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इजराइल या ईरान: किसकी करेंसी है ज्यादा ताकतवर?, जानें करेंसी का शहंशाह कौन है?

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WD Feature Desk

, शनिवार, 21 जून 2025 (14:11 IST)
Israel vs Iran Currency: क्या आप भी सोच रहे हैं कि इजराइल और ईरान में से किस देश की करेंसी ज़्यादा शक्तिशाली है? यह सवाल कई लोगों के मन में उठता है, खासकर जब इन दोनों देशों के भू-राजनीतिक संबंध चर्चा में आते हैं। करेंसी की ताकत किसी भी देश की आर्थिक स्थिति का एक बड़ा संकेतक होती है। आइए, आंकड़ों और तथ्यों के आधार पर समझते हैं कि इन दोनों देशों में से किसकी करेंसी ज़्यादा दमदार है और इसके पीछे क्या कारण हैं।

एक्सचेंज रेट: करेंसी की ताकत का सीधा पैमाना
किसी भी करेंसी की ताकत को मापने का सबसे सीधा तरीका उसकी एक्सचेंज रेट है, खासकर जब इसे अमेरिकी डॉलर या यूरो जैसी अंतरराष्ट्रीय मुद्राओं के मुकाबले देखा जाता है। यह बताता है कि एक डॉलर खरीदने के लिए आपको उस देश की कितनी स्थानीय मुद्रा देनी पड़ेगी।

इजराइल की करेंसी: मजबूत नींव पर खड़ा न्यू शेकेल
जब हम इजराइल की बात करते हैं, तो उसकी करेंसी, न्यू शेकेल (ILS), काफी मजबूत दिखाई देती है। वर्तमान में, एक अमेरिकी डॉलर के बदले में लगभग 3.49 न्यू शेकेल मिलते हैं। यह आंकड़ा स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि इजराइल की मुद्रा की वैल्यू काफी ज़्यादा है। इजराइल के लोगों को एक डॉलर पाने के लिए बहुत कम न्यू शेकेल चुकाने पड़ते हैं, जो उनकी आर्थिक शक्ति का परिचायक है।

ईरान की करेंसी: संघर्ष करती ईरानी रियाल
इसके विपरीत, ईरान की मुद्रा, ईरानी रियाल (IRR), संघर्ष करती हुई नज़र आती है। आंकड़ों के अनुसार, एक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 42,125 ईरानी रियाल मिलते हैं। यह एक बहुत बड़ा अंतर है। सरल शब्दों में कहें तो, एक डॉलर खरीदने के लिए ईरान के व्यक्ति को 42,125 ईरानी रियाल का भुगतान करना पड़ता है। इससे यह साफ तौर पर पता चलता है कि इजराइल की करेंसी के मुकाबले ईरान की मुद्रा काफी कमजोर है।

इजराइल की करेंसी इतनी मजबूत क्यों है?
इजराइल की करेंसी की मजबूती के पीछे कई ठोस आर्थिक कारण हैं। इजराइल को "स्टार्टअप का देश" कहा जाता है। यहां प्रति व्यक्ति स्टार्टअप की संख्या दुनिया के कई विकसित देशों से भी अधिक है। अगर तकनीक की बात करें तो इजराइल दुनिया के कई बड़े देशों को पीछे छोड़ रहा है।
साइबर सिक्योरिटी से लेकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), एग्रो-टेक, मेड-टेक और फिन-टेक जैसे कई महत्वपूर्ण सेक्टर्स में इजराइल की स्थिति बहुत मजबूत है। गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और एप्पल जैसी दुनिया की जानी-मानी कंपनियों के रिसर्च एंड डेवलपमेंट (R&D) सेंटर भी इजराइल में मौजूद हैं। यह दर्शाता है कि इजराइल तकनीकी नवाचार और विकास का एक वैश्विक केंद्र बन चुका है। यह मजबूत तकनीकी आधार और स्टार्टअप इकोसिस्टम विदेशी निवेश को आकर्षित करता है, जिससे देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होती है और स्वाभाविक रूप से इसकी मुद्रा भी स्थिर और शक्तिशाली बनी रहती है।


ईरान की अर्थव्यवस्था: चुनौतियां और कमजोरियां
इजराइल के मुकाबले ईरान की अर्थव्यवस्था कई चुनौतियों का सामना कर रही है। अमेरिका और यूरोप के कई देशों ने ईरान पर बहुत से कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा रखे हैं। ईरान का परमाणु कार्यक्रम इसकी एक बड़ी वजह है। इन प्रतिबंधों के चलते विदेशी मुद्रा और निवेश हमेशा संकट में रहते हैं। ईरान की 80% से ज्यादा आय कभी तेल के निर्यात से आती थी लेकिन वैश्विक प्रतिबंधों की वजह से तेल के व्यापार पर भी बुरा असर पड़ा है। प्रतिबंधों और तेल की वैश्विक कीमतें गिरने से आय बुरी तरह प्रभावित हुई और करंसी पर असर पड़ा। इसके अलावा, ईरान में तानाशाही जैसा शासन विदेशी निवेशकों को यहां निवेश करने से रोकता है।

ईरान के युवा उच्च शिक्षा के बाद अक्सर बेहतर अवसरों की तलाश में दूसरे देशों का रुख करते हैं, जहां उन्हें  विकास के अवसर मिलते हैं। इस कारण प्राइवेट सेक्टर में नए उद्योगों का विकास नहीं हो पाता और नई नौकरियां पैदा नहीं होतीं। राजनीतिक अस्थिरता और अप्रत्याशित नीतियां विदेशी पूंजी के लिए एक बड़ा अवरोध पैदा करती विदेशी निवेश की कमी, सीमित औद्योगिक विकास और प्रतिभाशाली युवाओं का पलायन, ये सभी कारक मिलकर ईरानी रियाल को कमजोर करते हैं।
 
इन सभी आंकड़ों और विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि इजराइल की करेंसी, न्यू शेकेल, ईरान की करेंसी, ईरानी रियाल, की तुलना में कहीं ज़्यादा ताकतवर है। इजराइल की मजबूत अर्थव्यवस्था, नवाचार-आधारित विकास और तकनीकी प्रगति उसकी मुद्रा को बल प्रदान करती है, जबकि ईरान को अपनी आर्थिक और राजनीतिक चुनौतियों के कारण मुद्रा के मोर्चे पर संघर्ष करना पड़ रहा है।

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