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‘हागि‍या सोफिया’ के बहाने अर्दुआन ने दुनि‍या का सबसे बड़ा मुस्‍ल‍िम खलीफा बनने का ‘स्‍वप्‍न’ देख लिया है!

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नवीन रांगियाल

मुझे चर्च और मस्‍जिद दोनों में रूचि‍ नहीं है, दोनों के होने या नहीं होने से मुझे फर्क नहीं पड़ता। तो तुर्की में एक मस्‍जिद की जगह चर्च बन जाए या चर्च की जगह मस्‍जिद तो यहां क्‍या फर्क पड़ सकता है। लेकिन तुर्की में अब जो होने जा रहा है, उसका संबंध धर्म और उसकी आड़ में पल रहे अधर्मी स्‍वप्‍न से जरूर है। यह अधर्म आने वाले वक्‍त में पूरी दुनि‍या के लिए अशुभ फल लेकर आएगा

इस अशुभ की शुरूआत इस्‍तांबुल में स्‍थि‍त ‘हागि‍या सोफि‍या’ इमारत से नि‍कलने वाली अजान की पहली आवाज के साथ शुरू हो चुकी है।

हाल ही में तुर्की के सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने इस्तांबुल शहर के प्रसिद्ध हागिया सोफिया म्यूजियम को मस्जिद में तब्‍दील करने का फैसला सुनाया है।

पिछले शनि‍वार तक हागि‍या सोफि‍या को पूरी दुनिया में एक म्‍यूजियम के बतौर जाना जाता था, लेकिन इस फैसले के बाद रविवार की सुबह हागि‍या सोफि‍या से अजान की पहली आवाज सुनाई दी है।

इस्‍तांबुल शहर तो है ही सुदंरता का प्रतीक। यहां इस्‍तांबुल के एक मुहाने पर खड़ी ‘हागि‍या सोफि‍या’ तुर्की में अब तक इस्‍लाम और ईसाइयों की सामुहिक आस्‍था का प्रतीक रही है। जैसे भारत में भी अब तक हिंदू-मुस्‍ल‍िम के बीच गंगा-जमुनी तहजीब का भ्रम पलता रहा है। ठीक वैसे ही तुर्की में हागि‍या सोफिया म्यूजि‍यम सभी पंथों के अनुयायि‍यों के लिए सांस्‍कृति‍क और सामाजिक आस्‍था का केंद्र था।

अब तक इस इमारत में कोई भी प्रवेश कर सकता था, इसके स्‍क्‍ल्‍प्‍चर आर्ट का लुत्‍फ ले सकता था और इस इमारत के ‘सेक्‍यूलरि‍ज्‍म के प्रतीक’ होने पर गर्व महसूस कर सकता था।

लेकिन अब यह सिर्फ इस्‍लाम के अनुयायि‍यों के लि‍ए उपलब्‍ध होगी और यहां से हर रोज अजान की आवाज आएगी।

अब से हागि‍या सोफि‍या नाम की इमारत धर्मनि‍रपेक्ष के प्रतीक के बजाए इस्‍लाम और इसके कट्टरवाद के प्रतीक के तौर पर जानी जाएगी, क्‍योंकि तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब अर्दुआन यही चाहते थे। एक प्रतीक को तोड़कर उसे दूसरे प्रतीक में तब्‍दील करना। पहले यह ‘धर्मनि‍रपेक्षता’ का प्रतीक थी, अब यह ‘इस्‍लामी कट्टरवाद’ का प्रतीक होगी।

धर्म और राजनीति‍ में प्रतीकों का बहुत महत्‍व है। शब्‍दों की तुलना में प्रतीक या उसके वि‍जुअल्‍स ज्‍यादा या शायद बेहद ज्‍यादा असर करते हैं। ठीक इसी तरह कट्टरपंथ भी हमेशा अपने प्रतीकों को उकेरकर दुनिया के सामने उसे दि‍खाता आया है। तुर्की के राष्‍ट्रपति‍ अर्दुआन ने भी वही किया।

अर्दुआन ने तुर्की की अवाम से पि‍छले चुनावों में वादा किया था कि वो हागि‍या सोफि‍या को मस्‍ज‍िद में तब्‍दील करेंगे और वो उन्‍होंने कर दि‍खाया। इस फैसले के बाद न सिर्फ पूरी दुनिया में इसका शोर है, बल्‍क‍ि ईसाइयत भी इसे अपने लिए एक चुनौती के तौर पर देख और महसूस कर रही है।

तुर्की और दुनि‍या के तमाम उदारवादि‍यों की आत्‍मा को तो इस फैसले से ठेस लगी ही है। तुर्की के पहले नोबेल पुरस्‍कार से सम्‍मानित लेखक ओरहान पामुक ने कहा है,

हागि‍या सोफि‍या म्यूज़ियम को मस्‍ज‍िद में तब्‍दील करने के फैसले से मैं बेहद गुस्‍से में हूं। तर्कि‍श राष्‍ट्र पूरी दुनिया में एकमात्र मुस्‍लिम सेक्‍यूलरदेश रहा है। यह गौरव की बात है। हागि‍या सोफि‍या इस गौरव का प्रतीक है। इस गौरव को अब छीना जा रहा है
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लेकिन अर्दुआन ने पूरी दुनि‍या को दरकिनार कर ऐसा किया क्‍योंकि उसकी आंखों में दुनि‍या का सबसे बड़ा मुस्‍ल‍िम खलीफा बनने का स्‍वप्‍न पल रहा है। इसलि‍ए उसने हागि‍या सोफि‍या को मस्‍जिद में बदलने के बहाने तुर्की को एक नए ध्रुव के रूप में उभारने की शुरुआत कर दी है। अब आने वाले वक्‍त में तुर्की का यह ‘इस्‍लामीकरण’ शेष दुनि‍या के लि‍ए भी एक संकट के रूप में सामने आएगा।

दरअसल, हागि‍या सोफि‍या नाम की जिस इमारत को अर्दुआन ने मस्‍ज‍िद में तब्‍दील कि‍या है, उसका जन्‍म एक चर्च के रूप में हुआ था, यानी वो मूलरूप से चर्च है, लेकिन 1453 में जब इस्‍तांबुल शहर पर इस्लामी साम्राज्य ने कब्जा किया तो इमारत में तोड़फोड़ कर इसे मस्जिद में तब्दील कर दिया गया। इसके बाद तुर्की के पहले राष्‍ट्रपति‍ अतातुर्क कमाल पाशा ने 1934 में उस मस्जिद को म्‍यूजियम में बदल दिया, क्योंकि वे इसे एक धार्मिक प्रतीक के बजाए सभी पंथों की आस्‍था के केंद्र के रूप में स्‍थापित करना चाहते थे। अब तक यह इमारत सेक्‍यूलरि‍ज्‍म का प्रतीक थी भी, लेकिन अर्दुआन की आंखों में पल रहे स्‍वप्‍न ने इसे फि‍र से मस्‍ज‍िद में तब्‍दील कर दिया। अब तुर्की दुनिया को किस तरफ ले जाएगा और दुनि‍या तुर्की को किस रूप में देखेगी इसकी प्रतीक्षा है।

(नोट: इस लेख में व्‍यक्‍त वि‍चार लेखक की नि‍जी अनुभूति है, वेबदुनि‍या का इससे कोई संबंध नहीं है।) 

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