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परदेस में कमाने के फेर में उलझी जिंदगियां

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देवव्रत वाजपेयी

, गुरुवार, 28 मई 2015 (10:35 IST)
यह किसी से छुपा नहीं है कि मिडिल ईस्ट देशों में मजदूरी ज्यादा दी जाती है। इसी के चलते हर साल दक्षिण एशिया और अफ्रीका महाद्वीप के लोग एक बेहतर जिंदगी की तलाश में मिडिल ईस्ट देशों की ओर अपना रुख करते हैं।

उनकी आंखों में सपने होते हैं कि वे वहां से कुछ कमाकर अपने सपनों को साकार कर पाएंगे, लेकिन हकीकत इसके उलट है। इन मजदूरों में बड़ी संख्या भारतीय लोगों की भी होती है जो पैसा कमाने परदेस तो चले आए लेकिन यहां आकर उनकी जिंदगी जहन्नुम से बदतर हो गई है। 
  
जिस प्रकार से मजदूरों को वहां शोषित किया जाता है यह जानकर आपकी रूह कांप जाएगी। दरअसल, 2022 में कतर में फीफा विश्व कप का आयोजन किया जा रहा है।
 
विश्व कप के आयोजन को लेकर पूरे देश में निर्माण कार्य जोरों-शोरों पर है। इनके निर्माण कार्य में जो लोग मजदूरी कर रहे हैं उनकी स्थिति दयनीय है। फीफा विश्व कप के चलते अब यह हकीकत पूरे विश्व के सामने आ चुकी है और कतर सरकार के कानून व्यवस्था पर लगातार सवाल उठाए जा रहे हैं।          
 
एक नेपाली मजदूर के मुताबिक, 'कतर में मुझे एक गैरैज में काम दिलाने के कहा गया था, लेकिन जब मैं कतर पहुंचा तो मुझे 100 से 200 फीट ऊंची इमारत में काम करने को लगा दिया गया। वहां काम करना बेहद खतरनाक था। लेकिन मैनेजर ने इस बारे में ध्यान नहीं दिया, बल्कि कहा कि हम खुद अपनी सुरक्षा के लिए जिम्मेदार होंगे।'
 
उसने आगे बताया,  'हमें कुछ कॉन्ट्रेक्टर्स ने नौकरी दिलाई थी। दरअसल, नौकरी तो मिल गई, लेकिन यह नौकरी नहीं, गुलामी से भी बदतर थी। मैंने यहां आने के लिए अपने देश में दोहरे ब्याज पर कर्ज लिया था, लेकिन मैं अपने कर्ज को चुकता नहीं कर पाया, क्योंकि कंपनी ने मुझे मेरा वेतन नहीं दिया। उसने बताया कि मेरी हालत बेहद खराब है। पिछले कुछ दिनों में मुझे अपनी बेटी के दिल का ऑपरेशन करवाने के लिए अपनी पैतृक जमीन बेचनी पड़ी।'      
         
यह कहानी किसी एक मजदूर की नहीं है बल्कि ऐसी ही समस्याओं से वहां रह रहे हजारों मजदूर गुजर रहे हैं। न ही उन्हें उनकी मजदूरी दी जाती है, और न ही रहने के लिए उचित स्थान मुहैया कराया जाता है। वे हताश व परेशान हैं।   
 
ये मजदूर एजेंटों के झांसे में फंस जाते हैं और कम समय में ज्यादा पैसा कमाने के चक्कर में अरब देशों में आते हैं, और जब वे सचाई से रूबरू होते हैं तो पछताते हैं। यहां इन्हें ऐसी जगहों में काम करना पड़ता है, जहां परिस्थितियां बेहद खराब हैं। ऐसे में कई लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ती है।     
 
अगले पेज पर क्या यह 21वीं सदी की गुलामी है? 
 

क्या यह 21वीं सदी की गुलामी है? 
 
एक अंग्रेजी अखबार में छपी खबर के अनुसार कतर में रह रहे 1.2 मिलियन प्रवासी कामगार वहां के कॉन्ट्रेक्टर के शोषण का शिकार हैं। ये इस प्रकार काम कर रहे हैं, जैसे उनके गुलाम हों। ये लोग ज्यादातर पढ़े-लिखे नहीं है और इनमें से ज्यादातर लोग नेपाल, भारत और बांग्लादेश से हैं।
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यहां एक कफाला सिस्टम चलता है जिसके अंतर्गत लोगों को खूब शोषित किया जाता है। इस नियम के मुताबिक कोई भी कामगार अपने नियोक्ता की अनुमति के बगैर न ही नौकरी बदल सकता है और न ही देश छोड़कर जा सकता है।
 
हालांकि कतर के लेबर नियमों में कुछ अच्छाइयां भी हैं जिसमें कामगारों के काम करने के घंटों के निर्धारण, रहने के लिए बढ़िया स्थान मुहैया करना, स्वास्थ्य सुविधाएं अपलब्ध कराना और समय पर पेमेंट देना है, लेकिन यह असल में फॉलो नहीं किया जाता है। यहां रह रहे लोगों की स्थिति अत्यधिक दयनीय है।
 
2013 में जारी की गई मानव अधिकार आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक कतर में 150 लेबर इंस्पेक्टर्स को नियुक्त किया गया है, जो मजदूरों की परेशानियों पर अपनी निगाह रखेंगे। लेकिन इनके द्वारा ऐसा कुछ नहीं किया जा रहा जिससे कि वहां रह रहे लोगों की परेशानियां कम हों। जैसा कि कतर में बिलियन डॉलर का फीफा विश्व कप प्रोजेक्ट चल रहा है। इसी दौरान कई मजदूरों के मरने की खबरें सुनने में मिली हैं। इसके चलते फीफा ने भी कतर प्रशासन से इस संबंध में कदम उठाने को कहा है।   
 
हाल ही में खबर आई थी कि गर्मियों में काम करने की वजह से 44 नेपाली कामगारों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। दरअसल, कतर में गर्मियों में तापमान 50 डिग्री या इसके ऊपर रहता है। ऐसे में बहुत से मजदूर भयंकर गर्मी में काम करते हुए अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं। जब यह रिपोर्ट आई तो कतर ने लेबर इंस्पेक्टर की संख्या दुगनी करने को कहा, लेकिन क्या लेबर इंस्पेक्टर की संख्या बढ़ाने से कोई असर पड़ेगा? यह सवाल बहुत महत्वपूर्ण है।  
 
अगले पेज पर क्यों हैं  कोका कोला और एडिडास निशाने पर?      
 

कोका कोला और एडिडास निशाने पर?  
  
फीफा विश्व कप 2022 में कोका-कोला और एडिडास मुख्य स्पांसर्स हैं। इसी बीच सबसे दिलचस्प बात यह है कि ऑनलाइन मीडिया में इन स्पांसर्स के फेक एड जारी किए गए हैं और इन एड के माध्यम से इन स्पांसर्स पर स्पांसरशिप वापस लेने के लिए दबाव बनाया जा रहा है ताकि कतर प्रशासन मजदूरों की समस्याओं पर गौर फरमाए।    
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एक वेबसाइट में कोका-कोला का फेक एड जारी किया गया है जिसमें कोका-कोला के नाम के साथ 2 हाथों को जंजीरों में जकड़ा दिखाया गया है। साथ में एक जुमला जोड़ा गया है, कोका-कोला को 2022 विश्व कप के पहले लोगों के मानवधिकारों को छलनी करने पर गर्व है।
 
साथ ही एक दूसरा विज्ञापन एडिडास के नाम से जारी किया गया है। इसमें दिखाया गया है कि मजदूर एडिडास के खंभों को रेगिस्तान में गिरने से बचा रहे हैं। साथ ही इसमें एक जुमला जोड़ा गया है- 'गुलाम मजदूर हैं तो कुछ भी असंभव नहीं है'। ये विज्ञापन सोशल मीडिया में जमकर वायरल हो रहे हैं।  
 
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इस महीने जो रिपोर्ट की है उसने सचाई के दो-टूक कर दिए हैं। एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक जो वादे किए गए थे वे पूरे नहीं किए गए। 'ग्लोबल पोस्ट' की संवाददाता ने बताया कि जब वे उस इलाके में पहुंचीं, जहां 10 हजार से ज्यादा कॉन्ट्रेक्ट लेबर रहते हैं तो उनकी परिस्थिति देखकर दंग रह गईं।
 
जहां वे रहते हैं वहां पीने के लिए साफ पानी नही है। वहां काम कर रहे कुछ लोगों ने बताया कि कंपनियां आज भी पुराने तरीके 'कफाला' के अनुसार लोगों से काम ले रही हैं जिसके अंतर्गत जिसे काम दिया जाता है उससे उसका पासपोर्ट ले लिया जाता है ताकि वह चाहे भी तो भी अपनी नौकरी न बदल पाए और न ही अपने देश लौट पाए। 
 
यह कोई नई बात नहीं है जब मिडिल ईस्ट में इस तरह की घटनाएं सामने आई हैं। मजदूरों के साथ यह बर्ताव बरसों से हो रहा है। फीफा विश्व कप की आड़ में इस मुद्दे को हवा तो मिल गई है। लेकिन क्या दबे-कुचले मजदूरों को न्याय मिल पाएगा? ये सवाल अभी भी बहुत अहम है।


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