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कब और कैसे बनी पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI, जानिए कैसे चुना जाता है ISI का चीफ

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WD Feature Desk

, बुधवार, 21 मई 2025 (12:22 IST)
isi pakistan kya hai : हरियाणा के हिसार की रहने वाली ज्योति मल्होत्रा को पाकिस्तान के लिए भारत की जासूसी करने के आरोप में भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने गिरफ्त किया है। अब ज्योति के ISI से कनेक्‍शन की बात भी सामनेआई है जिसके बाद सुरक्षा एजेंसियां नए सिरे से जांच कर रही है। इसमें पहलगाम हमले को लेकर भी जांच की जा रही है। ये सच है कि विगत दशकों में भारत पर हुए आतंकी हमलों में ISI का हाथ रहा है। लेकिन क्या आप जानते हैं पाकिस्तान में कब हुई थी ISI की स्थापना? आइये इस लेख में जानते हैं। साथ ही जानेंगे कौन होता है ISI का चीफ और यह कैसे चुना जाता है।

कब और कैसे बनी ISI
पाकिस्तान के गठन के बाद 1948 में इंटर-सर्विसेज़ इंटेलिजेंस (ISI) का गठन किया गया। इसकी नींव ऑस्ट्रेलियाई मूल के ब्रिटिश आर्मी ऑफिसर मेजर जनरल आर. कैथोम ने रखी थी, जो उस समय पाकिस्तानी सेना स्टाफ के प्रमुख थे। शुरुआत में, इसका मुख्यालय रावलपिंडी में था और इसे "इंटेलिजेंस ब्यूरो" के नाम से भी जाना जाता था। 1950 में, पूरे पाकिस्तान की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा का जिम्मा ISI को सौंप दिया गया, और तब से यह पाकिस्तान की सबसे बड़ी खुफिया सेवा बनी हुई है। आइये आज आपको पाकिस्तान की इस खूफिया एजेंसी के बारे में जानकारी देते हैं

अमेरिका ने दी शह
80 के दशक तक ISI एक लचर गुप्तचर एजेंसी के तौर पर पहचानी जाती थी। माना जाता है कि अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए ने इसके मंसूबों को अंजाम देने के लिए इसे प्रशिक्षित किया और आतंकी नेटवर्क जैसी साजिश रचने का काम सिखाया। बता दें कि इस समय अफगानिस्तान में सोवियत फौजें डटी हुईं थीं। अमेरिका ने छद्म युद्ध कू चाल की तरह इस्तेमाल किया और सोवियत सेनाओं को शिकस्त देने के लिए आईएसआई को मजबूत किया।

भारत में कश्मीर के खिलाफ ISI की करतूतें
करीब दो दशक तक सीआईए ने आईएसआई को ट्रेनिंग देकर मजबूत करने का काम किया। आईएसआई ने सीआईए से मिले प्रशिक्षण और खाड़ी देशों से मिले इस्लामी फंड के जरिये भारत में दो दशक के भीतर आतंकवाद को फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 1988 में आईएसआई ने भारत के कश्मीर में 'ऑपरेशन टुपैक' और 1990 में 'ऑपरेशन रेड वेव' को अंजाम दिया, जिनका उद्देश्य घाटी में आतंक फैलाना था। इन ऑपरेशन में कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाया गया और बड़ी संख्या में हत्याएं की गईं। 1990 में, कश्मीरी पंडितों ने घाटी छोड़ने को मजबूर होना पड़ा। माना जाता है कि 1990 के दशक में आईएसआई का सबसे खास काम जिहादियों को तैयार करना बन गया।

इन प्रक्रियाओं के जरिए चुना जाता है ISI चीफ
ISI का मुखिया पाकिस्तान की सेना में एक महत्वपूर्ण पद होता है। इसके चयन की प्रक्रिया मुख्य रूप से सेना के उच्च स्तर पर होती है:
आर्मी चीफ चुनता है उम्मीदवार: ISI चीफ का चयन पाकिस्तान की सेना के प्रमुख (चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ) द्वारा किया जाता है। सबसे पहले आर्मी चीफ की ओर से इस पद के लिए योग्य उम्मीदवारों की एक लिस्ट तैयार की जाती है।
कैसे होता है कैंडिडेट्स का चयन: ISI चीफ के ओहदे के लिए आमतौर पर तीन-चार वरिष्ठ सेना अधिकारी (जो कम से कम लेफ्टिनेंट जनरल रैंक के हों) उम्मीदवार होते हैं। ये उम्मीदवार सैन्य खुफिया, सुरक्षा मामलों और रणनीतिक विश्लेषण में विशेष अनुभव और योग्यता रखते हैं।
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की स्वीकृति: यूं तो ISI चीफ का चयन आर्मी चीफ द्वारा किया जाता है, लेकिन उम्मेदवार के नाम पर मुहर लगने से पहले मंजूरी के लिए इसे प्रधानमंत्री के पास भेजा जाता है।
कार्यकाल की अवधि: आमतौर पर ISI चीफ के कार्यकाल की अवधि 3 साल की होती है, लेकिन इसे बढ़ाया भी जा सकता है। यह पूरी तरह से तत्कालीन सरकार और आर्मी चीफ पर निर्भर करता है।
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