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मुर्दाघरों में पड़ी हैं भारतीयों की लाशें, पर क्यों?

हमें फॉलो करें मुर्दाघरों में पड़ी हैं भारतीयों की लाशें, पर क्यों?
, बुधवार, 14 दिसंबर 2016 (17:06 IST)
हैदराबाद। विदेश मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक सऊदी अरब के मुर्दाघरों में 150 से अधिक भारतीयों के शव अपनी वतनवासी की राह देख रहे हैं, लेकिन इनकी कोई सुध नहीं ले रहा है। तेलंगाना और आंध्रप्रदेश के करीब 150 से ज्यादा लोगों के शव पिछले करीब एक साल से भी अधिक समय से सऊदी अरब के मुर्दाघरों में पड़े हैं। 
इन दिवंगत लोगों के परिजन अंतिम संस्कार के लिए उन्हें भारत नहीं ला पा रहे हैं क्योंकि इन लोगों को रियाद स्थित भारतीय दूतावास से भी इन लोगों को समुचित मदद नहीं मिल पा रहा है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक विदेश मंत्रालय ने इस सिलसिले में रियाद स्थित भारतीय दूतावास को इस संदर्भ में कई पत्र भेजे हैं लेकिन शवों को भारत वापस लाने की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकी है। अब तो इस मामले में विदेश मंत्रालय के अधिकारी भी अपनी असहायता दिखा रहे हैं।
 
जिन लोगों की लाशें सऊदी मुर्दाघरों में पड़ी हुई हैं, वे जिन लोगों या फिर कंपनियों के यहां नौकरी करते थे, जो ना तो किसी फोन कॉल्स का जवाब देते हैं और ना ही ई-मेल्स पर कोई प्रतिक्रिया देते हैं। इनमें से लगभग सभी लोगों की मौत बीमारियों, हादसों, हत्या या फिर आत्महत्या जैसे कारणों से हुई है। तेलंगाना सरकार के सूत्रों का कहना है कि हैदराबाद, करीमनगर, वारंगल, महबूबनगर, निजामाबाद और आंध्र प्रदेश के कई अन्य जिलों से बड़ी संख्या में लोग खाड़ी देशों में नौकरी करने जाते हैं।
 
खाड़ी देशों में तेलगूभाषी मुस्लिमों की संख्या काफी है। केवल सऊदी अरब में ही आंध्र और तेलंगाना के करीब 10 लाख लोग काम करते हैं। इन देशों में रहने वाले भारतीय कार्मिक मानते हैं कि शवों को भारत वापस भेजने की प्रक्रिया काफी जटिल, महंगी और अधिक समय लेने वाली है। इस कारण से दिवंगत लोगों के परिजन चाहते हैं कि उन्हें इस काम में सरकारी मदद मिलनी चाहिए अन्यथा वे इस प्रक्रिया को पूरा करने में समर्थ नहीं हैं।
 
तेलंगाना सचिवालय के एनआरआई विभाग ने हैदराबाद की एक महिला के शव को हैदराबाद भेजने को लिखा लेकिन इस काम में रियाद स्थित भारतीय दूतावास भी असफल रहा। परिजनों ने आखिरकार एक स्वयंसेवी संगठन की मदद से इस दिवंगत महिला का शव पिछले 20 मई को हैदराबाद लाया जा सका। इस काम में भी काफी कम समय लगा लेकिन खाड़ी के देशों में ऐसे शव पड़े हैं जिन्हें मुर्दाघरों में पड़े महीनों क्या एक साल से भी ज्यादा का समय लगा है लेकिन उन्हें भारत नहीं लाया जा सका है।
 
सऊदी अरब के नियमों के अनुसार अगर किसी व्यक्ति की मौत किसी हादसे में हुई है तो 40 दिन बाद ही उसकी लाश उसके देश में भेजी जा सकती है। लेकिन यह प्रक्रिया इतनी लंबी और जटिल है कि ज्यादातर लोग अपने दिवंगत परिजन को यहां से ले जाने की बजाय यहीं दफना देना उचित समझते हैं। अगर किसी की मौत हत्या के कारण हुई हो तो स्थानीय अधिकारियों को इसकी जांच खत्म करने में ही दो-तीन महीनों का समय लगा देते हैं। 
 
जबकि यहां नौकरी करने वालों के मामलों में अक्सर ही ऐसा होता है कि किसी कंपनी या शख्स के यहां नौकरी कर रहे व्यक्ति की मौत के बाद उसे नौकरी देने वाला लाश को भेजने का खर्च उठाने से इनकार कर देता है, ऐसे में भी काफी मुश्किल खड़ी हो जाती है। इसके अलावा, शव को वापस भेजने में 4 से 6 लाख का खर्च आता है, इसीलिए नियोक्ता अपने कर्मचारियों का शव वापस भेजने में किसी तरह की कोई दिलचस्पी नहीं लेते क्योंकि इसमें लाखों रुपए लगते हैं।
 
किसी भी लाश को वापस लेकर आने में भारतीय दूतावास द्वारा लिखी 4 चिट्ठियों की जरूरत पड़ती है। इनमें मेडिकल,पुलिस रिपोर्ट और परिवार के उस सहमित पत्र की भी अनिवार्यता होती है जिसमें  जिसमें मृतक के परिजन यह लिखकर देते हैं कि वे सऊदी सरकार से या फिर उस व्यक्ति को नौकरी देने वाले शख्स से किसी आर्थिक मुआवजे की मांग नहीं करेंगे। इन अनिवार्यताओं के कारण यह प्रक्रिया ज्यादा जटिल बन जाती है।


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