हेरात (अफगानिस्तान)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने शनिवार को यहां संयुक्त रूप से ऐतिहासिक मैत्री बांध का उद्घाटन किया। रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हेरात प्रांत में 1,700 करोड़ रुपए की लागत से तैयार इस बांध से युद्धग्रस्त इस देश में पुनर्निर्माण गतिविधियों को आगे बढ़ाने के प्रति भारत की मजबूत प्रतिबद्धता का पता चलता है।
'भारत-अफगानिस्तान मैत्री बांध' नाम से जाना जाने वाला यह बांध पश्चिमी हेरात में चिश्त-ए-शरीफ नदी पर बना है, जो कि ईरान सीमा के नजदीक है। इस बांध से यहां 75,000 हैक्टेयर भूमि की सिंचाई होगी और करीब 42 मेगावॉट बिजली का उत्पादन किया जाएगा। पहले इसे 'सलमा बांध' के नाम से जाना जाता था।
मोदी अपनी 5 देशों की यात्रा के पहले पड़ाव में यहां पहुंचे हैं। 6 माह से भी कम समय में मोदी की यह दूसरी अफगानिस्तान यात्रा है।
इस परियोजना को भारत और अफगानिस्तान मैत्री की ऐतिहासिक ढांचागत परियोजना माना जा रहा है। हेरात शहर से 165 किलोमीटर दूर इस बांध के बनने से प्रांत की कृषि अर्थव्यवस्था को काफी बढ़ावा मिलेगा।
परियोजना को भारत सरकार के जल संसाधन, नदी विकास और गंगा पुनरुद्धार मंत्रालय के तहत आने वाले वापकोस लिमिटेड ने क्रियान्वित किया है।
अफगानिस्तान के राष्ट्रपति ने उद्घाटन समारोह में अपने संबोधन में कहा कि प्रधानमंत्री मोदी का उनके 'दूसरे घर' अफगानिस्तान में स्वागत है। साथ ही उन्होंने कहा कि भारत की मदद से 30 साल के लंबे समय से चला आ रहा लोगों का यह सपना पूरा हुआ।
गनी ने कहा कि आज हम भारत-अफगान रिश्ते और दोस्ती के साथ आगे बढ़े हैं। इस बांध के बनने से दोनों के बीच सहयोग और समृद्धि के नए अध्याय की शुरुआत हुई है।
उन्होंने कहा कि हमारे लोगों के बीच भारत की पहचान यहां बनने वाली सड़कों, बांधों और 200 से अधिक छोटी विकास परियोजनाओं के रूप में हुई है। गनी ने कहा कि जो लोग गड़बड़ी और बर्बादी के रास्ते पर चलना चाहते हैं उसके विपरीत हम दोनों देशों ने मिलकर निर्माण और वृद्धि के रास्ते पर आगे बढ़ने का फैसला किया है।
अफगानिस्तान का हेरात प्रांत पश्चिम एशिया, मध्य और दक्षिण एशिया के पुराने व्यापार मार्ग पर पड़ता है। यहां से ईरान, तुर्केमिनिस्तान और अफगानिस्तान के अन्य भागों के लिए सड़क मार्ग को रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
बांध के लिए जो भी कल-पुर्जे और सामान की आवश्यकता पड़ी, उसे भारत से समुद्री मार्ग से पहले ईरान के बंदर-ए-अब्बास बंदरगाह तक पहुंचाया गया। वहां से 1,200 किलोमीटर सड़क मार्ग से इसे ईरान-अफगानिस्तान सीमा पर इस्लाम किला सीमा पोस्ट तक पहुंचाया गया। इसके बाद सीमा चौकी से अफगानिस्तान में 300 किलोमीटर अंदर इसे बांध स्थल तक पहुंचाया गया।
भारत और अफगानिस्तान के 1,500 से अधिक इंजीनियरों ने मुश्किल परिस्थितियों में इस बांध का निर्माण किया।
मोदी की 5 देशों (अफगानिस्तान, कतर, स्विट्जरलैंड, अमेरिका और मैक्सिको) की यात्रा में अफगानिस्तान पहला पड़ाव है। इससे पहले मोदी ने 25 दिसंबर को पिछले साल काबुल की यात्रा की थी। तब उन्होंने भारत द्वारा 9 करोड़ डॉलर की लागत से तैयार किए गए खूबसूरत संसद परिसर का उद्घाटन किया था। (भाषा)