न्यूयॉर्क। जर्मनी के हैम्बर्ग में विश्व की 20 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देश जहां तो आतंकवाद और संरक्षणवाद से मिलकर मुकाबला करने की रणनीति बनाते रहे वहीं इनमें से कई प्रमुख देशों ने न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में दुनिया के 120 से अधिक देशों द्वारा परमाणु हथियारों के बहिष्कार के लिए तैयार की गई एक अहम संधि के लिए बुलाए गए सम्मेलन से किनारा किया।
संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में शुक्रवार को ऑस्ट्रिया, ब्राजील, मैक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और न्यूजीलैंड की पहल पर दुनिया के 122 देशों ने परमाणु हथियारों के बहिष्कार की एक अहम संधि के प्रस्ताव को मंजूरी दी। एक मात्र देश न्यूजीलैंड ने इसका विरोध किया जबकि जी-20 देशों में परमाणु शक्ति संपन्न नौ बड़े देशों भारत, रूस, अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, फ्रांस, पाकिस्तान, इसराइल और उत्तरी कोरिया मतदान के समय अनुपस्थित रहे।
सबसे हैरानी की बात यह रही कि 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध के समय हिरोशिमा और नागासाकी पर बम हमले के कारण परमाणु हथियारों की सबसे बड़ी विभीषिका झेलने वाले जापान ने भी सम्मेलन का बहिष्कार किया।
संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस के राजदूतों ने एक साझा बयान जारी कर कहा कि उनका देश कभी इस संधि का हिस्सा नहीं बनना चाहता क्योंकि यह समझौता अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के पहलुओं को नजरंदाज करता है। नीदरलैंड्स के अलावा सभी नाटो सदस्य देशों ने इस संधि का बहिष्कार किया। नीदरलैंड्स से पास अपना कोई परमाणु हथियार नहीं है, लेकिन उसकी जमीन पर अमेरिका के परमाणु हथियार जरूर तैनात हैं।
सम्मेलन की अध्यक्षता कर रही एलेन गोम्ज ने समझौते को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि परमाणु हथियारों से इस दुनिया को मुक्त करने की दिशा में हमने आज पहला बीज बोया है। हम आज यह कह सकते हैं कि अब परमाणु हथियारों से मुक्त दुनिया का सपना साकार हो सकता है। हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम हमले के बाद से पिछले 70 सालों से दुनिया परमाणु हथियारों के बहिष्कार के लिए इस तरह की एक बड़ी संधि का इंतजार कर रही थी।
प्रस्तावित समझौते में सदस्य देशों ने परमाणु हथियारों के विकास, परीक्षण, विनिर्माण, भंडारण, परमाणु प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण और दूसरों के खिलाफ इसके इस्तेमात पर पूर्ण रोक लगाने की प्रतिबद्धता जताई है। इसके साथ ही इसमें दुनिया के बड़े परमाणु शक्ति संपन्न देशों से भी परमाणु हथियारों के परीक्षण और इस्तेमाल से दूर रहने के लिए दबाव बनाने की व्यवस्था की गई है।
संयुक्त राष्ट्र में 122 देशों की सहमति मिलने के बाद इस समझौते पर 20 सितंबर को हस्ताक्षर किए जाएंगे। अंतरराष्ट्रीय कानून का रूप लेने के पहले संयुक्त राष्ट्र के 50 देशों द्वारा इसका अनुमोदन किया जाना आवश्यक होगा। (वार्ता)