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Corona के बाद क्या Monkeypox की गिरफ्त में आने वाली है दुनिया, सामने आई डराने वाली रिसर्च

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जोहानिसबर्ग , शनिवार, 17 अगस्त 2024 (19:39 IST)
Monkeypox could become the next global pandemic : अफ्रीका में ‘एमपॉक्स’ का प्रकोप इस तथ्य का एक और उदाहरण है कि कैसे संक्रामक रोगों को किसी दूसरे की समस्या समझा जाता है। विशेष तौर पर गरीबों व विकासशील देशों को प्रभावित करने वाली यह बीमारी अचानक विश्व के लिए अप्रत्याशित रूप से नया खतरा बन सकती है।
 
नजरअंदाज की गई अन्य बीमारियों के उदाहरण वेस्ट नाइल, जीका और चिकनगुनिया वायरस हैं। ‘एमपॉक्स’ का पता 1958 (बंधक बनाए गए बंदरों में, इसलिए मूल रूप से इसका नाम ‘मंकीपॉक्स’ रखा गया) में चला था और इंसानों में इसके सबसे पहले मामले की पहचान 1970 में हुई थी।
 
इसके बाद दशकों तक वैज्ञानिकों और जन स्वास्थ्य समुदायों ने इस संक्रामक रोग को नजरअंदाज किया क्योंकि यह अफ्रीका के ज्यादातर दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में फैलने वाला एक असामान्य संक्रमण था, जिसका बाकी दुनिया में कोई नामोनिशान नहीं था।
 
जब ‘एमपॉक्स’ ने 2022 में विकसित देशों को प्रभावित करना शुरू किया तब जाकर शोधकर्ताओं ने शोध शुरू किए और वैज्ञानिक अध्ययनों की संख्या में इजाफा हुआ। अप्रैल 2022 के बाद से केवल एक ‘मेडिकल सर्च इंजन’ पर ही पिछले 60 वर्षों की अपेक्षा अधिक शोध किए गए हैं।
 
अफ्रीकी शोधकर्ताओं ने ‘एमपॉक्स’ के निदान, उसके उपचार और संक्रमण को रोकने वाले उपकरणों में वैश्विक निवेश को बढ़ाने की जरूरत को लेकर बार-बार आह्वान किया, जिसके बावजूद 2022-23 में ‘एमपॉक्स’ एक वैश्विक प्रकोप के रूप में सामने आया।
 
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने मध्य अफ्रीका में ‘एमपॉक्स’ के बढ़ते मामलों को देखते हुए अब इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक जन स्वास्थ्य आपात स्थिति के रूप में घोषित कर दिया है। यह उन बीमारियों के लिए उच्चतम चेतावनी स्तर है, जो अन्य देशों के लिए जन स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न करती हैं और इनके लिए समन्वित अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया की आवश्यकता होती है।
 
हैरानी की वजह बना 2022 का प्रकोप
इस बीमारी को ‘एमपॉक्स’ के रूप में नया नाम दिया गया लेकिन वायरस का नाम अब भी ‘मंकीपॉक्स’ (एमपीएक्सवी) ही है। इसका ‘स्मॉलपॉक्स वायरस’ से करीबी संबंध है। एमपीएक्सवी को मध्य और पश्चिमी अफ्रीका के कुछ हिस्सों में फैली बीमारी के रूप में जाना जाता था। यह मुख्य रूप से जंगली स्तनधारियों के साथ निकट संपर्क के माध्यम से फैलती है, लेकिन इस संक्रमण के मानव-से-मानव में फैलने का कोई प्रमाण नहीं है।
 
कुछ चुनिंदा इलाकों के बाहर इस संक्रमण के इक्का-दुक्का मामले ही कभी-कभार सामने आते थे और उसमें भी संक्रमण के मामले संक्रमित यात्रियों या फिर संक्रमित छोटे स्तनधारियों के आयात के कारण सामने आते थे। हालांकि 2022 में अचानक इसमें बदलाव आया और इसका वैश्विक प्रकोप दिखा जब 116 देशों में 99,000 से अधिक मामले दर्ज किए गए। सिर्फ और सिर्फ अगस्त 2022 में प्रत्येक सप्ताह ‘एमपॉक्स’ के 6,000 से अधिक मामले सामने आए।
 
अचानक से फैला यह प्रकोप हैरान करने वाला था क्योंकि अधिकांश मामले ऐसे देशों से सामने आए थे, जहां ज्यादातर पुरुष हाल ही में पुरुषों के साथ यौन संबंध बनाने के दौरान संक्रमित हुए थे। भले ही ज्यादातर मामले चिकित्सकीय रूप से गंभीर नहीं थे और मरने वालों की संख्या 200 से कुछ ही अधिक रही, लेकिन 23 जुलाई 2022 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस संक्रमण के वैश्विक प्रकोप को देखते हुए इसे जन स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया।
 
सौभाग्य से जोखिम वाले समूहों में व्यवहार परिवर्तन और टीकाकरण के कारण मामलों की संख्या जल्द ही कम हो गई। ‘एमपॉक्स’ के लिए दी जाने वाली आधुनिक वैक्सीन और एंटीवायरल दवाएं उच्च आय वाले कई प्रभावित देशों में उपलब्ध कराई गईं।
 
अमेरिका और यूरोप में इन वैक्सीन और दवाओं को मुख्यतः पॉक्सवायरस का उपयोग कर संभावित जैविक हथियार हमले की तैयारी के लिए विकसित और भंडारित किया गया था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहला ‘एमपॉक्स’ जनस्वास्थ्य आपातकाल मई 2023 में घोषित किया गया था।
 
अफ्रीका में मामलों की संख्या में उछाल
अफ्रीकी क्षेत्र में ‘एमपॉक्स’ के मामलों में वृद्धि देखी जा रही है, जिसकी शुरुआत 2023 में हुई थी। अफ्रीका महाद्वीप, जिसमें वे चुनिंदा क्षेत्र भी शामिल हैं, जहां एमपॉक्स लंबे समय से फैल रहा था और अब एक जटिल परिदृश्य प्रस्तुत करता है।
 
कुछ चुनिंदा जगहों पर फैला ‘एमपॉक्स’ अब बड़े पैमाने पर फैल चुका है, जिसकी वजह 2022 के वैश्विक प्रकोप से जुड़ी हुई है। उदाहरण के लिए सबसे अधिक चिंताजनक स्थिति दक्षिण अफ्रीका की है, जहां एमपीएक्सवी क्लेड आईबी संक्रमण के मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इस वायरस के शुरु‍आती मामले कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में दर्ज किए गए थे।
 
नया और खतरनाक वायरस
मौजूदा वायरस ‘आई एमपीएक्सवी’ (जिसे पहले वायरस का कांगो बेसिन प्रकार कहा जाता था) ‘क्लेड टू’ (पश्चिम अफ्रीकी प्रकार) वायरस की तुलना में अधिक संक्रामक है और इसमें लोगों को जान जाने का खतरा अधिक होता है। मौजूदा संक्रमण का केंद्र पूर्वी डीआरसी का दक्षिण किवु प्रांत है और इसमें एक बड़ी महामारी को आकार देने की क्षमता है।
 
ये वायरस एक अलग किस्म का वायरस है, जो अक्सर यौन संबंध बनाने के कारण मानव-से-मानव में आसानी से फैल सकता है। इसकी संक्रामकता बढ़ सकती है (लेकिन हमें अभी तक पता नहीं है)।
 
ज्यादातर व्यस्कों को करता है प्रभावित
वायरस के नए प्रकार के मामलों में मृत्यु दर 2022 के वैश्विक प्रकोप की तुलना में अधिक है। इस प्रकोप के कारण कई पड़ोसी देशों में ‘एमपॉक्स’ के मामले सामने आए हैं, जिनमें कुछ (जैसे केन्या) ऐसे देश भी शामिल हैं, जहां इस वायरस का पिछला कोई रिकॉर्ड नहीं है।
 
चुनौती बहुत बड़ी है। पूर्वी डीआरसी क्षेत्र कई समस्याओं से घिरा हुआ क्षेत्र है, जहां प्राकृतिक आपदा और हिंसा के अलावा खसरा, हैजा और पोलियो जैसे रोग फैले हुए हैं।
 
क्या करने की जरूरत
‘द लांसेट ग्लोबल हेल्थ’ में हमारे एक हालिया लेख में बताया गया कि इस प्रकोप को रोकने और इसे संभवतः महामारी में बदलने से रोकने के लिए क्या किया जाना चाहिए। नैदानिक जांच, टीकों और एंटीवायरल उपचारों तक पहुंच के लिए राजनीतिक प्रतिबद्धता और वित्तीय निवेश की आवश्यकता है। इसके संपर्क में आने वाले लोगों, संचरण मार्गों और नैदानिक जांच के बारे में अधिक जानकारी जुटाने के लिए वैज्ञानिक जांच की आवश्यकता है।
Edited By : Chetan Gour (द कन्वरसेशन)

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