नाइजीरिया। मोफोलुवाके जोन्स के 2 बच्चे हैं लेकिन दोनों के जन्म की कहानी एकदम अलहदा है। मोफोलुवाके के पहले बच्चे का जन्म नाइजीरिया में हुआ, जहां बच्चे को जन्म देते वक्त महिलाओं के दर्द को चुपचाप सहने की परंपरा है। प्रसव पीड़ा शुरू होने पर खतरों को कम करने तथा मां को पूरा आराम देने की योजना बनाई जा सकती है।
मोफोलुवाके ने कहा कि ऐसा लगता है कि हमने अभी तक यह मानसिकता नहीं अपनाई कि महिलाओं को अपने बच्चे को जन्म देते वक्त नरक जैसे पीड़ा से गुजरने की आवश्यकता नहीं होती है। उनके दूसरे बच्चे का जन्म 5 साल बाद हुआ, जब वह कनाडा में रह रही थी।
उन्होंने कहा कि सभी स्वास्थ्यकर्मी बेहद विनम्र थे। उन्होंने पूरा वक्त देकर मुझे बताया कि उन्हें मेरे साथ क्या करने की जरूरत है और क्यों? गर्भाशय ग्रीवा की प्रत्येक जांच से पहले वे मेरी सहमति लेते थे। जब मैं अस्पताल में भर्ती हुई तो उन्होंने मुझे पूछना शुरू कर दिया कि क्या मैंने दर्द से निपटने की कोई योजना बनाई है? उन्होंने मुझे अलग-अलग विकल्प बताए और प्रत्येक विकल्प से जुड़े खतरे और फायदे के बारे में भी बताया।
प्रसव पीड़ा शुरू होने पर खतरों को कम करने तथा मां को पूरा आराम देने की योजना बनाई जा सकती है लेकिन कई विकासशील देशों में प्रसव के दौरान दर्द से राहत पर सांस्कृतिक भ्रांतियों और वर्जनाओं के कारण कम ध्यान दिया जाता है।
कुछ संस्कृतियों में महिलाओं से बुरी तरह चीखने और रोने की उम्मीद की जाती है जबकि कुछ अन्य देशों में महिलाओं से अपनी प्रसव पीड़ा व्यक्त न करने की उम्मीद की जाती है। कुछ महिलाएं प्रसव के दौरान दर्द निवारक लेने से इनकार कर देती है क्योंकि वे मानती है कि यह दर्द प्राकृतिक है। कुछ महिलाओं को लगता है कि दर्द निवारक लेने से बच्चे को नुकसान पहुंचता है।
ईसाई धर्म में प्रसव पीड़ा को ईश्वर के प्रति अवज्ञाकारी होने के लिए महिलाओं को सजा के तौर पर संदर्भित किया गया है। उत्तरी नाइजीरिया के हौसा लोगों में दर्द का कोई संकेत न देने का बड़ा सामाजिक दबाव होता है। उनमें प्रसव पीड़ा को चुपचाप सहने का रिवाज है।
नाइजीरिया की फुलानी लड़कियों को कम उम्र से ही यह सिखाया जाता है कि प्रसव के दौरान डर दिखाना या रोना कितना शर्मनाक है। दक्षिणी नाइजीरिया के बोनी लोगों को यह सिखाया जाता है कि जब कोई महिला प्रसव के दौरान दर्द सहती है तो यह दिखाता है कि वह एक महिला के तौर पर कितनी मजबूत और सक्षम है। उन्हें यह बताया जाता है कि चीखने-चिल्लाने से दर्द कम नहीं हो सकता इसलिए बेहतर है कि इसे चुपचाप सहा जाए।
दर्द से राहत पाना मां और बच्चे के लिए सुरक्षित होने के बावजूद ब्रिटिश प्रसूति विशेषज्ञ मैरी मैक्कोले तथा उनके सहकर्मियों के एक अध्ययन में पाया गया कि इथियोपिया में आधे से ज्यादा स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर दर्द निवारक का बच्चे, मां और प्रसव की प्रक्रिया पर होने वाले असर को लेकर चिंतित थे।
दक्षिण-पूर्वी नाइजीरिया में एक अध्ययन में पाया गया कि मां बनने वाली केवल 39.5 प्रतिशत महिलाओं को प्रसव पीड़ा से राहत पाने के बारे में जानकारी थी। बच्चे को जन्म देने के दौरान दर्द निवारक के अधिक इस्तेमाल में अहम बाधा जागरूकता की कमी है। अगर प्रसूति विशेषज्ञ दर्द से राहत पाने के विकल्पों पर चर्चा करते हैं तो इससे महिलाओं को प्रसव का बेहतर अनुभव मिल सकता है।(भाषा)
Edited by: Ravindra Gupta