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केरल के 2 लोगों को पोप ने घोषित किया 'संत'

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वेटिकन सिटी , रविवार, 23 नवंबर 2014 (22:29 IST)
वेटिकन सिटी। पोप फ्रांसिस ने भारत के एफ कुरियाकोस एलियास चवारा और सिस्टर यूफ्रेसिया तथा चार इतालवी व्यक्तियों को रविवार को वेटिकन में एक विशेष समारोह में संत की उपाधि प्रदान की।
पोप ने केरल के सुधारवादी कैथोलिक पादरी चावरा और नन यूफ्रेसिया के साथ चार अन्य इतालवी लोगों को वेटिकन के सेंट पीटर्स स्कवायर में संत घोषित किया जहां दुनियाभर से हजारों की तादाद में श्रद्धालु पहुंचे थे।
 
इस समारोह को देखने के लिए दो कार्डिनल, बिशप, पादरियों तथा नन के नेतृत्व में करीब 5,000 श्रद्धालु वेटिकन पहुंचे थे। इस कार्यक्रम का सीधा प्रसारण राज्य में चर्च के बाहर लगाए गए विशेष स्क्रीन पर भी किया गया। इटली के चार संतों में जियोवान्नी एंटानियो फरीना, लुदोविको दा कसोरिया, निकोला दा लोंगोबार्दी और अमातो रोनकोनी शामिल हैं।
 
चवारा और यूफ्रेसिया को इस उपाधि से सम्मानित किए जाने के साथ केरल के सदियों पुराने सायरो मालाबार कैथोलिक चर्च से तीन संत हो गए हैं। इनमें प्रथम नाम सिस्टर अलफोंसा का है जिन्हें 2008 में संत घोषित किया गया था।
 
संत की उपाधि प्रदान करते हुए पोप ने कहा कि इन नवनामित संतों ने निर्बलों और गरीब की सेवा करने का उदाहरण पेश किया है। 
 
पोप ने कहा कि आज चर्च ने हमारे सामने इन नए संतों का उदाहरण रखा है..उन्होंने खुद को समर्पित कर दिया जिन्होंने अपने कदम पीछे खींचे बगैर गरीब, बेबस और वृद्ध की सेवा की। सबसे निर्बल और सबसे गरीब के प्रति उनकी वरीयता ईश्वर के प्रति उनके बिना शर्त प्रेम को प्रदर्शित करती है। 
 
चवारा और यूफ्रेसिया के जीवन से जुड़े केरल के तीन स्थानों में पिछले कई दिन से उत्सव का माहौल था। इनमें कोट्टायम का मनमान, एर्णाकुलम का कूनाम्मावू और त्रिशूर का ओल्लूर है। श्रद्धालु प्रार्थना करने के लिए काफी संख्या में चर्च में उमड़ रहे हैं। अलपुझा जिले के कुटटानाड में 1805 में चवारा का जन्म हुआ था।
 
इतिहासकार उन्हें एक समाज सुधारक मानते हैं जिन्होंने न सिर्फ कैथोलिकों की बल्कि अन्य समुदायों के बच्चों की धर्मनिरपेक्ष शिक्षा पर भी जोर दिया। दिलचस्प बात है कि उन्होंने जिन प्रथम संस्थाओं की स्थापना की उनमें एक संस्कृत स्कूल भी शामिल है। 
 
वहीं सिस्टर यूफ्रेसिया का जन्म त्रिशूर के अर्नाट्टुकारा में 1877 में और निधन 1951 में हुआ था। उन्होने त्रिशूर में रहकर प्रार्थना और बुद्विमतापूर्ण परामर्श के जरिए लोगों की मदद की। 
 
दोनों लोगों के ‘कैननाइजेशन’, जो कैथलिक प्रक्रिया में संत उपाधि प्रदान करने के अंतिम चरण के तौर पर जाना जाता है, के साथ सदियों पुराने साइरो मालाबार कैथलिक चर्च में तीन संत हो गए हैं।
 
चर्च के विद्वानों के अनुसार साइरो मालाबार चर्च रोम के साथ फुल कम्युनियन रखने वाले 22 ईस्टर्न चर्चों में से एक है। साइरो मालाबार चर्च की जड़ें पहली ईस्‍वी सदी में केरल के तटीय क्षेत्र में ईसाई धर्म प्रचारक सेंट थॉमस की यात्रा से जुड़ी हैं। (भाषा)

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