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कहानी हिटलर की आत्महत्या की, जानिए क्या लिखा था जर्मन तानाशाह ने अपनी वसीयत में

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राम यादव

जर्मनी के तानाशाह अडोल्फ हिटलर ने 30 अप्रैल 1945 को बर्लिन में आत्महत्या की थी, लेकिन रूसी और अमेरिकी गुप्तचर सेवाएं लंबे समय तक उसे ज़िंदा मानती रहीं।
  
जर्मन तानाशाह अडोल्फ हिटलर का दक्षिणी जर्मनी के सुरम्य आल्प्स पर्वतों की गोद में बसे बेर्शतेसगाडन में एक निजी बंगला था। नाम था ‘बेर्गहोफ़।’ जब कभी वह अपने इस बंगले में होता था, तब उसके लिए भोजन पास के ही एक अस्पताल की रसोई से आया करता था। 1944 की वसंत ऋतु थी। हिटलर एक बार फिर वहीं था। इस बीच कोन्स्तान्त्से मन्त्सियार्ली नाम की एक आकर्षक युवती उस अस्पताल की रसोई में खाना बनाना सीख रही थी। वही हिटलर के लिए भी खाना बनाती थी। हिटलर को उसका बनाया खाना इतना पसंद आने लगा कि उसने कहा, वह स्वयं आकर उसे खाना परोसा करे।
 
बहुत क्रोधी था हिटलर : हिटलर बहुत क्रोधी था। सभी उससे डरते थे। कोन्स्तान्त्से भी। लेकिन मना भी नहीं कर सकती थी। उन्हीं दिनों पता चला कि हिटलर की मेज़ पर खाना पहुंचने से पहले जो महिला खाने को चखकर अपनी सहमति देती थी, वह ‘शुद्ध आर्य’ नहीं थी; यहूदी मिश्रण वाली थी! उसकी छुट्टी कर दी गई। तब कोन्स्तान्त्से से संपर्क किया गया। उसने हिटलर की एक टाइपिस्ट क्रिस्टा श्रोएडर से राय ली। श्रोएडर ने पेशक़श मान लेने की सलाह दी।
 
कोन्स्तान्त्से अच्छी पियानोवादक भी थी। उसका पारिवारिक नाम ‘मन्त्सियार्ली,’ संगीतकार मोत्सार्ट की पत्नी का भी पारिवारिक नाम था। हिटलर को यह बात और अधिक जंचती थी। हिटलर को उसका पसंद आना अंततः उसके भी दारुण अंत का आरंभ बना। वास्तव में, जो कोई हिटलर का नज़दीकी बना, उसका बंटाढार ही हुआ। उसके छेड़े द्वितीय विश्वयुद्ध के हर मोर्चे पर जर्मनी जब हारने लगा, तब 16 जनवरी 1945 से वह राइश-चांसलरी कहलाने वाले अपने कार्यालय के लॉन में बने, तीन-तीन मीटर मोटी दीवारों वाले, भूमिगत बंकर में रहने लगा था। कोन्स्तान्त्से ने,15 अप्रैल 1945 को, हिटलर के बंकर में ही अपना 25वां जन्मदिन मनाया। एक साल से वही हिटलर के लिए खाना बना रही थी।
 
बंकर में ही मनाया 56वां दिन : हिटलर का पेट काफ़ी नाज़ुक था। उसे हाथ कांपने के पार्किन्सन-रोग सहित कई शारीरिक एवं मानसिक कष्ट थे। इसीलिए वह पथ्य, यानी सादा खाना लिया करता था। कोन्स्तान्त्से के जन्मदिन के 5 दिन बाद, 20 अप्रैल को, हिटलर ने भी बंकर में ही अपना 56वां जन्मदिन मनाया। दो दिन बाद, 22 अप्रैल को, हिटलर ने अपने थलसेना अध्यक्ष जनरल विलहेल्म काइटेल को बुला कर इच्छा प्रकट की कि वह लड़ाई के अंत तक बर्लिन में ही रहेगा।
 
जर्मन सेना ‘वेयरमाख़्त’ यदि बर्लिन की – यानी स्वयं हिटलर की– रक्षा नहीं कर पाई, सोवियत सैनिकों ने बर्लिन पर क़ब्ज़ा कर लिया, तो वह अपने आपको गोली मार लेगा। हिटलर समझ गया था कि अब उसके पास अधिक समय नहीं है। अपने सारे काम उसे जल्दी ही निपटा देने हैं। अपने मुख्य एड्जुटैंट (सहायक) यूलियुस शाउब को उसने आदेश दिया कि वह बर्लिन, म्युनिक और बेर्गहोफ वाली उसकी निजी तिजोरियों में रखे सारे कागज़-पत्र जला दे।
 
सबसे भरोसे अधिकारी को करवाया गिरफ्तार : 23 अप्रैल के दिन हिटलर को वायुसेना अध्यक्ष राइशमार्शल हेर्मन ग्यौएरिंग का एक अजीब तार (टेलीग्राम) मिला। ग्यौएरिंग ने बेर्शतेसगाडन से लिखा था कि हिटलर यदि बर्लिन में ही पड़ा रहता है और रात 10 बजे तक तार का जवाब नहीं देता, तो वह (ग्यौएरिंग) -जून 1941 की एक व्यवस्था के अनुसार- समस्त अधिकारों के साथ अपने आपको हिटलर का उत्ताराधिकारी घोषित कर देगा। हिटलर ने इसे अपना तख्ता पलटने का एक षड़यंत्र माना। अपने सबसे भरोसेमंद अधिकारी, नाज़ी पार्टी के मुखिया मार्टिन बोरमान द्वारा रेडियो-संदेश भिजवाया कि ग्यौएरिंग का पत्ता कट गया है। उसे गिरफ्तार कर लिया जाए। यही हुआ।
 
25 अप्रैल से रूसी सेना ने राजधानी बर्लिन को घेर लिया था। 27 अप्रैल के दिन हिटलर ने तय कर लिया कि वह रूसी सेना के हाथों में पड़ने के बदले आत्महत्या कर लेगा। अगले ही दिन उसे ख़बर मिली कि उसका डिप्टी, हाइनरिश हिमलर जर्मनी के विरोधी मित्र राष्ट्रों के साथ कई महीनों से गोपनीय शांतिवार्ताएं कर रहा था। हिमलर को भी उसने तुरंत पद और पार्टी से निकाल बाहर कर दिया। हिमलर तो हाथ नहीं लगा, पर अपनी भड़ास उतारने के लिए उसने हिमलर के अधीनस्थ नाज़ी पार्टी की ‘वाफ़न-एसएस’ कहलाने वाली सशस्त्र सैनिक इकाई के एक ऊंचे अफ़सर को गोली से उड़वा दिया।
 
बंकर में हुई शादी : 28 अप्रैल वाली उसी मध्यरात्रि को, हिटलर ने लंबे समय की अपनी प्रेमिका, एफ़ा ब्राउन के साथ अपने बंकर में ही शादी रचाई। उसका प्रचारमंत्री गोएबेल्स इस विवाह का साक्षी बना। प्रचार मंत्रालय के ही एक अधिकारी ने विवाह की विधिवत रजिस्ट्री की। हिटलर ने उसी रात अपनी टाइपिस्ट ट्राउडल युंगे को सामने बिठाकर अपना वसीयतनामा लिखवाया। वसीयत का निजी हिस्सा बहुत छोटा था। उसमें उसने लिखवाया कि वह अब जीना नहीं चाहता। उसके पास जो भी संपत्ति है, उसे वह पार्टी और देश के नाम कर रहा है।
 
वसीयत के राजनैतिक हिस्से में हिटलर ने प्रथम विश्वयुद्ध से मिली सीख और द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू करने के बारे में अपनी सोच-समझ वाले तर्क पेश किए। स्वयं को निर्दोष बताते हुए दावा किया कि वह युद्ध नहीं चाहता था; युद्ध उस पर थोपा गया। पोलैंड पर 1 सितंबर 1939 को जर्मन आक्रमण से तीन दिन पहले तक वह ब्रिटेन से वार्ताएं करता रहा। उसने जो कुछ किया, अपने देश और जनता के प्रति निष्ठा व प्रेम के चलते किया। युद्ध तो ‘उन स्वार्थी अंतरराष्ट्रीय राजनेताओं ने थोपा, जो या तो स्वयं यहूदी थे, या यहूदियों के बहकावे में आ गए थे।’
 
क्या लिखा था हिटलर की वसीयत में : वसीयत के इस राजनैतिक हिस्से में ही हिटलर ने अपने उत्तराधिकारी भी तय कर दिए। नौसेनाध्यक्ष एडमिरल कार्ल ड्यौएनित्स को जर्मन राइश (साम्राज्य) का राष्ट्रपति बनाया और अपने प्रिय ढिंढोरची योज़ेफ़ गोएबेल्स को राइश-चांसलर (प्रधानमंत्री)। वसीयत लिखवाने का यह काम 29 अप्रैल की सुबह 4 बजे तक चल। वसीयत का अंतिम वाक्य था, ‘मैं राष्ट्र के इन नेताओं को वचनबद्ध करता हूं कि वे विश्व के जनगण के बीच ज़हर घोल रहे अंतरराष्ट्रीय यहूदीवाद के विरुद्ध निष्ठुर प्रतिरोध दिखाने वाले (हमारे) नस्ली अधिनियमों का पूरी बारीक़ी से पालन करेंगे।’ वसीयतनामे पर हिटलर के अलावा उसकी नाज़ी पार्टी के दो पदाधिकारियों तथा सेना के दो ऊंचे अफ़सरों ने हस्ताक्षर किए। 
 
मुसोलिनी की मौत से लगा सदमा : 29 अप्रैल की ही शाम को हिटलर ने सुना कि उसके परम मित्र, इटली के तानाशाह बेनीतो मुसोलिनी और उसकी प्रेमिका को, कम्युनिस्टों ने मौत के घाट उतार दिया है। मुसोलिनी के शव को जनता द्वारा पीटे जाने के लिए सरेआम लटका दिया गया है। इस ख़बर से हिटलर हिल गया। आत्महत्या का उसका इरादा और भी पक्का हो गया। बर्लिन पर तब तक 1000 से अधिक बम गिर चुके थे। हिटलर का चांसलर-कार्यालय पहले ही ध्वस्त हो चुका था। रूसी सैनिक अपनी तोपों और टैंकों के साथ बर्लिन में पहुंच चुके थे। जर्मन सेना उन्हें रोक नहीं पा रही थी। हिटलर किसी भी हालत में रूसी सैनिकों के हाथों में नहीं पड़ना चाहता था। उसकी भी मुसोलिनी जैसी दुर्गति हो सकती थी।
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30 अप्रैल की दोपहर हिटलर ने अपनी नाज़ी पार्टी के अंतिम प्रमुख मार्टिन बोरमान, अपनी टाइपिस्ट ट्राउडेल युंगे तथा कोन्स्टान्त्से मन्त्सियार्ली सहित उन शेष बचे लोगों से विदा ली, जो तब तक बंकर में ही थे। सबको आत्महत्या के लिए संखिया-विष (आर्सेनिक) की छोटी-छोटी शीशियां बांटीं। कहा कि जो कोई निजी जोखिम पर बंकर से बाहर जाना चाहता है, जा सकता है। विष की घातकता हिटलर की अलशेसियन कुतिया पर आजमा ली गई थी। 
 
इस तरह किया जीवन का अंत : तीसरे पहर साढ़े तीन बजे, एफ़ा ब्राउन ने बंकर में हिटलर के दफ्तर वाले कमरे में संखिया निगला। उसी क्षण हिटलर ने भी 7.65 मिलीमीटर की नली वाली अपनी पिस्तौल को दाहिनी कनपटी पर रख कर अपने सिर में गोली मार ली। उसका निजी सेवक हाइंत्स लिंगे कुछ ही मिनट बाद कमरे में आया। दोनों शवों को कंबलों में लपेटा और नाज़ी पार्टी के दो ‘एसएस’ सैनिकों की मदद से चांसलर कार्यालय के लॉन में ले जाकर जला दिया। दोनों शवों को अधिकतम जलाने के लिए ख़ूब पेट्रोल उड़ेला गया। शवों के बचे-खुचे हिस्से को, कुछ अन्य शवों के साथ, बम गिरने से बंकर के पास ही बने एक गड्‍ढे में डालकर दफ़ना दिया गया। रूसी सैनिक जब वहां पहुंचे, तो उन्हें हिटलर के बदले यही सब मिला।
 
हिटलर के जो भी कर्मचारी व सहयोगी उसके मरने के समय तक चले नहीं गए थे, वे बंकर के रसोईघर में जमा हुए। उनके बीच 25 साल की कोन्स्तान्त्से भी थी। रो रही थी। कह रही थी कि हिटलर ने उससे शाम के खाने के लिए मसले हुए आलू के साथ अंडे की भुर्जी बनाने को कहा था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे। वह कुछ और लोगों के साथ बंकर के बाहर गई। कुछ देर बाद उसे कुछ रूसी सैनिकों के साथ भूमिगत रेल की सुरंग में जाते देखा गया। य़ही उसकी अंतिम झलक थी। उसे फिर कभी कहीं किसी ने नहीं देखा। हिटलर की आत्महत्या के कुछ ही घंटे बाद, उसके ढिंढोरची योज़ेफ़ गोएबेल्स ने भी अपने तीन बच्चों और पत्नी के साथ आत्महत्या कर ली थी।
 
बर्लिन पर रूसी सेना का कब्जा : जर्मन सेना की सर्वोच्च कमान ने हिटलर की मृत्यु का समाचार अगले दिन, 1 मई को दिया। जर्मन रेडियो के हैम्बर्ग स्टेशन से प्रसारित यह समाचार भी झूठ की पराकाष्ठा था। उसमें कहा गया था, ‘फ्युअरर (नेताजी) के मुख्यालय से ख़बर आई है कि हमारा फ्युअरर, अडोल्फ़ हिटलर, राइश चांसलर कार्यालय में स्थित अपने कमान केंद्र में, बोल्शेविकों (रूसी कम्युनिस्टों) के विरुद्ध अंतिम सांस तक लड़ते हुए, आज तीसरे पहर वीरगति को प्राप्त हुआ।’ अगले दिन, यानी 2 मई को, बर्लिन शहर पर रूसी सेना का क़ब्ज़ा हो गया।
 
फिर चला अफवाहों का दौर : किंतु, हिटलर की कथित आत्महत्या के साथ ही कहानी ख़त्म नहीं हो जाती। 30 अप्रैल 1945 के कई दशक बाद तक अफ़वाहें उड़ती रहीं, दावे होते रहे कि ‘हिटलर ज़िंदा है।’ उसका कट्टर शत्रु, सोवियत तानाशाह योज़ेफ़ स्टालिन भी ऐसी अफ़वाहों और दावों को हवा दिया करता था। सोवियत गुप्तचर सेवा ‘केजीबी’ को ही नहीं, अमेरिकी गुप्तचर सेवाओं ‘सीआईए’ और ‘एफबीआई’ को भी लंबे समय तक यही लग रहा था कि अपने कई अन्य ऊंचे अधिकारियों और साथियों की तरह हिटलर भी, सबको चकमा देकर, कहीं न कहीं भाग गया होगा।
 
इन एजेंसियों की फ़ाइलों में सैकड़ों कथित ‘प्रत्यक्षदर्शियों’ के बयान हैं, जिनमें दावे किए गए हैं कि हिटलर को ‘’बर्लिन में ही एक विमान में चढ़ते देखा’ या फ़ासिस्ट तानाशाह ‘फ्रांको के स्पेन में देखा।’ ऐसे लोगों की संख्या सबसे अधिक है, जिन्होंने हिटलर को लैटिन अमेरिकी देश अर्जेन्टीना में देखने के दावे किए हैं। कुछ लोगों ने तो वहां हिटलर और उसकी पत्नी एफ़ा ब्राउन, दोनों को एक साथ देखने के दावे किए। इस बारे में अनेक पुस्तकें लिखी गई हैं और दर्जनों डॉक्यूमेंट्री फ़िल्में भी बनी हैं।
 
20 अप्रैल 1945 के दिन अपना 56वां जन्मदिन मनाने वाला हिटलर, 10 दिन बाद यदि आत्महत्या का झूठा नाटक रचकर बच भी निकला हो, तब भी पिछले 77 वर्षों में निश्चित रूप से इस दुनिया से जा चुका होगा। सच यह भी है कि उसकी आत्महत्या के 11 वर्ष बाद, जर्मनी में बेर्शतेसगाडन की एक अदालत ने, लंबी सुनवाई के बाद, 25 अक्टूबर 1956 को उसे अंतिम रूप से मृत माना।
 
हिटलर की मातृभूमि रहे जर्मनी के पड़ोसी ऑस्ट्रिया के एक वकील हेर्बर्ट एगश्टाइन ने, 29 जुलाई 1952 को, बेर्शतेसगाडन की अदालत में एक याचिका दायर की। वह हिटलर को मृत घोषित करवाना चाहता था, ताकि ऑस्ट्रिया में ज़ब्त उसकी संपत्तियों से जुड़े विवादों का निपटारा हो सके। मुख्य विवाद एक डच कलाकार की एक पेंटिंग को लेकर था। हिटलर ने उसे ऑस्ट्रिया के एक नागरिक पर दबाव डाल कर सस्ते में ख़रीदा था। वह व्यक्ति पेंटिंग वापस चाहता था। हिटलर के निजी सेवक हाइंत्स लिंगे व एड्जुटैंट ओटो ग्युन्शे जैसे कई जीवित लोगों के बयान सुनने के बाद अदालत ने हिटलर को मृत घोषित किया।
 
‍फिर चला जांच का सिलसिला : इसके बाद भी अटकलों और अफ़वाहों का बाज़ार ठंडा नहीं पड़ रहा था। फ्रांस के अनुरोध पर रूसी गुप्तचर सेवा ‘एफ़एसबी’ ने 2017 में, फ्रांस के पांच फ़ोरेंसिक वैज्ञानिकों की एक टीम को मॉस्को आकर वहां रखे हिटलर की खोपड़ी के टुकड़ों और जबड़े की जांच करने की अनुमति प्रदान की। फ्रांसीसी टीम मार्च और जुलाई 2017 में वहां गयी। टीम ने पाया कि जांच के लिए उसे दी गई खोपड़ी की एक हड्डी में एक छेद था, जो संभवतः किसी गोली से बना होना चाहिए। यानी, हिटलर ने अपने सिर में गोली मारी रही होगी।
 
टीम के प्रवक्ता फ़िलिप शार्लिय़ेर का कहना था कि मॉस्को में उन्हें जो दांत दिखाए गए, वे भी हिटलर के ही होने चाहिए। इन दांतों का मिलान उन्होंने हिटलर की मृत्यु से पहले के उसके सिर के एक्स-रे चित्र से किया और पाया कि दोनों में कोई विसंगति नहीं है। हिटलर के दांत बहुत अच्छे नहीं थे। कुछ नकली दांत भी थे। दांत उसके मांसाहारी नहीं, बल्कि शाकाहारी होने की पुष्टि करते थे।
 
फ़िलिप शार्लिय़ेर का यह भी कहना था कि वे नहीं बता सकते कि हिटलर की मृत्यु ज़हर से हुई या गोली से। सारी संभावना यही लगती है कि उसने दोनों का उपयोग किया। गोली के किसी दांत से टकराने के संकेत नहीं मिले। इसका अर्थ था कि गोली मुंह में नहीं, बल्कि सिर या गर्दन की तरफ से दागी गई थी। नकली दांतों पर नीले रंग का एक निक्षेप मिला, जो हो सकता है संखिया और नकली दांतों की धातु के बीच रासायनिक क्रिया से बना हो।
 
फ्रांसीसी टीम की यह खोज ‘यूरोपीयन जर्नल ऑफ़ इन्टर्नल मेडिसिन’ में प्रकाशित हुई। फ़िलिप शार्लिय़ेर ने हिटलर के बारे में अफ़वाहों और अटकलों की चुटकी लेते हुए कहा– ‘वह किसी पनडुब्बी से अर्जेन्टीना नहीं भागा था। उत्तरी ध्रुव के किसी गुप्त अड्डे पर भी कहीं नहीं छिपा था और न ही चंद्रमा के अंधेरे हिस्से में रह रहा था।’

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