क्वालालम्पुर। इंडोनेशिया के बाली में एक ऐसा पर्व या परंपरा होती है जब आपको पूरी तरह से चुप और शांत रहकर बैठना होता है। पूरा एक शहर इस परंपरा में शामिल होता है। इंडोनेशिया के खूबसूरत शहर बाली में एक प्रथा है, जिसे 'न्येपी' कहा जाता है।
इसे अंग्रेजी में 'डे ऑफ साइलेंस' भी कहते हैं और यह बालीनीज कैलेन्डर के मुताबिक, हर 'इसाकावरसा' (साका का नया साल) को मनाया जाता है। यह एक हिंदू त्योहार है, जिसे बाली में मनाया जाता है। इस दिन राष्ट्रीय छुट्टी रहती है। बाली के लोग इस दिन शांति से बैठकर बस ध्यान लगाते हैं। न्येपी के दिन कोई भी किसी से बात नहीं करता।
इमरजेंसी सेवाओं के अलावा बाजार और परिवहन सेवाएं बंद रहती है। कुछ लोग पूरे दिन व्रत भी रखते हैं। पूरा दिन बीत जाने के बाद, अगले दिन बाली के युवा 'ओमेद-ओमेदन' या 'द किसिंग रिचुअल' की रस्म में भागीदार बनते हैं, जिसमें वह एक-दूसरे के माथे को चूम कर नए साल की शुभकामनाएं देते हैं।
विदित हो कि इसी दिन भारत में 'उगादी' मनाया जाता है। न्येपी का यह एक दिन आत्म-चिंतन के लिए आरक्षित है। इस दिन मुख्य प्रतिबंध आग जलाने पर होता है। घरों में भी एकदम मध्यम उजाला किया जाता है। कोई काम नहीं होता। मनोरंजन के साधनों पर प्रतिबंध होता है।
कोई भी कहीं यात्रा नहीं करता, बात करना भी प्रतिबंधित होता है। इस दिन सड़कों पर भी कोई आवाज भी नहीं होती। घरों के बाहर चहलकदमी करने वाले सिर्फ सिक्योरिटी गार्ड्स ही रहते हैं, जिन्हें 'पिकालैंग' कहते हैं। प्रतिबंधों का पालन सही ढंग से किया जा रहा है या नहीं, ये लोग यह सुनिश्चित करते हैं।
यह परंपरा बाली में रहने वाले हिंदुओं द्वारा ही निभाई जाती है। इसके अलावा वहां रहने वाले अन्य धर्म के लोगों पर यह प्रतिबंध लागू नहीं होते। उन्हें अपने कामों को करने की आजादी होती है। न्येपी के बाद अगले दिन वहां के लोग एक बार फिर अपनी पुरानी दिनचर्या को शुरू करते हैं। एक-दूसरे के गले लगकर और अन्य कार्यक्रमों और समारोह में भाग लेते हैं।