधिक होता है।   
 
पूरे देश की सभी सार्वजनिक परिवहन सेवाओं के लिए पूरे महीने, और कुल मिलाकर 3 महीनों तक उलब्ध यह टिकट इतना सस्ता है कि जिसके पास घूमने का समय हो, वह हज़ारों यूरो की बचत कर सकता है। इस कारण आशंका है कि बसें, ट्रेनें और ट्रामें भरी रहेंगी। दूसरी ओर, जून से अगस्त तक का समय गर्मी की छुट्टियों का भी समय होता है। जर्मन इन छुट्टियों में विदेश जाकर घूमना-फिरना अधिक पसंद करते हैं। कोरोना के कारण दो वर्षों से उन्हें अपने इस शौक पर लगाम लगानी पड़ी है। इसलिए हो सकता है, कि उतनी भीड़ शायद न हो, जितनी आशंका है।

इस बहुत ही सस्ते टिकट द्वारा जर्मनी की केंद्र सरकार एक ही तीर से कई निशाने साधना चाहती है : कोरोना से ऊबी हुई जनता का मन बहलाना, डीज़ल-पेट्रोल की मंहगाई से पीड़ितों को तीन महीनों के लिए एक दूसरा विकल्प देना और कार-प्रेमियों को कार छोड़कर ट्रेन-ट्राम-बस की ओर आकर्षित करना। यदि ऐसा हो सके, तो जालवायु परिवर्तन की रोकथाम में भी कुछ सहायता मिलेगी। यही सब सोच कर जर्मनी की केंद्र सरकार 9 यूरो टिकट पर ढाई अरब यूरो ख़र्च करने जा रही है।

अनेक नामी कार-निर्माता कंपनियों के देश जर्मनी में हर परिवार के पास औसतन दो कारें हैं। लोग ट्रेनों-बसों-ट्रामों की सवारी को असुविधाजनक मानते हैं। हो सकता है कि कुछ लोग बाद में डीज़ल-पेट्रोल की मंहगाई का रोना रोने के बदले अपने क्षेत्र की परिवहन कंपनियों के परिसंघ (ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन/ ट्रांसपोर्ट कंसोर्टियम) द्वरा संचालित सेवाओं का लाभ उठाने की सोचें। सड़कों पर ट्रैफ़िक-जाम और हवा में कार्बन डाईॉक्साइड का उत्सर्जन घटे। 
 
सवा 8 करोड़ की जनसंख्या वाला, किंतु क्षेत्रफल में भारत के महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश या मध्य प्रदेश के लभग बराबर का जर्मनी, सार्वजनिक परिवहन कंपनियों के कुल 75 संघों में बंटा हुआ है। 1 सितंबर से इन सभी परिवहन संघों में सामान्य स्थिति लौट आएगी। सामान्य स्थिति में भी उनके दायरे में पड़ने वाली सभी रेल, बस, ट्राम, मेट्रो इत्यादि सेवाओं के लिए एक ही टिकट होता है।

उसी एक टिकट से, बिना कोई दूसरा टिकट लिए, परिवहन के हर माध्यम की सेवा का लाभ उठाया जा सकता है। सवारी का माध्यम बदलने पर कोई नया टिकट नहीं लेना पड़ता। केवल लंबी दूरी की तेज़गति ट्रेनें इसका अपवाद हैं। किसी एक परिवहन संघ के अंतर्गत सभी सेवाओं के लिए एक ही टिकट के पीछे उद्देश्य है, लोगों के लिए यात्रा सुविधाजनक बनाना; कार वालों को कार छोड़ने के लिए प्रोत्साहित करना। नगर पालिकाएं और राज्य सरकारें अपने क्षेत्र के परिवहन संघों को अनुदान देती हैं, क्योंकि वे प्रायः घाटे में चलते हैं।

हर संघ के कई 100 वर्ग-किलोमीटर विस्तार के अनुसार उसमें कई ज़ोन होते हैं। टिकट की क़ीमत गंतव्य पर पहुंचने के लिए आवश्यक ज़ोनों की संख्या के अनुसार होती है। जितने अधिक ज़ोन पार करने होंगे, उतना ही अधिक पैसा देना होगा। टिकट एक या अनेक ज़ोन के भीतर के सभी रेलवे स्टेशनों या बस-ट्राम-मेट्रो के स्टॉपों के लिए वैध होता है।
 
सामान्य दिनों के टिकटों के भी कई प्रकार हैं : केवल एक बार का, एक दिन का, तीन दिन का, एक सप्ताह का या पूरे महीने का टिकट; 6 से 14 साल तक के बच्चों का टिकट, छात्रों-प्रशिक्षार्थियों का टिकट, सुबह 9 बजे के बाद का टिकट, लंबे समय की ग्राहकी का टिकट, 60 साल से अधिक का वरिष्ठजन टिकट, विकलांग टिकट और 'जॉब-टिकट'। संस्थाएं, कंपनियां, कल-कारखाने अपने कर्मचारियों के लिए इलेक्ट्रॉनिक-चिप वाले 'जॉब-टिकट' की व्यवस्था कर सकते हैं। ट्रेनों-ट्रमों में ही नहीं, प्रायः बसों में भी कुत्ते-बिल्ली, साइकल और पहियाकुर्सी (व्हीलचेयर) ले जाने की अनुमति रहती है।
 
किसी संस्था, कंपनी या कारखाने में 'जॉब-टिकट' पाने के इच्छुक कर्मचारियों का आनुपातिक प्रतिशत जितना अधिक होगा, प्रतिव्यक्ति टिकट की क़ीमत उतनी ही कम होगी। टिकट की फ़ीस हर महीने या तो वेतन से कटेगी या सीधे धारक के बैंक-खाते से ली जाएगी। 'जॉब-टिकट' परिवहन संघ के प्रायः पूरे विस्तार के लिए होता है और सबसे सस्ता पड़ता है।

अधिकतर परिवहन संघ, मासिक टिकट और 'जॉब-टिकट' धारियों को शाम प्रायः 7 बजे के बाद, सार्वजनिक छुट्टियों के दिन तथा शनिवार-रविवार के दिन अपने साथ 6 साल से अधिक के दो बच्चों या एक वयस्क को भी, बिना किसी अतिरिक्त टिकट के, साथ ले जाने की सुविधा देते हैं। यह सब इसलिए, ताकि अधिक से अधिक लोग कारें छोड़ें, जलवायु और पर्यावरण की सोचें। 
 
केवल साढ़े छह लाख जनसंख्या और ढाई हज़ार वर्ग-किलोमीटर बड़ा लक्सेमबुर्ग जर्मनी से सटा उसका पड़ोसी है। वहां बस, ट्राम और ट्रेन के लिए मार्च 2020 से कोई टिकट लगता ही नहीं। जो कोई जर्मनी में है, वह लगे हाथ लक्सेमबुर्ग जाने और वहां भी मुफ्त में घूमने-फिरने का मज़ा ले सकता है।

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